देवशोधन नाम - ॥ समास चौथा - ब्रह्मनिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
कृतयुग सत्रह लक्ष अठ्ठाईस सहस्त्र । त्रेतायुग बारह लक्ष छियानबे सहस्त्र । द्वापर आठ लक्ष चौंसठ सहस्त्र । अब कलियुग सुनें ॥१॥
कलियुग चार लक्ष बत्तीस सहस्त्र । चतुर्युग त्रयालीस लक्ष बीस सहस्त्र । ऐसे चतुर्युगसहस्त्र । वह ब्रह्मा का एक दिवस ॥२॥
ऐसे ब्रह्मा के सहस्त्र देखो । तब विष्णु की एक घटिका जानो । विष्णु के सहस्त्र होते ही सुनो । पल एक ईश्वर का ॥३॥
ईश्वर के जाते सहस्त्र पल । वह शक्ति का अर्ध पल । ऐसी संख्या कही सकल । शास्त्रांतर में ॥४॥
॥ श्लोक ॥    
चतुर्युगसहस्त्राणि दिनमेकं पितामहम् ।
पितामहसहस्त्राणि विष्णोर्घटिकमेव च ॥१॥
विष्णोरेकसहस्त्राणि पलमेकं महेश्वरम् ।
महेश्वारसहस्त्राणि शक्तेरर्ध पल भवेत् ॥२॥

ऐसी अनंत शक्ति होती । अनंत रचना होते जाती । फिर भी अखंड खंडित हो ना स्थिति । परब्रह्म की ॥५॥
परब्रह्म की कैसी स्थिति । मगर यह बोलने की रीति । वेदश्रुति नेति नेति । परब्रह्म में ॥६॥
चार सहस्त्र सात सौ साठ । इतनी हुई कलियुग की रहट । बचे कलियुग की कथा । ऐसी है ॥७॥
चार लक्ष सत्ताईस सहस्त्र । दो सौ चालीस संवत्सर । आगे अन्योन्य वर्णसंकर । होने वाला है ॥८॥
ऐसे रचाया सचराचर । यहां एक से एक बढकर । देखें अगर यहां का विचार । अंत न लगे ॥९॥
एक कहता विष्णु महान । एक कहता रूद्र महान । एक कहता शक्ति महान । सभी में ॥१०॥
ऐसा अपनी अपनीतरह से बोलते । परंतु सभी नष्ट होगा कल्पांत में । यदृष्टं तन्नष्टं ऐसे । श्रुति कहती है ॥११॥
अपनी अपनी उपासना का। जनों को अभिमान रहता । इसका निश्चय हो पाये ना । साधु बिन ॥१२॥
साधु निश्चय करते एक । आत्मा सर्वत्र व्यापक । अन्य जो वह सभी मायिक । सचराचर ॥१३॥
चित्र में बनाई सेना । इसमें कौन बडा कौन छोटा । यह आप पूछिये ना । अपने आप से ॥१४॥
स्वप्न में उदंड देखा । छोटा बडा कल्पित किया। मगर जागे जाने पर हुआ । कैसे देखो ॥१५॥
देखने पर जागृति का विचार । कौन छोटा कौन श्रेष्ठ । हुआ सारा ही विस्तार । स्वप्न रचना का ॥१६॥
सारा ही मायिक विचार । कैसे छोटा कैसा श्रेष्ठ । छोटे बडे का निर्धार । जानते ज्ञानी ॥१७॥
जो जन्म लेकर आ गया । वह मैं महान कहते ही मरा । मगर इसका विचार देखना । चाहिये श्रेष्ठों ने ॥१८॥ ‍
जिसे हुआ आत्मज्ञान । वे ही श्रेष्ठ महाजन । वेदशास्त्रपुराण साधु जन । कहते हैं ॥१९॥
एवं सभी में जो श्रेष्ठ । वह एक ही परमेश्वर । उसी में हरिहर । होते रहते ॥२०॥
वह निर्गुण निराकार । वहां नहीं उत्पत्ति संहार । स्थानमान का विचार । इस ओर ॥२१॥
नामरूप स्थानमान । ये तो सारा ही अनुमान । तथापि होगा निदान । ब्रह्म प्रलय में ॥२२॥
ब्रह्म अलग प्रलय से । ब्रह्म निराला नामरूप से । ब्रह्म होता किसी काल में । जैसे का तैसे ॥२३॥
करते ब्रह्मनिरूपण । जानते ब्रह्म संपूर्ण । वे ही जानियें ब्राह्मण । ब्रह्मविद ॥२४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे ब्रह्मनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥

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Last Updated : December 01, 2023

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