प्रभु तुम अपनो बिरद सँभारो ।
अधम-उधारन नाम धरायो अब मत ताहि बिसारो ॥
मोसों अधिक अधम को जगमहँ पापिनमहँ सरदारो ।
ढूँढ-ढूँढ़ जग अघ अति कीन्हें गनत न आवै पारो ॥
मोरे अघकौं लिखत लिखावत चित्रगुप्त पचि हारो ।
तऊ न आयो अंत अघनको, छाड़ी कमल बिचारो ॥
अबलौं अधम अनेक उधारे, मो सों पल्लौ डारो ।
राखो लाज नाम अपनेकी, मत खोवो पतियारो ॥