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ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास सातवां - मोक्षलक्षणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास आठवां - आत्मदर्शननाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास नववां - सिद्धलक्षणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास दसवां - शून्यत्वनिरसननाम ।!
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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दशक नववां - गुणरूपनाम
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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गुणरूपनाम - ॥ समास पहला - आशकानाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास दूसरा - ब्रह्मनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास चौथा - जाणपणनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास पांचवां - अनुमाननिरसननाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास छठवां - गुणरूपनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास सातवां - विकल्पनिरसननाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास नववां - संदेहवारणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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गुणरूपनाम - ॥ समास दसवां - स्थितिनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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दशक दसवां - जगज्जोतिनाम
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास पहला - अंतःकरणएकनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास दूसरा - देहआशंकानाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास तीसरा - देहआशंकाशोधननाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास चौथा - बीजलक्षणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास पांचवां - पंचप्रलयनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास छठवां - भ्रमनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास सातवां - सगुणभजननिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास आठवां - प्रचीतनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास नववां- प्रचीतनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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जगज्जोतिनाम - ॥ समास दसवां - चलाचलनिरूपणनान ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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दशक ग्यारहवां - भीमदशक
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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भीमदशक - ॥ समास पहला - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास दूसरा - चत्वारदेवनिरूपणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास तीसरा - सिकवणनिरूपणनामः ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास चौथा - विवेकनिरूपणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास छठवां - महंतलक्षणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास सातवां - चंचलनदीनिरूपणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास आठवां - अंतरात्माविवरणनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास नववां - उपदेशनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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भीमदशक - ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥
३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।
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दशक बारहवां - विवेकवैराग्यनाम
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास पहला - विमललक्षणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास दूसरा - प्रत्ययनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास तीसरा - भक्तनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास चौथा - विवेकवैराग्यनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास पांचवां - आत्मनिवेदननाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास सातवां - विषयत्यागनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास आठवां - कालरूपनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास नववां- येत्नसिकवणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास दसवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।
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दशक तेरहवां - नामरूप
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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नामरूप - ॥ समास पहला - आत्मानात्मविवेकनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास दूसरा - सारासारनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास तीसरा - उभारणीनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास छठवां - लघुबोधनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास सातवां - प्रत्ययविवरणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास आठवा - कर्तानिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास नववां - आत्मविवरणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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नामरूप - ॥ समास दसवां - सिकवणनिरूपणनामः ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
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दशक चौदहवां - अखंडध्याननाम
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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अखंडध्याननाम - ॥ समास पहला - निस्पृहलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास तीसरा - कवित्वकलानिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास चौथा - कीर्तनलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास पांचवां - हरिकथालक्षणनिश्चयनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास छठवां - चातुर्यलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास सातवां - युगधर्मनिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास आठवां - अखंडध्याननिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास नववां - शाश्वतनिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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अखंडध्याननाम - ॥ समास दसवां - मायानिरूपणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
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दशक पंद्रहवां - आत्मदशक
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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आत्मदशक - ॥ समास पहला - चातुर्यलक्षणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास दूसरा - निस्पृहव्यापलक्षणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास तीसरा - श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास चौथा - शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास पाचवां चंचललक्षणनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास छठवां - चातुर्यविवरणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास आठवा - सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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आत्मदशक - ॥ समास दसवां - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥
देहप्रपंच यदि ठीकठाक हुआ तो ही संसार सुखमय होगा और परमअर्थ भी प्राप्त होगा ।
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दशक सोलहवां - तत्त्वान्वय का
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास पहला - वाल्मीकस्तवननिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास तीसरा - पृथ्वीस्तवननिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास चौथा - आपनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास पांचवां - अग्निनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास छठवा - वायुस्तवननिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास सातवां - महद्भूतनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास आठवां - आत्मारामनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास नववां - नानाउपासनानिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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तत्त्वान्वय का - ॥ समास दसवां - गुणभूतनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
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दशक सत्रहवां - प्रकृतिपुरुष का
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास तीसरा - श्रवणनिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास चौथा - अनुमाननिरसननाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास छठवां - देहात्मनिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास सातवां - जगज्जीवननिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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