हे निर्गुण ! हे सर्वगुणाश्रय ! हे निरुपम ! हे उपमामय !
हे अरूप ! हे सर्वरूपमय ! हे शाश्वत ! हे शान्तिनिलय ! ॥
हे अज ! आदि ! अनादि ! अनामय ! हे अनन्त ! हे अविनाशी !
हे सच्चित-आनन्द, ज्ञानघन, द्वैतहीन, घट-घट-वासी ! ॥
हे शिव, साक्षी, शुद्ध, सनातन, सर्वरहित हे सर्वाधार !
हे शुभमन्दिर, सुन्दर, हे शुचि, सौम्य, साम्यमति रहितविकार ! ॥
हे अन्तर्यामी ! अन्तरतम, अमल, अचल, हे अकल, अपार !
हे निरीह, हे नर-नारायण, नित्य, निरञन, नव, सुकुमार ! ॥
हे नव नीरद नील नराकृत, निराकार, हे नीराकार !
हे समदर्शी, संग-सुखाकर, हे लीलामय प्रभु साकार ! ॥
हे भूमा, हे विभु, त्रिभुवनपति, सुरपति, मायापति भगवान् !
हे अनाथपति, पतित उधारन, जन तारन हे दयानिधान ! ॥
हे दुर्बलकी शक्ति, निराश्रयके आश्रय, हे दीनदयालु !
हे दानी, हे प्रणतपाल, हे शरणागतवत्सल जनपाल ! ॥
हे केशव ! हे करुणासागर ! हे कोमल, अति सुह्रद महान ।
करुणाकर अब उभय अभय-चरणोंमें हमें दीजिये स्थान ॥
सुर-मुनि-वन्दित कमलानन्दित चरण-धूलि तव मस्तकधार ।
परम सुखी हम हो जायेंगे, होंगे सहज भवार्णव पार ॥