हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|विवेकवैराग्यनाम| ॥ समास आठवां - कालरूपनाम ॥ विवेकवैराग्यनाम ॥ समास पहला - विमललक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - प्रत्ययनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - भक्तनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - विवेकवैराग्यनाम ॥ ॥ समास पांचवां - आत्मनिवेदननाम ॥ ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - विषयत्यागनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - कालरूपनाम ॥ ॥ समास नववां- येत्नसिकवणनाम ॥ ॥ समास दसवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास आठवां - कालरूपनाम ॥ इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास आठवां - कालरूपनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ मूलमाया जगदीश्वर । आगे अष्टधा का विस्तार । सृष्टिक्रम का आकार । हुआ आकारित ॥१॥ ये सारा ही न हो तो निर्मल । जैसा गगन अंतराल । निराकार में समयकाल । कुछ भी नहीं ॥२॥ उपाधि का विस्तार हुआ । वहां काल दिखाई दिया । अन्यथा देखें तो काल का । ठांव ही नहीं ॥३॥एक चंचल एक निश्चल । इससे अलग कहां है काल । जब तक है चंचल । तब तक काल कहें ॥४॥आकाश याने अवकाश । विलंब को कहते अवकाश । जो काल का विलंबवेष । जान लो उसे ॥५॥ विलंब समझे सूर्य के कारण । सबकी गणना का होता आकलन । पल से लेकर युगपर्यत । होता है ॥६॥पल घटिका प्रहर दिवस । अहोरात्र पक्षमास । षडमास वर्ष युग तक । माप सके ॥७॥ कृत त्रेता द्वापर कलि । भूमंडल में सख्या चली । देवों की आयु है निराली । शास्त्रों में निरूपित ॥८॥ बह देवत्रय की खटपट । सूक्ष्मरूप में विलगट । दंडक टूटने पर छटपट । लोगों में होती ॥९॥ मिश्रित त्रिगुण पृथक होये ना । उनसे आद्यंत सृष्टिरचना । कौन बडा कौन नन्हा । कैसे कहें ॥१०॥अस्तु यह काम ज्ञाता के । अज्ञानी व्यर्थ ही उलझे भ्रम से । प्रत्यय से जानकर वर्म ये । ज्ञात करें ॥११॥उत्पन्नकाल सृष्टिकाल । स्थितिकाल संहारकाल । आद्यंत संपूर्ण काल । विलंबरूपी ॥१२॥ जो जो जिस प्रसंग में हुआ । वह उस काल का नाम हुआ । ठीक से अनुमान न हो पाया । तो सुनो आगे ॥१३॥ पर्जन्यकाल शीतकाल । उष्णकाल संतोषकाल । सुखदुःखआनंदकाल । का प्रत्यय आता ॥१४॥ प्रातःकाल मध्यान्हकाल । सायंकाल वसंतकाल । पर्वकाल कठिन-काल । जानते लोग ॥१५॥ जन्मकाल बाल्यकाल । तारुण्यकाल वृद्धापकाल । अंतकाल विषमकाल । समयरूप में ॥१६॥ सुकाल और दुष्काल । प्रदोषकाल पुण्यकाल । सभी समय मिलाकर काल । कहते उसे ॥१७॥ रहे एक लगता एक । इसका नाम हीन विवेक । नाना प्रवृत्ति के लोक । प्रवृत्ति जानते ॥१८॥ प्रवृत्ति चले अधोमुख से । निवृत्ति दौडे ऊर्ध्वमुख से । नाना सुख ऊर्ध्वमुख से । विवेकी जानते ॥१९॥ब्रह्मांडरचना जहां से हुई । वहां विवेकी डाले दृष्टि । विवरते विवरते प्राप्त हुई । पूर्वापरिस्थिति ॥२०॥प्रपंची होकर भी जो परमार्थ देखे । वही इस स्थिति तक पहुंचे । प्रारब्ध योग से रहे । लोगों में ॥२१॥समस्तों का एक ही मूल । एक ज्ञानी एक वाचाल । विवेक कर तत्काल । परलोक साधे ॥२२॥ तभी जन्म का सार्थक । भले जन देखते उभय लोक । कारण मूल का विवेक । देखना चाहिये ॥२३॥विवेकहीन जो जन । उन्हें जानें पशुसमान । उनका सुनने पर भाषण । परलोक कैसा ॥२४॥ भला हमारा क्या गया । जो किया उसका फल पाया । वहीं उगा जो था बोया । भोगते अब ॥२५॥ आगे भी करोगे वही पाओगे । भक्तियोग से भगवंत मिलते । देव भक्त मिलने से होये । दुगुना समाधान ॥२६॥ कीर्ति न पाकर मर गये । वे व्यर्थ ही आये और गये । सयाने होकर भूल गये । क्या कहें ॥२७॥ यहां का यहीं सारा ही रहता । ऐसा प्रत्यय में आता । कौन क्या लेकर जाता । कहो तो सही ॥२८॥ पदार्थ के लिये रहें उदास । विवेक देखें विशेष यथावकाश । इस तरह से जगदीश । का अलभ्य लाभ होता ॥२९॥ जगदीश से परे लाभ नहीं । कार्याकरण सर्व ही । संसार करते हुये भी । समाधान ॥३०॥ पहले हो गये जनकादिक । राज्यकर्ता भी अनेक । वैसे अब भी पुण्यश्लोक । हैं कितने सारे ॥३१॥ राजा रहते मृत्यु आई । लक्षकोटि कबूल हुये भी । फिर भी उसे छोड़ा नहीं । मृत्यु ने ॥३२॥ ऐसे यह पराधीन जीना । इसमें दुःखों को बुलाना । नाना उद्वेग चिंता करना । कहां तक ॥३३॥ हाट' भरा है संसार का । नफा देखें देव का । तभी कुछ इस कष्ट का । पर्याय होता ॥३४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कालरूपनाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 08, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP