प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥

यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
स्थूल सूक्ष्म कारण महाकारण । ऐसे ये चत्वार देह जान । जागृति स्वप्न सुषुप्ति पूर्ण । तुर्या जानिये ॥१॥
विश्व तैजस प्राज्ञ । प्रत्यगात्मा ये अभिमान । नेत्रस्थान कंठस्थान हृदयस्थान । और मूर्धनी ॥२॥
स्थूलभोग प्रविविक्तभोग । आनंदभोग आनंदावभासयोग । ऐसे ये चत्वार भोग । चार देहों के ॥३॥
अकार उकार मकार । अर्धमात्रा वह ईश्वर । ऐसी मात्रा चत्वार । चार देहों की ॥४॥
तमोगुण रजोगुण । सत्त्वगुण शुद्धसत्वगुण । ऐसे ये चत्वार गुण । चार देहों के ॥५॥
क्रियाशक्ति द्रव्यशक्ति । इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति । ऐसी चत्वार शक्ति । चार देहों की ॥६॥
ऐसे ये बत्तीस तत्त्व । दोनों के पचास तत्त्व । सारे मिलाकर बयासी तत्त्व । अज्ञान और ज्ञान ॥७॥
ऐसे ये तत्त्व जानो । जानकर मायिक पहचानो । स्वयं साक्षी निरसन करो । इसप्रकार से ॥८॥
साक्षी याने ज्ञान । ज्ञान से पहचानें अज्ञान । ज्ञानाज्ञान का निरसन । देह के संग ॥९॥
ब्रह्मांड में देह कल्पित किया । विराट हिरण्यगर्भ कहा । उसका विवेक से निरसन किया । आत्मज्ञान से ॥१०॥
करने पर आत्मानात्मविवेक । देखने पर सारासार विचार । पंचभूतों की वार्ता मायिक । प्रचीति में आई ॥११॥
अस्थि मांस त्वचा नाडी रोम । ये पांचों ही पृथ्वी के गुणधर्म । प्रत्यक्ष शरीर में यह मर्म । खोजकर देखें ॥१२॥
शुक्लीत श्रोणीत लार मूत्र स्वेद । ये आप के पंचभेद । तत्त्व समझकर विशद । करके लीजिये ॥१३॥
क्षुधा तृष्णा आलस्य निद्रा मैथुन । ये पांचों भी तेज के गुण । इन तत्त्वों का निरूपण । पुनः पुनः करें ॥१४॥
चलन मोड प्रसारण । निरोध और आकुंचन । ये पांचों भी वायु के गुण । श्रोताओं जानिये ॥१५॥
काम क्रोध शोक मोह भय । ये आकाश के पर्याय । विवरण के बिना इन्हें क्या । समझ पायेंगे ॥१६॥
अस्तु ऐसा यह स्थूल शरीर । पच्चीस तत्त्वों का विस्तार । अब सूक्ष्मदेह का विचार । है कहा जाता ॥१७॥
अंतःकरण मन बुद्धि चित्त अहंकार । आकाश पंचक का विचार । आगे वायु निरुत्तर । होकर सुनें ॥१८॥
व्यान समान उदान । प्राण और अपान । ऐसे ये पांचों भी गुण । वायुतत्त्व के ॥१९॥
श्रोत्र त्वचा चक्षु जिव्हा घ्राण । ये पांचों भी तेज के गुण । अब आप सावधान । होकर सुनें ॥२०॥
वाचा पाणि पाद शिस्न गुद । ये आप के गुण प्रसिद्ध । अब पृथ्वी विशद । है निरूपित ॥२१॥
शब्द स्पर्श रूप रस गंध । ये पृथ्वी के गुण विशद । ऐसे ये पच्चीस तत्त्वभेद । सूक्ष्म देह के ॥२२॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे तनुचतुष्टयनाम समास नववां ॥९॥

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Last Updated : December 09, 2023

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