जगज्जोतिनाम - ॥ समास छठवां - भ्रमनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
उत्पत्ति स्थिति संहार । इसका निरूपित किया व्यवहार । परमात्मा निर्गुण निराकार । जैसे का वैसा ॥१॥
थे रहते और जाते । इसका नहीं संबंध उससे । आद्य मध्य अवसान । है वह व्याप्त ही ॥२॥
परब्रह्म रहे ही रहे । मध्य ही में भ्रम भासे । भासे परंतु सारा नष्ट होये । कालांतर में ॥३॥
उत्पत्ति स्थिति संहार होता । बीच में ही अखंड होते रहता । आगे अंत में कल्पांत होता । सबका ॥४॥
इसमें जिसे विवेक होता । वह पहले ही से जानता । सारासार विचार से देखता । इस कारण ॥५॥
बहुत भ्रमिष्ठ इकट्ठा हुये । वहां समझदारों की क्या चले । सृष्टि में समझनें वाले । ऐसे थोड़े ॥६॥
उन समझदारों के लक्षण । कुछ करूं निरूपण । भ्रम से विलक्षण । महापुरुष ॥७॥
भ्रम यह न होगा जिसे । मन में पहचानें उसे । सुनो अब भ्रम कैसे । है निरूपित ॥८॥
एक परब्रह्म व्याप्त रहा । कदापि नहीं विकारित हुआ । इससे अलग जो भास हुआ । वह भ्रमरूप ॥९॥
जिन्हें कहा गया कल्पांत । त्रिगुण और पंचभूत । यह सारे ही समस्त । भ्रमरूप ॥१०॥
मैं तू यह भ्रम । उपासना यह भी भ्रम । ईश्वरभाव यह भी भ्रम । निश्चयात्मक ॥११॥
॥ श्लोक ॥ भ्रमेणाहं भ्रमेणत्वं भ्रमेणोपासका जनाः । 'भ्रमणेश्वरभावत्वं भ्रममूलमिदं जगत् ॥१॥
इस कारण है सृष्टि भासित । परंतु भ्रम ही यह समस्त । इसमें जो विचारवंत । वे ही धन्य ॥१२॥
अब भ्रम का विचार । करूं अत्यंत ही प्रांजल । दृष्टांत द्वारा करें विवरण । श्रोताओं को ॥१३॥
भ्रमण करने पर दूर देश में । दिशाभूल होती हमें । या अपने की पहचान भूलते । इसका नाम भ्रम ॥१४॥
द्रव्य उन्मत्त सेवन किये । जिससे अनेक भास होने लगे । नाना व्यथा या भूत झपटे । इसका नाम भ्रम ॥१५॥
दशावतार में लगती नारी । या जो रची बाजीगरी । अंतरंग से संदेह व्यर्थ ही । इसका नाम भ्रम ॥१६॥
रखी चीज भूल गया । या मार्ग पर चलते भटक गया । महानगरी में घबरा गया । इसका नाम भ्रम ॥१७॥
वस्तु अपने पास रहे । गई कहकर दुश्चित होये । अपने आप को भूले । इसका नाम भ्रम ॥१८॥
कुछ पदार्थ भूल गया । या जो सीखा वह भूल गया । स्वप्नदुःख से डर गया । इसका नाम भ्रम ॥१९॥
दुश्चिन्ह अथवा अपशकुन । मिथ्या वार्ता से भंगता मन । बिचके पदार्थ देखकर । इसका नाम भ्रम ॥२०॥
वृक्ष काष्ठ देखा । मन को लगा भूत आया । कुछ ना रहते हड़बड़ाया । इसका नाम भ्रम ॥२१॥
कांच समझ गिरे जल में। या सभा का प्रतिबिंब देखे दर्पण में । द्वार भूलकर जाये भूलते ही दिशा में । जानें इसका नाम भ्रम ॥२२॥
एक रहते दूसरा लगे । एक कहते दूसरा समझे । एक दिखते दूसरा भासे । इसका नाम भ्रम ॥२३॥
अभी जो जो देंगे । वही पायेंगे आगे । मृत मनुष्य भोजन को आते । इसका नाम भ्रम ॥२४॥
इस जन्म का अगले जन्म में। कुछ एक पाऊंगा मैं । प्रीति बंधी मनुष्य के नाम में । इसका नाम भ्रम ॥२५॥
मृत मनुष्य स्वप्न में आया । उसने कुछ मांगा । मन में अखंड बैठा । इसका नाम भ्रम ॥२६॥
सारा मिथ्या ऐसा कहे । और सामर्थ्य की लालसा मन में । ज्ञाता को दबाया वैभव ने । इसका नाम भ्रम ॥२७॥
कर्मठता से ज्ञान का कष्ट । या ज्ञातापन से बलपूर्वक भ्रष्ट । छोड़े कोई एक मर्यादा । इसका नाम भ्रम ॥२८॥
देहाभिमान कर्माभिमान । जात्याभिमान कुलाभिमान । ज्ञानाभिमान मोक्षाभिमान । इसका नाम भ्रम ॥२९॥
न्याय कैसा यह न समझे । किया अन्याय वह ना दिखे । व्यर्थ ही अभिमान से खौले । इसका नाम भ्रम ॥३०॥
पिछला कुछ याद आये ना । आगे का विचार सूझे ना । अखंड आरूढ अनुमान । इसका नाम भ्रम ॥३१॥
प्रचीति बिन औषधि लेना । प्रचीति ना होते भी पथ्य करना । प्रचीति बिन ज्ञान कहना । इसका नाम भ्रम ॥३२॥
फलश्रुति बिन प्रयोग । ज्ञानबिन केवल योग । व्यर्थ ही शरीर से भोगता भोग । इसका नाम भ्रम ॥३३॥
ब्रह्मा लिखे अदृष्टि । और पढ़कर जाती षठी । कहानियाँ इस प्रकार की। इसका नाम भ्रम ॥३४॥
उदंड भ्रम का विस्तार हुआ । अज्ञानी जनों में फैला । अल्प संकेत से कहा । समझाने के लिये ॥३५॥
भ्रमरूप विश्व सहज । वहां क्या करें कथन । निर्गुण ब्रह्म छोड़ समस्त । भ्रमरूप ॥३६॥
ज्ञाता को नहीं संसार । ऐसे कहते अपार । गत ज्ञाताओं के चमत्कार । इसका नाम भ्रम ॥३७॥
यहां आशंका उठी । ज्ञाता के समाधि की पूजा की । वहां कुछ अनुभूति आई । अथवा नहीं ॥३८॥
वैसे ही अवतार हो गये । उनका भी सामर्थ्य उदंड चले । फिर वे क्यों उलझ गये । वासना लेकर ॥३९॥
ऐसी आशंका उद्भूत हुई । समर्थ ने मिटानी चाहिये। इससे यहां संपूर्ण हुई । कथा भ्रम की ॥४०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे भ्रमनिरूपणनाम समास छठवां ॥६॥
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Last Updated : December 05, 2023
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