सगुणपरीक्षा - ॥ समास चौथा - सगुणपरीक्षानाम ॥
श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
बच्चे हुये अनेक । तो लक्ष्मी निकल गई एकाएक । बेचारे मांगने लगे भीख । खाने अन्न ना मिले ॥१॥
बच्चे खेलते छोटे । एक रेंगे एक पेट में । ऐसी भीड़ हुई घर में । कन्या और पुत्रों की ॥२॥
खर्च दिनोंदिन बढ़े । आय घटता जाये । कन्या उपवर हुई उनके । विवाह को धन नहीं ॥३॥
मां बाप थे संपन्न । पास था उनके अपार धन । उस कारण प्रतिष्ठा मान । था प्राप्त लोगों में ॥४॥
लोगों को है भ्रम । पहले जैसा न रहा धन । घर में दिनोंदिन । आया द्रारिद्रय ॥५॥
ऐसे घरसंसार हुआ वृद्धिंगत । खानेवाले हुये बहुत । इससे प्राणी चिंताग्रस्त । उद्विग्न हुआ ॥६॥
कन्यायें हुई उपवर । विवाहयोग्य हुये पुत्र । अब विवाह कार्य । करना ही चाहिये ॥७॥
वैसी ही रहेगी यदि सतान । तो लोकलाज आयेगी पुनः । कहेंगे क्यों दिया जनम । जन्म-दरिद्री ने ॥८॥
ऐसी होगी लोगनिंदा । नाम जायेगा पिता का । अब कौन ऋण देगा । विवाह के लिये ॥९॥
पहले लिया जिसका ऋण । चुका ना पाया उसे पूर्ण । ऐसे गिरा आसमान । उद्विग्नता का ॥१०॥
हम अन्न खाये । अन्न हमें खाये। सर्वकाल मन में होये । चिंतातुर ॥११॥
नष्ट हुई पूरी पत । रखी गिरवी चीजे सब । हे ईश्वर कैसा आया ये वक्त । दिवाला अब निकला ॥१२॥
कुछ जुगाड़ किया । घर के पशु बेच आया । कुछ पैसा रुपया । ब्याज पर लिया ॥१३॥
ऐसे लिया ऋण । दंभ किया लोगों के कारण । कहने लगे सकल जन । नाम रखा पिता का ॥१४॥
ऐसे ऋण अपार हुआ । साहूकारों से घिर गया । तब प्रयाण किया । परदेस को ॥१५॥
दो वर्ष रहा छिपकर । नीच सेवा का किया अंगीकार । आपदा जो भोगे शरीर । आत्यंतिक ॥१६॥
कुछ कमाया विदेश में । अपनों की याद लगी आने । तब स्वामी से पूछा उसने । लौटकर आया ॥१७॥
तब थे वे पीड़ित अत्यंत । बैठकर जोहते बाट । कहने लगे दिन क्यों लगे बहुत । क्या करे हे ईश्वर ॥१८॥
अब हम क्या खाये । कितने दिन भूखे रहे । हे ईश्वर ऐसे की संगत में । क्यों हमें रखा ॥१९॥
ऐसे अपने सुख की सोचते । परंतु उसका दुःख ना जानते । और अंत में शक्ति खोते । ही कोई भी काम ना आते ॥२०॥
अस्तु ऐसे ही जोहते बाट । दिखा दृष्टि को अकस्मात् । बच्चे दौड़कर कहते तात । थके हैं आप ॥२१॥
स्त्री देखकर हुई आनंदित । कहती दुःख हमारे हुये समाप्त । तब इसने दी उस वक्त । गठरी हाथ में ॥२२॥
सभी आनंदित हुये । कहते हमारे पिता आये । वे हमारे लिये लाये । टोपी कुर्ते ॥२३॥
ऐसी खुशी चार दिन । फिर करने लगे भुनभुन । यह समाप्त होने पर हम । फिर संकट में आ पडेंगे ॥२४॥
अतः लाया वह छोडिये । आप फिर विदेश जाईये । हम ये खाये तब तक लाईये । और द्रव्य कमाकर ॥२५॥
ऐसी वासना सबकी । सब सुख के साथी । स्त्री जो अत्यंत प्रीति की । वह भी सुख के ही पीछे पडी ॥२६॥
विदेश में बहुत थक गया । विश्राम लेने था आया । सास भी न ले पाया । तो जाने की घडी आई ॥२७॥
फिर पूछा ज्योतिष को । जायें किस मुहुर्त को । वृत्ति उसकी उलझी देखो । जाना न चाहे ॥२८॥
माया मात्रा की तयारी की । कुछ सामग्री साथ में ली । बच्चों को देखकर दृष्टि । से मार्गस्थ हुआ ॥२९॥
स्त्री का करे अवलोकन । वियोग का दुःख लगे अतिगहन । प्रारब्धसूत्र का खंडन । हुआ ऋणानुबंध का ॥३०॥
कंठ हुआ सद्गदित । न सम्हले हुआ गदगद । पिता और बच्चों का विच्छेद । हुआ देखो ॥३१॥
यदि होगा ऋणानुबंध । तो होगी पुनः भेट । नहीं तो साथ रहेगी याद । हमारे इसी भेट की ॥३२॥
ऐसे कहकर सवार होता । मुडमुडकर पीछे देखता । वियोग दुःख न सहन होता । परंतु कुछ न चले ॥३३॥
गांव अपना रह गया पीछे । चित्त भ्रमित संसार उद्वेग से । दुःखी हुआ प्रपंच संग से । अभिमान के कारण ॥३४॥
उस समय माता याद आई । कहे धन्य धन्य वह माई । मेरे कारण बहुत कष्ट उठाई । किंतु मैं मूर्ख अन्जान ॥३५॥
आज यदि वह होती । तो मुझे कभी दूर ना करती । वियोग होने पर आक्रोश करती । वह ममता होती निराली ही ॥३६॥
वैभवहीन भिखारी पुत्र । माता वैसे ही करे अंगिकृत । मन में उसकी थकान देख । उसके दुःख से दुःखी होये ॥३७॥
प्रपंच विचार से देखे अगर । ये सब मिले न मिले माता मगर । जिसके कारण यह शरीर । निर्माण हुआ ॥३८॥
कर्कशा फिर भी वह माया । क्या करेगी सहस्र स्त्रिया । मगर यह भूल कर व्यर्थ गया । मकरध्वज के कारण ॥३९॥
इस एक काम के लिये । प्रियजनों से झगड़े लिये । आप्तजन ही दुश्मन हुये । ऐसा लगे ॥४०॥
इसलिये धन्य धन्य वे प्रपंची जन । जो माता पिता का भजन । करते ना करते अपना मन । निष्ठुर प्रियजनों के लिये ॥४१॥
साथ स्त्री बालक का । है सारे जन्म का । परंतु साथ मातापिता का । कैसा होगा बाद में ॥४२॥
पहले था ऐसा सुना । किंतु उस समय ना समझा । मन यह डूबा था । रतिसुख के भंवर में ॥४३॥
ये साथी लगते पर हैं दुश्मन । मिले वैभव के कारण । खाली हाथ लौटें तो शरम । आती अत्यंत ॥४४॥
अब कुछ भी कर जायें । परंतु द्रव्य कमाकर ले जाये । रिक्त हाथों से जाये । दुःख स्वाभाविक होगा ॥४५॥
था ऐसी विवंचना में । दुःखी हुआ अभ्यंतर में । चिंता के बाढ में डूब गया ॥४६॥
ऐसी यह अपनी काया । रहते हुये पराधीन किया । ईश्वर से दूर हुआ । कुटुंब कबाडी ॥४७॥
ऐसा एक काम के कारण । व्यर्थ गंवाया जन्म । आयु जब होगी खत्म । अकेले ही जाना पडे ॥४८॥
ऐसा मन में पछताया । क्षण एक उदास हुआ । उसी समय मोहित हुआ । मायाजाल से ॥४९॥
कन्यापुत्रों का हुआ स्मरण । क्षतविक्षत् हुआ मन । कहे हुई दूर संतान । मेरी ही मुझ से ॥५०॥
याद आये दुःख विगत । जो जो हुये थे प्राप्त । फिर रोना किया आरंभ । दीर्घ स्वर से ॥५१॥
लगा अरण्यरुदन करने । कोई नही आया समझाने । तब लगा पूछने । अपने मन में ॥५२॥
अब किस कारण से रोना । मिला वह तो है भोगना । ऐसे में जी में अपने माना । धीरज धरे ॥५३॥
ऐसे बहुत दुःखी हुआ । फिर विदेश की ओर गया । आगे जो प्रसंग हुआ । वह सुनो सावधान होकर ॥५४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणपरीक्षानाम समास चौथा ॥४॥
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Last Updated : November 30, 2023
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