हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|जगज्जोतिनाम| ॥ समास पांचवां - पंचप्रलयनिरूपणनाम ॥ जगज्जोतिनाम ॥ समास पहला - अंतःकरणएकनाम ॥ ॥ समास दूसरा - देहआशंकानाम ॥ ॥ समास तीसरा - देहआशंकाशोधननाम ॥ ॥ समास चौथा - बीजलक्षणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - पंचप्रलयनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - भ्रमनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - सगुणभजननिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - प्रचीतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां- प्रचीतनाम ॥ ॥ समास दसवां - चलाचलनिरूपणनान ॥ जगज्जोतिनाम - ॥ समास पांचवां - पंचप्रलयनिरूपणनाम ॥ श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पांचवां - पंचप्रलयनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ सुनो प्रलय के लक्षण । पिंड के दो प्रलय जान । एक निद्रा एक मरण । देहांतकाल ॥१॥ तीनों मूर्ति देहधारक । जब करते निद्रा संपादित । वह निद्राप्रलय ब्रह्मांड । का जानें श्रोता ॥२॥ तीनों मूर्तियों का होगा अंत । ब्रह्मांड का प्रस्तुत होगा कल्पांत । तब जानिये निश्चित । ब्रह्मप्रलय हुआ ॥३॥ दो पिंड में दो ब्रह्मांड में । चार प्रलय नवखंड में । पांचवा प्रलय उदंड है । जानिये विवेक का ॥४॥ ऐसे ये पांचों प्रलय । कथन किये यथान्वय । अब ये अनुभव में आये । ऐसे करूं ॥५॥ निद्रा का जब हो संचार । तब थमते जागृति व्यापार । सुषुप्ति अथवा स्वप्न । भरे अकस्मात ॥६॥ इसका नाम निद्राप्रलय । जागृति का होता क्षय । अब सुनो देहांतसमय । याने मृत्यप्रलय ॥७॥ देह में रोग प्रबल होते । अथवा कठिन प्रसंग आते । जिससे पंचप्राण जाते । कार्य छोड़कर ॥८॥ उधर गया मन पवन । इधर रहा केवल तन । दूसरे प्रलय में अनुमान । की जगह नहीं ॥९॥ तीसरा ब्रह्मा निद्रिस्थ हुआ । तब इस मृत्युलोक का गोला हुआ । सारा व्यापार कुंठित हुआ । प्राणिमात्रों का ॥१०॥ तब प्राणियों के सूक्ष्मांश । वायुचक्र में करते वास । प्रदीर्घकाल बीतने पर । ब्रह्मा को आती जागृति ॥११॥पुनः फिर से सृष्टि रचे । बिखरे जीव इकट्ठा करे । आयु की मर्यादा पूरी होते । होता ब्रह्मप्रलय ॥१२॥ सौ साल मेघ न आते । उससे प्राणी मृत्यु पाते । असंभाव्य क्षिती तड़के । मर्यादातीत ॥१३॥ सूर्य तपता बारा कला से । पृथ्वी की होती होली जिससे । पाताल में अग्नि पहुंचते । शेष करे विष वमन ॥१४॥ आकाश में सूर्य का ज्वाल । पाताल में शेष विष वमन तरल । दोनों ओर से जलें तो भूगोल । बचेगा कैसे ॥१५॥ सूर्य होता अति प्रखर । कोलाहल चारो ओर । गिरते मेरू के कगार । धडाधड ॥१६॥ अमरावती सत्यलोक । वैकुंठ कैलासादि एक । इनके अतिरिक्त नाना लोक । होते भस्म ॥१७॥ घसरे मेरू सारा ही । नष्ट होती उसकी महिमा । देव समुदाय प्रविष्ट होते । वायुचक्र में ॥१८॥ धरत्री भस्म होने पर । होती वृष्टि शृंडाधार' । यही घुलती जल के भीतर । निमिष मात्र में ॥१९॥ आगे बचेगा केवल जल । उसे सोख लेगा अनल । आगे इकट्ठे होते ज्वाल । मर्यादातीत ॥२०॥ समुद्र का वडवानल | शिवनेत्रों का नेत्रानल । सप्तकंचुकी का आवर्णानल । सूर्य और विद्युल्लता ॥२१॥ ऐसे ज्वाल इकट्ठे होते । उससे देव देह त्यागते । पूर्वरूप में मिल जाते । प्रभंजन में ॥२२॥ फिर वायु झपटे वैश्वानर पर । वन्हि बुझेगा अकस्मात् । वायु दौडे सैर भैर । परब्रह्म में ॥२३॥ धूम्र पिघले आकाश में । समीर का होता वैसे । बहुतों में थोडे का ऐसे । कहा है क्षय ॥२४॥ वायु लुप्त होते ही । सूक्ष्म भूत और त्रिगुण । ईश्वर त्यागे अधिष्ठान । निर्विकल्प में ॥२५॥ वहाँ समझ रह जाती । और जगज्जोति शांत होती । शुद्ध सारांश बचती । स्वरूपस्थिति ॥२६॥ जितने कुछ नामाभिधान है । वे प्रकृति के ही गुण से । प्रकृति न रहते बोल कैसे । बोलें ॥२७॥ प्रकृति रहते ही विवेक कीजिये । उसे विवेक प्रलय कहिये । स्पष्ट रूप में पांचो प्रलय किये । तुझे निरूपित ॥२८॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पंचप्रलयनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : December 05, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP