जगज्जोतिनाम - ॥ समास पहला - अंतःकरणएकनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सबका अंतःकरण एक । अथवा एक नहीं अनेक । ऐसा यह निश्चयात्मक । मुझे निरूपित करें ॥१॥
ऐसा श्रोता ने किया प्रश्न । अंतःकरण एक अथवा भिन्न । इसका उत्तर श्रवण । करना चाहिये श्रोताओं ने ॥२॥
समस्तों का अंतःकरण एक । निश्चित जानो निश्चयात्मक । यह प्रत्यय का विवेक । तुझे निरूपित किया ॥३॥
श्रोता कहे वक्ता से । अंतःकरण सबका एक जैसे । फिर भी मिलेना एक दूसरे से । किस कारणवश ॥४॥
एक के खाने से सभी तृप्त । एक की शांति से सारे शांत । एक मरने से सारे मृत । होना चाहिये ॥५॥
एक सुखी एक दुःखी । चले ऐसे लोकरीति । पहचान एक अंतःकरण की । कैसे करें ॥६॥
जनों की अलग अलग भावना । कोई किसी से मिले ना । इसलिये अनुमान इसका । होता नहीं ॥७॥
अंतःकरण एक होता । तो एक का दूसरे को समझ जाता । कुछ भी छुपकर न रहता । गुप्त गूढ ॥८॥
इस कारण अनुमान हो सकेना । अंतःकरण एक यह होये ना । विरोध जनों में रहता । किस कारण ॥९॥
सर्प डसने आता । प्राणी डरकर भागता । अगर अंतःकरण एक होता । तो न रहता विरोध ॥१०॥
श्रोताओं की आशंका ऐसे । वक्ता कहे न हो विचलित इससे । सुनो सावधानी से । निरूपण ॥११॥
अंतःकरण याने ज्ञातृत्व । ज्ञातृत्व ज्ञानबोधक स्वभाव । देहरक्षण का उपाय । जानने की कला ॥१२॥
सर्प समझ से डसने आया । प्राणी समझ से भाग गया । दोनों ओर ज्ञातृत्व की कला । देखो अच्छी तरह ॥१३॥
दोनों ओर ज्ञातृत्व देखा । तब अंतःकरण एक ही हुआ । विचार करने पर प्रत्यय आया । ज्ञातृत्वरूप में ॥१४॥
ज्ञातृत्व के रूप में अंतःकरण । सभी का एक यह प्रमाण । जीवमात्र को ज्ञातापन । एक ही है ॥१५॥
एक ही दृष्टि का देखना । एक ही जिव्हा का चखना । सुनना स्पर्श करना सूंघना । सभी को एक सा ॥१६॥
पशु पक्षी चींटी कीड़े । जीव निर्माण जग में । ज्ञातृत्व कला सबके लिये । एक ही है ॥१७॥
जल शीतल सबके लिये । अग्नि दाहक सबके लिये । अंतःकरण सबके लिये । केवल ज्ञातृत्व कला ॥१८॥
पसंद नापसंद हुई निर्माण । फिर देहस्वभाव ही इसका कारण । परंतु इसका हुआ ज्ञान । अंतःकरण योग से ॥१९॥
सबका अंतःकरण एक । यह निश्चय निश्चयात्मक । जानो उसका कौतुक । चारों ओर ॥२०॥
इससे हुआ आशंका निरसन । अब ना करो अनुमान । ज्ञातृत्व सारा एक । अंतःकरण का ॥२१॥
ज्ञातृत्व से जीव चारा लेते । ज्ञातृत्व से भय वश छुपते । ज्ञातृत्व से ही भाग जाते । प्राणीमात्र ॥२२॥
कीड़े चींटी से ब्रह्मादि तक । सबमें अंतःकरण एक । इस बात का कौतुक । प्रत्यय से जानें ॥२३॥
छोटा बड़ा फिर भी अग्नि । थोड़ा बहुत फिर भी पानी । न्यून पूर्ण फिर भी प्राणी । समझते अंतःकरण से ॥२४॥
कहीं कम कहीं अधिक । परंतु सबका अंश एक । जंगम' प्राणी कोई एक । ज्ञातृत्व बिन नहीं ॥२५॥
ज्ञातृत्व याने अंतःकरण । अंतःकरण विष्णु का अंश जान । विष्णु करते पालन । इस प्रकार से ॥२६॥
नासमझ प्राणी संहार करता । अज्ञातृत्व तमोगुण कहलाता । तमोगुण से रुद्र संहार करता । इस प्रकार से ॥२७॥
कुछ ज्ञातृत्व कुछ अज्ञातृत्व । यह रजोगुण का स्वभाव । ज्ञानी अज्ञानी जीव । जन्म लेते ॥२८॥
ज्ञातृत्व से होता सुख । अज्ञातृत्व से होता दुःख । सुखदुःख आवश्यक । उत्पत्ति गुण से ॥२९॥
समझने न समझने की बुद्धि । वही देह में जानें विधि । स्थूल देह में ब्रह्मा त्रिशुद्धि । उत्पत्तिकर्ता ॥३०॥
ऐसा उत्पत्ति स्थिति संहार । प्रसंगानुरूप कहा विचार । मगर इसका निर्धार । प्रत्यय से देखें ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे अंतःकरणएकनाम समास पहला ॥१॥
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Last Updated : December 05, 2023
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