प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ॥

यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
ब्रह्म निर्मल निश्चल । जैसा गगन अंतराल । निराकार केवल । निर्विकारी ॥१॥
अंत ही नहीं वह अनंत । शाश्वत और सदोदित । असंत नहीं वह संत । सर्वकाल ॥२॥
परब्रह्म वह अविनाश । जैसे आकाश अवकाश । ना टूटे ना फूटे सावकाश । जैसे वैसे ॥३॥
वहां ज्ञान ना अज्ञान । वहां स्मरण ना विस्मरण । वहां अखंड निर्गुण । निरावलंबी ॥४॥
वहां सूर्य चंद्र ना पावक । नहीं अंधेरा ना प्रकाशक । उपाधि से अलग एक । निरोपाधि ब्रह्म ॥५॥
निश्चल में स्मरण चेता। वही चैतन्य ऐसी की कल्पना । गुण समानत्व से हुआ। गुणसाम्य ऐसे ॥६॥
गगन में आई अभ्रछाया' । वैसे ही जानिये मूलमाया । उद्भव और विलया । समय नहीं ॥७॥
निर्गुण में गुणविकारु । वही षड्गुणेश्वरु । अर्धनारीनटेश्वरु । उसे ही कहते ॥८॥
आदिशक्ति शिवशक्ति । मूलमें है सर्वशक्ति । उसी से आगे नाना व्यक्ति । हुये निर्माण ॥९॥
वहां से आगे शुद्धसत्त्व । रजतम का गूढत्व । उसे ही कहिये महतत्त्व । गुणक्षोभिणी ॥१०॥
मूलमें रहती ही ना व्यक्ति । वहां कैसी शिवशक्ति । ऐसा कहोगे तो भी । चित्त में सावधानी रहे ॥११॥
ब्रह्मांड से पिंड । अथवा पिंड से ब्रह्मांड । अधोर्ध देखे तो गूढ़ । समझ में आता ॥१२॥
बीज फोडकर देखा मन में । वहा फल तो ना दिखे । बढ़ते बढ़ते आगे । नाना फल आते ॥१३॥
फल फोडे तो बीज दिखे । बीज फोडने पर फल ना दिखे । वैसा ही विचार है । पिंड ब्रह्मांड का ॥१४॥
नर नारी दोनो भेद । पिंड में दिखते प्रसिद्ध । मूलतः ही ना हो तो विशद । होंगे कैसे ॥१५॥
नाना बीजरूप कल्पना । उनमें क्या कुछ रहे ना । सूक्ष्म इस कारण भासे ना । एकाएक ॥१६॥
स्थूल का मूल वासना । वह वासना पहले दिखेना । स्थूल से अलग अनुमान होये ना । सब कुछ ॥१७॥
कल्पना से सृष्टि रचायी । ऐसी वेदशास्त्रों की कथनी । दिखे ना कहकर मिथ्या कही । ऐसा ना हो ॥१८॥
परदा एक एक जन्म का । वहां विचार समझे कैसा । परंतु गूढत्व यह नियम का । स्थान है ॥१९॥
नाना पुरुषों के जीव । नाना स्त्रियों के जीव । एक ही मगर देहस्वभाव । भिन्न भिन्न ॥२०॥
दुल्हन को दुल्हन ना लगे । ऐसा भेद दिखने लगे । पिंड से समझने लगे । ब्रह्मांडबीज ॥२१॥
दुल्हन का मन दुल्हे के ऊपर । दुल्हे का मन दुल्हन पर । ऐसा वासना का प्रकार । देखें मूल से ॥२२॥
वासना मूलतः ही अभेद । देहसंबंध कारण हुआ भेद । टूटते ही देह का संबंध । भेद गया ॥२३॥
नरनारी का बीजकारण । शिवशक्ति में है जान । देह धारण करते ही प्रमाण । समझ में आये ॥२४॥
नाना प्रीति की वासना । किसी को किसी का समझेना । तीक्ष्ण दृष्टि से अनुमान । में आता कुछ कुछ ॥२५॥
बालक का संगोपन करे जननी । पुरुष से यह होता नहीं। उपाधि जिससे बढती । वह यह वनिता ॥२६॥
उबान नहीं घृणा नहीं । आलस नहीं त्रास नहीं । इतनी माया कहीं भी नहीं । माता के सिवा ॥२७॥
नाना उपाधि बढाना जाने । अनेक माया में उलझाना जाने । नाना प्रीति लगाना जाने । नाना प्रपंचों की ॥२८॥
पुरुष को स्त्री का विश्वास । स्त्री को पुरुष से संतोष । वासना ने आपस । में बांध रखा ॥२९॥
ईश्वर ने महान सूत्र बनाया । मनुष्यमात्र उलझ कर रह गया । लोभ का जंजाल निर्माण किया । सुलझे ना ऐसा ॥३०॥
ऐसी पसंद एक दूसरे के प्रति । स्त्री पुरुषों की महान अभिरुचि । यह प्रत्यक्ष मूल से ही चलती आई। देखें विवेक से ॥३१॥
मूल में सूक्ष्म निर्माण हुआ । आगे स्पष्ट दिखाई दिया। उत्पत्ति का कार्य चलने लगा । दोनों के कारण ॥३२॥
शिवशक्ति मूलतः खरा । आगे हुये वधू वर । चौरासी लक्ष का विस्तार । विस्तारित हुआ जो ॥३३॥
यहां शिवशक्ति के रूप दिखाये । श्रोताओं ने मन में लाना चाहिये । विवरण के बिना कहा जाये । वह व्यर्थ जानें ॥३४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे शिवशक्तिनिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥

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Last Updated : December 09, 2023

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