जगज्जोतिनाम - ॥ समास आठवां - प्रचीतनिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सुनो प्रचीति के लक्षण । प्रचित देखते वे सयाने जब । अन्य पागल दरिद्री हीन । प्रचीती के बिन ॥१॥
नाना सिक्के नाना रत्न । परखकर न लें तो होता नुकसान । प्रचित न आने पर निरूपण । में बैठे ही नहीं ॥२॥
अश्व शस्त्र दम लगने तक परखा । प्रचीति आई अच्छे से देखा । तब फिर खरीदना चाहिये । जानकारों ने ॥३॥
बीज उपजाऊ देखें । फिर द्रव्य देकर खरीदें। प्रचीति आनेपर सुनें । निरूपण ॥४॥
देह में आरोग्यता आई । ऐसी जनों को प्रचीति आई । तब फिर अवश्य लेनी । चाहिये मात्रा ॥५॥
प्रचीति बिन औषधि लेना । तब फिर अच्छा स्वास्थ्य भी बिगड़ाना । अनुमान से जो कार्य करना । वही मूर्खता ॥६॥
प्रचीति में नहीं आया । और सुवर्ण बनवाया । तब फिर जानें ठगाया । देखते देखते ॥७॥
शोध करे बिना । कारण तो एक रहे । निर्वाण न होगा । तो प्राण पे असर होए ॥८॥  
खोजकर इस कारण अनुमान का कार्य । कदापि न करें भले जन । उपाय करें तो अपाय । निश्चित होगा ॥९॥
पानी में बैठे भैंस की खरीदी । करना यह बुद्धि ही खोटी । पूछताछ बिन दुख की स्थिति । निश्चित होगी ॥१०॥
विश्वास पर घर खरीदा । ऐसा कितने नहीं सुना । कपटी ने कपट किया । परंतु उसे खोजना चाहिये ॥११॥
पुछताछ बिन अन्नवस्त्र लेना । उससे प्राण गंवाना । दांभिक का विश्वास करना । है मूर्खता ॥१२॥
धरने पर चोरों की संगत । तत्त्वतः होगा घात । खोजने पर लफंगे ठग । हांब पर तुरंत ही दिखते ॥१३॥
झूठे वजन माप करते । कोई नये सिक्के बनाते । कपट नाना प्रकार के । खोजकर देखें ॥१४॥
दिवालियों का ठाठबाट । देखें तो वैभव दिखे उदंड । मगर वह पूरा थोथांड । फजीयत आगे ॥१५॥
वैसे प्रचीति बिन ज्ञान । वहां नहीं समाधान । करके बहुतों का अनुमान । अनहित हुआ ॥१६॥
मंत्र यंत्र उपदेश किये । अज्ञानी प्राणी फंसाये । वैसे ढंककर मार दिये । दर्द पीडित ॥१७॥
वैद्य देखा मगर कच्चा । फिर प्राण गंवायां बच्चे का । वहां उपाय औरों का । क्या चले ॥१८॥
दुःख से अंतरंग में जूझे । और वैद्य पूछें तो लजाये । तब फिर उसको सजे । आत्महत्यारापन ॥१९॥
ज्ञाता गर्व किया । वेश तुच्छ माना । फिर भी अज्ञानी के लिये डूबा । यहां किसका घात हुआ । देखो तो भला ॥२०॥
पाप हुये खंडित । जन्म यातना का हुआ अंत । ऐसी स्वयं पाया प्रचीत । याने अच्छा ॥२१॥
परमेश्वर को पहचाना । स्वयं कौन यह समझा । आत्मनिवेदन हुआ । याने अच्छा ॥२२॥
ब्रह्मांड किसने रचाया । किससे इसे खड़ा किया । मुख्य कर्ता को पहचाना । याने अच्छा ॥२३॥
यहां अनुमान में रहा । फिर किया परमार्थ वह व्यर्थ हुआ । प्राणी संशय में डूबा । प्रचीति बिन ॥२४॥
यह परमार्थ का मर्म । झूठा है कहे वह अधम । झूठा माने वह अधमाधम । यथार्थ जानें ॥२५॥
यहां बोलने की हुई सीमा । अज्ञानी को ना समझे परमात्मा । असत्य नहीं है सर्वोत्तमा । तू ही जाने ॥२६॥
मेरी उपासना का महत्त्व । ज्ञान कहूं साचार। मिथ्या हैं तो उत्तर । लगता प्रभू को ॥२७॥
इस कारण सत्य ही कथन किया । कर्ता को चाहिये पहचानना । मायोद्भव की खोजना । चाहिये जड़ ॥२८॥
आगे बही निरूपण । कथन का ही पुनः कथन प्रमाण । श्रोताओं सावध अंतःकरण । करके सुनें ॥२९॥
सूक्ष्मनिरूपण शुरू हुआ । वहां जो कहा वही पुनः कहा । श्रोतां को चाहिये समझना । इस कारण ॥३०॥
प्रचित देखते ही निकट । उड़ जाता परिपाठ । इस कारण यह खटपट । करनी पड़े ॥३१॥
परिपाठ ही कथन किया । फिर प्रचित समाधान खो गया । प्रचित समाधान दृढ किया। फिर परिपाठ उड़े ॥३२॥
ऐसा संकट दोनों ओर । इस कारण ही कहना पडता बारबार । दोनों को सुरक्षित रखकर । सुलझाकर दिखाऊं ॥३३॥
परिपाठ और प्रचित प्रमाण । दोनों को रखकर निरूपण । श्रोता परम विचक्षण । आगे विवरण करें ॥३४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे प्रचीतनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : December 05, 2023

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