सगुणपरीक्षा - ॥ समास आठवा - आधिदैविकतापनाम ॥

श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पहले कहा आध्यात्मिक । उसके पश्चात आधिभौतिक । अब कहता हूं आधिदैविक । वह सावधानी से सुनें ॥१॥
॥ श्लोक ॥    
शुभाशुभैः कर्मभिश्च देहाते यमयातना ।         
स्वर्गनरकादि भोक्तव्यमिदं विद्धयाधिदैविकम् ॥

शुभाशुभ कर्मों से पाते जन । देहात में यमयातना । स्वर्ग नरक भोग नाना । इसका नाम आधिदैविक ॥२॥
नाना दोष नाना पातक । मदांधता से अविवेक । से किये पर वे दुःखदायक । यमयातना भोगने लगाते ॥३॥
अंगबल से द्रव्यबल से । मनुष्यबल से राजबल से । नाना सामर्थ्यों के बल से । अकृत्य करते ॥४॥
नीति त्यागकर तत्त्वतः । अनुचित वही कर्म करता । यमयातना भोगता । जीव तड़पता जाये ऐसे ॥५॥
अंधा बनकर स्वार्थ बुद्धि । नाना अभिलाष कुबुद्धि । सीमा साधे वृत्तिभूमि । द्रव्य दारा पदार्थ ॥६॥
मस्ती से होकर उन्मत्त । जीवघात कुटुंबघात । अप्रमाण क्रिया में रत । इस कारण यमयातना ॥७॥
मर्यादा त्याग कर चलते । ग्रामाधिपति ग्राम को दंड देते । देशाधिपति देश को दंड देते । नीति न्याय त्यागने पर ॥८॥
देशाधिपति को दंड दे राव । राय को दंड दे देव । राजा न करे नीति न्याय । इस कारण यमयातना ॥९॥
अनीति से स्वार्थ देखे । रहे राजा पापी बन के । है नर्क अंत में राज्य के । इस कारण ॥१०॥
राजा राजनीति छोड़े । तो यम उसे दंडित करे । यम नीति छोड़ने पर दौड़ते । देवगण ॥११॥
देव ने मर्यादा लगाई ऐसे । इस कारण चलें नीति से । नीति न्याय छोडने से । भोगनी पडे यमयातना ॥१२॥
देव ने प्रेरित किया यम । इस कारण आधिदैविक नाम । तृतीय ताप दुर्गम । यमयातना का ॥१३॥
यमदंड यमयातना । शास्त्रों में बोले हैं प्रकार नाना । वह भोग कदापि चूके ना । इसका नाम आधिदैविक ॥१४॥
यमयातना के खेद । शास्त्रों में कहे हैं विशद । शरीर में उत्पन्न अप्रमाद । नाना प्रकार से ॥१५॥
पाप पुण्य के शरीर । स्वर्ग में होते कलेवर । उनमें डालकर नाना प्रकार । से पाप पुण्य भोगने लगाते ॥१६॥
नाना पुण्य से नाना विलास । नाना दोषों से यातना कर्कश । शास्त्रों में कहे अविश्वास । मानें ही नहीं ॥१७॥
वेदाज्ञा से न चलते । हरीभक्ति न करते । उसे यमयातना कराते । इसका नाम आधिदैविक ॥१८॥
अक्षोभ नरक में अपार जीव । पुराने कीडे करते रवरव । बांधकर रखते हांथ पांव । इसका नाम आधिदैविक ॥१९॥
प्रचंड फैलाव संकरा मुख । कुंभाकार कुंभ एक । दुर्गंधि गर्मी कुंभपाक । इसका नाम आधिदैविक ॥२०॥
तप्त भूमि पर तपाते । जलते स्तंभ से बांधते । नाना संड़सा लगाते । इसका नाम आधिदैविक ॥२१॥
यमदंड की असीम मार । यातना की सामग्री अपार । भोग भोगते पापी नर । इसका नाम आधिदैविक ॥२२॥
पृथ्वी पर मार नाना । उससे भी कठिन यमयातना । मारते अंत ही होता ना । इसका नाम आधिदैविक ॥२३॥
चार चहुं ओर खींचते । एक वह धक्के से गिराते । तानते मारते खींच ले जाते । इसका नाम आधिदैविक ॥२४॥
उठ सके ना बैठ सके ना । रो सके ना लेट सके ना । यातना ऊपरांत यातना । इसका नाम आधिदैविक ॥२५॥
आक्रंदन करे सिसके रोये । धक्काबुक्की से भ्रमिष्ट होये । सूखा पंजर होकर जूझे । इसका नाम आधिदैविक ॥२६॥
कर्कश वचन कर्कश मार । यातना के नाना प्रकार । त्रस्त होते दोषी नर । इसका नाम आधिदैविक ॥२७॥
पहले कहा राजदंड । उससे यमदंड उदंड । वहां की यातना प्रचंड । भीमरूप दारुण ॥२८॥
आध्यात्मिक आधिभौतिक । उससे विशेष आधिदैविक । अल्प संकेत से कुछ एक । समझने हेतु कहे हैं ॥२९॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आधिदैविकतापनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : November 30, 2023

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