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Bhagvad Gita
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter One
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Two
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Three
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Nine
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Ten
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Eleven
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Twelve
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Thirteen
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Fourteen
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Fifteen
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Bhagvad Gita - Chapter Sixteen
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Seventeen
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Bhagvad Gita - Chapter Eighteen
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श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय २
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ३
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ४
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ५
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ६
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ७
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ८
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ९
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १०
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ११
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १२
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १३
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १४
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १५
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १६
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १७
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १८
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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शिवगीता
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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शिवगीता - अध्याय १
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय २
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ३
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ४
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ५
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ६
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ७
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ८
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शिवगीता - अध्याय ९
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शिवगीता - अध्याय १०
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय ११
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय १२
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय १३
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय १४
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय १५
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शिवगीता - अध्याय १६
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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शिवगीता - अध्याय १७
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शिवगीता - अध्याय १८
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
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आरती गीतेची - जयदेव जयदेव जय भगवद्गीते ...
निरंजनस्वामीकृत आरती
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आरती गीतेची - जय देव जय देवी जय भगवद्ग...
देवीदेवतांची काव्यबद्ध स्तुती म्हणजेच आरती.The poem composed in praise of God is Aarti.
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कालयवनवध
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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अभंग संग्रह - भगवद्गीतास्तोत्र
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - नमन
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय पहिला
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय दुसरा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय तिसरा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय चवथा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय पांचवा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय सहावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय सातवा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय आठवा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय नववा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय दहावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय अकरावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय बारावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय तेरावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय चौदावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय पंधरावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय सोळावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय सतरावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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भगवद्गीतास्तोत्र - अध्याय अठरावा
तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.
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गीताई
Marathi translation of Shri-MadBhagwad Geeta, written by Vinoba Bhave.
Vinoba Bhave, born Vinayak Narahari Bhave (September 11, 1895 - November 15, 1982) often called Acharya (In Sanskrit and Hindi means teacher), is considered as a National Teacher of India and the spiritual successor of Mahatma Gandhi. He was born in Gagode, Maharashtra on September 11, 1895 into a pious family of the Chitpavan Brahmin clan. He was highly inspired after reading the Bhagavad Gita, one of the holiest Hindu scriptures at a very early age.
Vinoba observed the life of the average Indian living in a village and tried to find solutions for the problems he faced with a firm spiritual foundation. This formed the core of his Sarvodaya (Awakening of all potentials) movement. Another example of this is the Bhoodan (land gift) movement. He walked all across India asking people with land to consider him as one of their sons and so give him a portion of their land which he then distributed to landless poor. Non-violence and compassion being a hallmark of his philosophy, he also campaigned against the slaughtering of cows.ज्येष्ठ गांधीवादी नेते आणि भूदान चळवळीचे प्रणेते आचार्य विनोबा भावे यांनी केलेले महर्षी व्यासांच्या श्रीमद्भगवदगीतेचे समश्लोकी मराठी भाषांतर 'गीताई' हे त्यांच्या जीवनातील एक महत्त्वाचे कार्य.
वामन पंडितांनी गीतेचे समश्लोकी भाषांतर केले होते. पण ते पंडित परंपरेचे असल्याने त्याची शब्दरचना अर्थातच कठीण होती. विनोबांच्या आईला गीता मराठीत वाचायची होती, म्हणून विनोबांनी तिला वामन पंडितांचे भाषांतर आणून दिले. ते समजण्यास अवघड गेल्याने, तिने विनोबांना गीतेचे भाषांतर करण्यास सांगितले. आईच्या प्रेरणेने हे समश्लोकी भाषांतर झाल्याने मराठीतील गीता 'गीताई' बनली.
आपल्या आईवरचे निस्सीम प्रेम आणि नितांत श्रद्धा यांचे वारंवार दर्शन 'गीताई'मध्ये दिसत राहते. 'पडतां रडतां घेई उचलुनि कडेवरी' असे म्हणताना विनोबांनी खरेच मुलाला समजेल आणि ज्ञानाच्या कडेवर उचलून घेईल, अशा भाषेत ही पद्यरचना केली. गीता हे काव्य नसून तत्त्वाज्ञान आहे. ते सोपे करून सांगणे, ही अवघड बाब. गीतेच्याच श्लोकांबरहुकूम मराठीत रचना करून छंद आणि वृत्तांचेही भान राखायचे आणि अर्थहानी होऊ द्यायची नाही, हे शिवधनुष्य विनोबांनी पेलले. आपल्या पांडित्याचे दर्शन न घडवता सोप्यात सोपे शब्दप्रयोग योजण्यासाठी विनोबांनी अपार श्रम घेतले.
चार महिन्यांत 'गीताई' लिहून झाल्यावरही विनोबांना चैन पडत नव्हती. म्हणून त्यांनी आश्रमातील लहान मुलींना ती शिकवली. जिथे त्यांना अडचण आली, तिथे बदल केले. 'हे देवाचे काम' म्हणून विनोबा 'गीताई'कडे बघत असल्याने त्यासाठी सर्व कष्ट घेण्याची त्यांची तयारी होती. आपल्या वाङ्मयीन कामावर अशी निष्ठा ठेवणारा लेखक विरळाच. ज्यांनी मूळ गीता आणि 'गीताई' वाचली, त्यांना विनोबांच्या शब्दप्रयोगांचा नेमकेपणा जाणवतो. पाचवा अध्याय गीतेची किल्ली आहे, असे ते मानत. चौथ्या अध्यायातील १८वा श्लोक त्यांना भावला. त्याची छाया विनोबांच्या गीताप्रवचनावर सतत उमटलेली दिसते. 'कर्मण्यकर्म य पश्येदकर्मणि च कर्म य। स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त कृत्स्नकर्मकृत्॥' हा तो अर्थगर्भ श्लोक. हे कर्माचे गहन तत्त्वाआन मराठीत उतरवताना विनोबा म्हणतात, 'कमीर् अकर्म जो पाहे अकमीर् कर्म जो तसें। तो बुद्धिमंत लोकांत तो योगी कृतकृत्य तो॥'
'गीताई' १९३२ साली प्रकाशित झाली. त्या वेळी गांधीजींच्या चळवळीत भाग घेतल्याबद्दल ते धुळ्याच्या जेलमध्ये बंदिवान होते. एका बाजूला तत्त्वज्ञानाचा गाढा अभ्यास चालू असताना दुसरीकडे त्यांचे राजकीय कार्यही चालू होतेच. स्वातंत्र्यचळवळ आणि त्यामुळे होणारा बंदिवास यामुळे सामान्यांत मिसळण्याची संधी मिळाल्याबद्दल विनोबा आनंदीच असायचे. १९३२ सालापासून आतापर्यंत 'गीताई'च्या लाखो प्रती घरोघर विकल्या गेल्या. २००३पर्यंत 'गीताई'च्या ३६ लाख २५ हजार प्रती छापल्या गेल्याची नोंद आहे. अर्वाचीन काळात एखाद्या पद्य पुस्तकाचा इतक्या मोठ्या संख्येने खप होण्याची उदाहरणे क्वचितच सापडतील.
महाराष्ट्राच्या खेड्यापाड्यांमध्ये संस्कृतमधील गीतेचे पठन व अध्ययन ही कठीण बाब होती. 'गीताई'ने ही ज्ञानाची कवाडे सर्वांसाठी उघडली. गीतेच्या पंधराव्या अध्यायात 'पुरुषोत्तमयोग' विशद केलेला आहे. मानवी शरीराचे वर्णन करताना व्यासांनी शरीर उलट्या वृक्षाप्रमाणे असल्याचे म्हटले. 'ऊर्ध्वमूलमधशाखमवत्थं प्राहुरव्ययम्। छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥' विनोबांनी हे सारे सोप्या मराठीत सांगितले. 'खाली शाखा वरी मूळ नित्य अवत्थ बोलिला। ज्याच्या पानांमधें वेद जाणे तो वेद जाणतो॥' 'गीताई' मराठी वाङ्मयाचा मैलाचा दगड बनला. आपल्या 'प्रेमपंथ अहिंसेचा'मध्ये विशद केलेली विनोबांची आठवण अधिक मनोवेधक आहे. धुळ्याच्या जेलमध्ये विनोबांचे प्रसिद्ध 'गीता प्रवचन' झाले आणि त्याची भारतातील अनेक भाषांत रूपांतरे झाली. या जेलमधून विनोबांची सुटका झाली, तेव्हा सर्व कैद्यांनी जेलरला विनंती केली की, आमच्या श्रमाने मिळवलेल्या पैशांतून दोन आणे कापा आणि आम्हाला 'गीताई' द्या. या पुस्तकाची किंमत तर एक आणा होती. पण कैदी म्हणाले, 'एक आणा 'गीताई'चा आणि एक आणा विनोबांच्या दक्षिणेचा.' हे भाग्य किती लेखकांना लाभते?
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गीताई अध्याय पहिला
गीताई अध्याय पहिला
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गीताई अध्याय दुसरा
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गीताई अध्याय तिसरा
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गीताई अध्याय चवथा
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गीताई अध्याय पाचवा
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गीताई अध्याय सहावा
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गीताई अध्याय सातवा
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गीताई अध्याय आठवा
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गीताई अध्याय नववा
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गीताई अध्याय दहावा
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गीताई अध्याय अकरावा
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गीताई अध्याय बारावा
गीताई अध्याय बारावा
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गीताई अध्याय तेरावा
गीताई अध्याय तेरावा
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गीताई अध्याय चौदावा
गीताई अध्याय चौदावा
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गीताई अध्याय पंधरावा
गीताई अध्याय पंधरावा
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गीताई अध्याय सोळावा
गीताई अध्याय सोळावा
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गीताई अध्याय सतरावा
गीताई अध्याय सतरावा
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गीताई अध्याय अठरावा
गीताई अध्याय अठरावा
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गीतापद्यमुक्ताहार
‘ गीतापद्यमुक्ताहार ’ या ग्रंथाची आवृत्ती वाचून श्रीमज्जगद्गुरू शंकरचार्य मठ श्रृंगेरी शिवगंगा यांनी पुस्तककर्त्यास ‘ महाराष्ट्रभाषाचित्रमयूर’ ही पदवी दिली.
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गीतापद्यमुक्ताहार - मंगलाचरण
‘ गीतापद्यमुक्ताहार ’ या ग्रंथाची आवृत्ती वाचून श्रीमज्जगद्गुरू शंकरचार्य मठ श्रृंगेरी शिवगंगा यांनी पुस्तककर्त्यास ‘ महाराष्ट्रभाषाचित्रमयूर’ ही पदवी दिली .
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गीतापद्यमुक्ताहार - अध्याय पहिला
‘ गीतापद्यमुक्ताहार ’ या ग्रंथाची आवृत्ती वाचून श्रीमज्जगद्गुरू शंकरचार्य मठ श्रृंगेरी शिवगंगा यांनी पुस्तककर्त्यास ‘ महाराष्ट्रभाषाचित्रमयूर’ ही पदवी दिली .
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गीतापद्यमुक्ताहार - अध्याय दुसरा
‘ गीतापद्यमुक्ताहार ’ या ग्रंथाची आवृत्ती वाचून श्रीमज्जगद्गुरू शंकरचार्य मठ श्रृंगेरी शिवगंगा यांनी पुस्तककर्त्यास ‘ महाराष्ट्रभाषाचित्रमयूर’ ही पदवी दिली .
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गीतापद्यमुक्ताहार - अध्याय तिसरा
‘ गीतापद्यमुक्ताहार ’ या ग्रंथाची आवृत्ती वाचून श्रीमज्जगद्गुरू शंकरचार्य मठ श्रृंगेरी शिवगंगा यांनी पुस्तककर्त्यास ‘ महाराष्ट्रभाषाचित्रमयूर’ ही पदवी दिली .
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गीतापद्यमुक्ताहार - अध्याय चवथा
‘ गीतापद्यमुक्ताहार ’ या ग्रंथाची आवृत्ती वाचून श्रीमज्जगद्गुरू शंकरचार्य मठ श्रृंगेरी शिवगंगा यांनी पुस्तककर्त्यास ‘ महाराष्ट्रभाषाचित्रमयूर’ ही पदवी दिली .
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