स्तवणनाम - ॥ समास दूसरा गणेशस्तवननाम ॥
इस ग्रंथ के श्रवण से ही ‘श्रीमत’ और ‘लोकमत’ की पहचान मनुष्य को होगी.
॥श्रीरामसमर्थ॥
ॐ नमो जी गणनायका । सर्वसिद्धिफलदायका । अज्ञानभ्रांतिछेदका । बोधरूपा ॥१॥
मेरे अंतर में समायें । सर्वकाल वास्तव्य करते जायें । मुझ वाक्यशून्य से बोलवायें । कृपा कटाक्ष करके ॥२॥
तेरे कृपा के ही बल । से मिटते भ्रांति के पटल । और विश्र्वभक्षक काल । दास्यत्व करे ॥३॥
आते ही कृपा की निज उडान । कांपते बेचारे विघ्न । होता उनका देश-पलायन । नाममात्र से ॥४॥
इस कारण नाम विघ्नहर । हम अनाथों के नैहर । आदि से हरिहर ॥ अमर वंदन करते ॥५॥
वंदन कर मंगलनिधि । कार्य करे तो सर्वसिद्धि । आघात अड़चने उपाधि । बाध सकेना ॥६॥
जिसके छबि का करते ही स्मरण । लगे परम समाधान । नेत्रों में प्रविष्ट होकर मन । पंगु होते सर्वांग ॥७॥
सगुण रूप का भंडार । महा लावण्य लाघव । नृत्य करने पर सकल देव । तटस्थ होते ॥८॥
सर्वकाल मदोन्मत्त । डोलते सदा आनंदित । हर्ष-निर्भर मुदित । सुप्रसन्न वदन ॥९॥
भव्यरूप वितंड । भीममूर्ति महा प्रचंड । विस्तीर्ण मस्तकी उदंड। सिंदूर चर्चित ॥१०॥
नाना सुगंध परिमल । रसता टपकता गंडस्थल । वहां आये षट्पदकुल । गुंजन शब्दों से ॥११॥
वक्रमोड शुंडादंड सरल । शोभा दे अभिनव सुंड । लंबे अधरोंसे तीक्ष्ण । टपके क्षण क्षण मंदसत्व ॥१२॥
गोसावी चौदह विद्या के । सूक्ष्म लोचन हिलाये । लचीले कोमल फड़फडाये। फड़फड़ कर्णथापा ॥१३॥
रत्नखचित मुकुट करे झिलमिल । नाना सुरंग छितराते कील। कुंडल के रत्ननील । उपर जड़े झिलमिलाते ॥१४॥
शुभ्र सदृढ दंत । हेमकड़ा रत्नजड़ित । जिसके तले स्वर्णपत्र सुशोभित । जगमगाये लघु लघु ॥१५॥
थुलथुल कर हिले तोंद । वेष्टित कट्ट नागबंध। क्षुद्र घंटिका मंद मंद । बजते झनकार से ॥१६॥
चतुर्भुज लंबोदर । काछा कसे हैं पीतांबर । फडकता तोंद का फणिवर । फुफकार करता ॥१७॥
जिव्हा लवलवाते डोले मस्तक पर । आसन जमाये कुंडली मार । नाभि कमल से उभर कर । टकमक देखे ॥१८॥
कुसुममाला नाना याति । व्यालपर्यंत गले में झूलती । रत्नजड़ित हृदय कमल पर देती । पदक शोभा जैसे ॥१९॥
शोभा दे परशु और कमल । अंकुश में तीक्ष्ण तेज का बल । एक कर में मोदक गोल । उस पर अति प्रीति ॥२०॥
नट नाट्य कला कौशल करे । नाना छंद नृत्य करे । ताल मृदंग के शब्दो से भरे । उमंग से हुंकारे ॥२१॥
स्थिर नहीं एक क्षण । चपलता में अग्रगण्य । सुसज्जित मूर्ति सुलक्षण । लावण्यखाणी ॥२२॥
रून झुन बजते नुपुर । दण्डबंध का ध्वनिगजर । घुंगरूओं की झंकार मनोहर । दोनो पैरों में ॥२३॥
ईश्वर सभा में आई शोभा । दिव्यांबर की फैली प्रभा । साहित्य निपुण सुल्लभा । हैं अष्ट नायिका ॥२४॥
ऐसा सर्वांग सुंदर । सकल विद्या के आगर । उन्हें मेरा नमस्कार । साष्टांग भाव से ॥२५॥
ध्यान गणेश का जब वर्णित होता । भ्रांत मतिप्रकाश पाता । गुणानुवाद श्रवण जब होता । प्रसन्न होती सरस्वती ॥२६॥
जिसको ब्रह्मादि भी वंदन करे। वहां मानव क्या बेचारे । प्राणि मतिमंद जो ठहरे । वे भी गणेश चिंतन करें ॥२७॥
जो मूर्ख अवलक्षण । जो हीन से भी हीन । वे ही होते दक्ष प्रवीण । सर्व विषयों में ॥२८॥
ऐसा जो परम समर्थ । पूर्ण करे मनोरथ । सप्रचित भजनस्वार्थ । कलौ चंडीविनायक ॥२९॥
ऐसा गणेश मंगलमूर्ति । उसका मैने किया स्तवन यथामति । रखकर चित्त में वांछा प्रीति । परमार्थ की ॥३०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे गणेशस्तवननाम समास दूसरा ॥२॥
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Last Updated : November 27, 2023
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