तत्त्वान्वय का - ॥ समास दूसरा - सूर्यस्तवननिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
धन्य धन्य यह सूर्यवंश । सकल वंशों में विशेष । मार्तण्डमण्डल का प्रकाश । फैला भूमंडल में ॥१॥
सोम अंग में है लांछन । एक पक्ष में होता क्षीण । रवि किरण फैलते ही जो स्वयं । होता कलाहीन ॥२॥
सूर्य के समक्ष इस कारण । नहीं कोई दूसरा समान । जिसके प्रकाश से प्रकाशमा॑न । होते प्राणिमात्र ॥३॥
नाना धर्म नाना कर्म । उत्तम मध्यम अधम । सुगम दुर्गम नित्यनेम । चलते सृष्टि में ॥४॥
वेदशास्त्र और पुराण । मंत्र यंत्र नाना साधन । संध्या स्नान पूजाविधान । सूर्य बिन दयनीय ॥५॥
नाना योग नाना मत । देखें तो असंख्यात् । चलते अपने अपने पथ । सूर्योदय होने पर ॥६॥
प्रपंचिक अथवा परमार्थिक । कार्य करना कोई एक । दिन के बिन निरर्थक । सार्थक नहीं ॥७॥
सूर्य का अधिष्ठान आंखें । आंखें न हो तो फिर वे अंधे । इस कारण कुछ भी न चले । सूर्य बिन ॥८॥
कहोगे अंधे कवित्व करते । फिर यह भी सूर्य की ही गति । शीतल होने पर अपनी मति । तब मतिप्रकाश कैसा ॥९॥
उष्ण प्रकाश वह सूर्य का । शीत प्रकाश वह चंद्र का । उष्णत्व ना हो तो देह का । घात होता ॥१०॥
इसलिये सूर्य के बिन । सहसा न चले कारण । श्रोताओं आप विचक्षण । खोजकर देखें ॥११॥
हरिहरों की अवतार मूर्ति । शिवशक्ति के अनंत व्यक्ति । इनसे पूर्व था गभस्ति । अब भी है ॥१२॥
जितने संसार में आये । उन्होंने सूर्यसमक्ष व्यवहार किये । अंत में देह त्यागकर गये । प्रभाकर के समक्ष ॥१३॥
चंद्र इस पार हुआ । क्षीरसागर में मथकर निकाला । चौदा रत्नों में शामिल हुआ । बंधु लक्ष्मी का ॥१४॥
विश्वचक्षु यह भास्कर । ऐसे जानते छोटे बड़े । इस कारण दिवाकर । श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ ॥१५॥
अपार नभमार्ग क्रमण । ऐसा ही प्रत्यय से आवागमन । इस लोकोपकार का कारण । आज्ञा समर्थ की ॥१६॥
दिन ना हो तो अंधकार । सब ना समझे सारासार । दिन के बिना तस्कर । अथवा दिवाभीत पक्षी ॥१७॥
सूर्य के सामने अन्य । किसे लायें समक्ष । तेजोराशि निश्चित । उपमारहित ॥१८॥
ऐसे यह सविता सब का । है पूर्वज रघुनाथ का । अगाध महिमा मानवी वाचा । क्या वर्णन कर सके ॥१९॥
रघुनाथवंश पूर्वापार । एक से एक बढकर । मुझ मतिमंद को यह विचार । कैसे समझे ॥२०॥
रघुनाथ का समुदाय । वहां लगा जो अंतर्भाव । इस कारण बखानने उसका महत्त्व । वाग्दुर्बल मैं ॥२१॥
सकल दोषों का परिहार । करने पर सूर्य को नमस्कार । स्फूर्ति बढे निरंतर । सूर्यदर्शन से ॥२२॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सूर्यस्तवननिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥

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Last Updated : December 09, 2023

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