नवविधाभक्तिनाम - ॥ समास तीसरा - नामस्मरणभक्तिनाम ॥
‘हरिकथा’ ब्रह्मांड को भेदकर पार ले जाने की क्षमता इसमें है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे निरुपित किया कीर्तन । जो सकलों को करे पावन । अब सुनो विष्णोः स्मरण । तीसरी भक्ति ॥१॥
स्मरण देव का करे । अखंड नाम जपते जायें । नामस्मरण से पायें । समाधान ॥२॥
नित्यनियम से प्रातःकाल । माध्यान्हकाल सायंकाल । नामस्मरण सर्वकाल । करते जायें ॥३॥
सुख दुःख उद्वेग चिंता । अथवा आनंदरूप जब रहता । नामस्मरण बिन सर्वथा । रहें ही नहीं ॥४॥
हर्षकाल में विषमकाल में । पर्वकाल में प्रस्तावकाल में । विश्रांतिकाल में निद्राकाल में । नामस्मरण करें ॥५॥
उलझन झंझट संकट । नाना सांसारिक खटपट । अवस्था आते ही झटपट । नामस्मरण करें ॥६॥
चलते बोलते धंधा करते । खाते पीते सुखी होते । नाना उपभोग जब भोगते । नाम बिसरें नहीं ॥७॥
संपत्ति अथवा विपत्ति । जैसे होगी कालगति । नामस्मरण की स्थिति । त्यागें ही नहीं ॥८॥
सत्ता वैभव और सामर्थ्य । मिलते ही नाना पदार्थ । भोगते भाग्यश्री उत्कृष्ट । नामस्मरण त्यागें नहीं ॥९॥
पहले दुर्दशा फिर सुदशा । अथवा सुदशा के बाद दुर्दशा । प्रसंग हो चाहे जैसा । परंतु नाम त्यागें नहीं ॥१०॥
नाम से संकट नाश होते । नाम से विघ्ननिवारण होते । नामस्मरण से पाते । उत्तम पद ॥११॥
भूतपिशाच नाना छंद । ब्रह्मग्रह ब्राह्मण समंध । मंत्र विस्मृति नाना खेद । नामनिष्ठा से नाश होते ॥१२॥
नाम विषबाधा को हरती । नाम जादू टोटका मिटाती । नाम से होती उत्तम गति । अंतकाल में ॥ १३॥
बालपन तारुण्यकाल में । कठिनकाल वृद्धापकाल में । सर्वकाल अंतकाल में । नामस्मरण रहें ॥१४॥
नाम की महिमा जाने शंकर । जनों को उपदेश दे विश्वेश्वर । वाराणसी मुक्तिक्षेत्र । रामनाम के कारण ॥१५॥
नामजप कर उलट । वाल्मीक तर गया झटपट । भविष्य कहा शतकोट । चरित्र रघुनाथ का ॥१६॥
हरिनाम से प्रल्हाद तर गया । नाना आघातों से छूट गया । नारायणनाम से पावन हुआ । अजामेल ॥१७॥
नाम से पाषाण तरे । असंख्य भक्त उद्धार पाये । महापापी भी हुये । परम पवित्र ॥१८॥
अनंत नाम परमेश्वर के । नित्य स्मरण से तरते । नामस्मरण करने से । यम भी बाधे न ॥१९॥
सहस्त्रनामों में से कोई एक । कहने पर होता सार्थक । नामस्मरण से पुण्यश्लोक । होते हैं स्वयं ॥२०॥
कुछ भी न करे प्राणी । रामनाम जप करे वाणी । उससे संतुष्ट चक्रपाणी । भक्तों को संभालते ॥२१॥
नाम स्मरे निरंतर । वह जानें पुण्य शरीर । महादोषों के गिरिवर । रामनाम से होते नष्ट ॥२२॥
अगाध महिमा न कर सके कथित । नाम ने जन उद्धारे बहुत । हलाहल से हुये मुक्त । प्रत्यक्ष चंद्रमौली ॥२३॥
चारो वर्णों को नामाधिकार । नाम में नहीं छोटे बडे का विचार । जड़ मूढ भवपार । पाते नाम से ॥२४॥
इस कारण नाम अखंड स्मरें । रूप का मन में ध्यान करें । तीसरी भक्ति का सहजता से । किया निरुपण ॥२५॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे नामस्मरणभक्तिनाम समास तीसरा ॥३॥
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Last Updated : November 30, 2023
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