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हरिको हरि -जन अतिहि पियार...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - हरिको हरि -जन अतिहि पियार...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

हरिको हरि-जन अतिहि पियारे ।

हरि हरि-जनते भेद न राखैं, अपने सम करि डारैं ॥

जाति-पाँति, कुल-धाम, धरम, धन, नहिं कछु बात बिचारैं ।

जेहि मन हरि-पद-प्रेम अहैतुक, तेहि ढिग नेम बिसारैं ॥

ब्याध, निषाध, अजामिल, गनिका, केते अधम उधारे ।

करि-खग बानर-भालु-निसाचर, प्रेम-बिबस सब तारे ॥

परखि प्रेम हिय हरषि राम भिलनीके भवन पधारे ।

बारहिं बार खात जूठे फल, रहे सराहत हारे ॥

बिदुर-घरनि सुधि बिसरी तनकी, स्याम जबहिं पगु धारे ।

कदली-फलके छिलका खाये, प्रेममगन मन भारे ॥

रे मन ! ऐसे परम प्रेममय हरिको मत बिसरा रे ।

प्रभुके पद सरोज रस चाखन, तू मधुकर बनि जा रे ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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