चतुर्दश ब्रह्म नाम - ॥ समास आठवां - श्रवणनिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने ऐसा यह अद्वितीय-अमूल्य ग्रंथ लिखकर अखिल मानव जाति के लिये संदेश दिया है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सुनो परमार्थ का साधन । जिससे होता समाधान । सो तू जान रे श्रवण । निश्चय से ॥१॥
श्रवण से स्वाधीन हो भक्ति । श्रवण से उद्भव हो विरक्ति । श्रवण से टूटे आसक्ति । विषयों की ॥२॥
श्रवण से हो चित्तशुद्धि । श्रवण से हो दृढ बुद्धि । श्रवण से टूटे उपाधि । अभिमान की ॥३॥
श्रवण से निश्चय होता । श्रवण से टूटे ममता । श्रवण से अंतरंग में होता । समाधान ॥४॥
श्रवण से आशंका मिटे । श्रवण से संशय टूटे। श्रवण होते ही पलटे । पूर्वगुण अपने ॥५॥
श्रवण से सम्हले मन । श्रवण से होता समाधान । श्रवण से टूटे बंधन । देहबुद्धि के ॥६॥
श्रवण से मैंपन जाये । श्रवण से धोखा न होये । श्रवण से नाना अपाय । भस्म होते ॥७॥
श्रवण से हो कार्यसिद्धि । श्रवण से लगे समाधि । श्रवण से हो सर्वसिद्धि । साधनों की ॥८॥
सत्संग में श्रवण । जिससे समझे निरूपण । श्रवण से होते है स्वयं । तदाकार ॥९॥
श्रवण से प्रबोध बढ़े । श्रवण से प्रज्ञा चढ़े । श्रवण से विषयों के घसीटे । टूट जाते ॥१०॥
श्रवण से विचार समझे । श्रवण से ज्ञान प्रबले । श्रवण से वस्तु निथरे । साधक को ॥११॥
श्रवण से सद्बुद्धि लगे । श्रवण से विवेक जागे । श्रवण से ये मन पीछे लगे । भगवान के ॥१२॥
श्रवण से कुसंग टूटे । श्रवण से काम हटे। श्रवण से क्रोध सूखे । एक साथ ॥१३॥
श्रवण से होता मोह नाश । श्रवण से स्फूर्ति का प्रकाश । श्रवण से सद्धस्तु का भास । निश्चयात्मक ॥१४॥
श्रवण से होती उत्तम गति । श्रवण से मिलती शांति । श्रवण से प्राप्त होती निवृत्ति । अचल पद ॥१५॥
श्रवण जैसा सार नहीं । श्रवण से होता सर्व ही। भवनदीप्रवाह में श्रवण ही । तरणोपाय होता ॥१६॥
श्रवण भजन का आरंभ । श्रवण सभी का सर्वारंभ । श्रवण से हो स्वयंभ । सभी कुछ ॥१७॥
प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति । श्रवण के बिन ना हो प्राप्ति । यह तो सब की अनुभूति । प्रत्यक्ष है ॥१८॥
सुने बिना समझे न। यह तो जानते है जन । इस कारण प्रयत्न मूल । श्रवण है पहले ॥१९॥
जो जीवन में सुना ही नहीं । वहां होता है संदेह ही । इसलिये दूसरी कोई । साम्यता नहीं ॥२०॥
बहुत साधनों को देखा जाता । नहीं श्रवण से साम्यता । श्रवणबिन तत्त्वतः । कार्य न चले ॥२१॥
न देखते अगर दिनकर । पडे सर्वत्र अंधकार । श्रवण के बिन प्रकार । ऐसे ही होता ॥२२॥
कैसी नवविधा भक्ति । कैसी चतुर्विध मुक्ति । कैसी सहजस्थिति । ये श्रवण बिन न समझे ॥२३॥
न समझे षट्कर्माचरण । न समझे कैसा पुरश्चरण । न समझे कैसे उपासन । बिधियुक्त ॥२४॥
नाना व्रत नाना दान । नाना तप नाना साधन । नाना योग तीर्थाटन । श्रवण बिन न समझते ॥२५॥
नाना विद्या पिंडज्ञान । नाना तत्त्वों का शोधन । नाना कला ब्रह्मज्ञान । श्रवण बिन न समझे ॥२६॥
अठारह वर्ग वनस्पति । एक ही जल से प्रबल होती । एक रस से उत्पत्ति । सकल जीवों की ॥२७॥
सकल जीवों को एक पृथ्वी । सकल जीवों को एक रवि । सकल जीवों की व्यवहारिक रीति । एक वायु ॥२८॥
सकल जीवों को एक ही अवकाश । जिसे कहते आकाश । सकल जीवों का वास । एक परब्रह्म में ॥२९॥
वैसे सकल जीवों का मिलकर । सार एक ही साधन । वह जानो यह श्रवण । प्राणिमात्र प्रति ॥३०॥
नाना देश भाषा मत । है भूमंडल पर असंख्यात । सभी को श्रवण के विरहित । साधन ही नहीं ॥३१॥
श्रवण से हो उपरति । बद्ध से मुमुक्षु स्थिति । मुमुक्षु से साधक अति । नियम से चलते ॥३२॥
साधक से होते सिद्ध। शरीर में दृढ होते ही प्रबोध । यह तो है प्रसिद्ध । सबको ज्ञात ॥३३॥
जो मूलतः खल चांडाल । वे ही होते पुण्यशील । ऐसा गुण तत्काल । श्रवण का ॥३४॥
जो दुर्बुद्धि दुरात्मा । वही होता पुण्यात्मा । अगाध श्रवण की महिमा । कहते न बने ॥३५॥
तीर्थ व्रतों की फलश्रुति । कहते हैं आगे होती । वैसे नहीं यह हांथों हांथ ही । स्वानुभवश्रवण ॥३६॥
नाना रोग नाना व्याधि । तत्काल मिटाती औषधि । वैसी है श्रवण सिद्धि । अनुभवी जानते ॥३७॥
श्रवण का विचार समझ आये । तभी भाग्यश्री प्रबलता से प्रकट होये । मुख्य परमात्मा समझे । स्वानुभव से ॥३८॥
इसका नाम जानिये मनन । अर्थ के लिये सावधान ! निजध्यास से समाधान । होता है ॥३९॥
कथन का अर्थ समझे । तभी समाधान निथरे । अकस्मात् अंतरंग में दृढता आये । निःसंदेहता ॥४०॥
संदेह जन्म का मूल । वही हो श्रवण से निर्मूल । आगे सहज ही प्रांजल । समाधान ॥४१॥
जहां नहीं श्रवण मनन । वहां कैसे समाधान । मुक्तपन का बंधन । जकड़े पांव में ॥४२॥
मुमुक्षु साधक अथवा सिद्ध । श्रवण के बिन वह अबद्ध । श्रवण मनन से शुद्ध । चित्तवृत्ति होती ॥४३॥
जहां नहीं नित्य श्रवण । उसे जानिये विलक्षण । वहां साधक एक भी क्षण । न रहें सर्वथा ॥४४॥
जहां नहीं श्रवण स्वार्थ । वहां कैसे परमार्थ । पूर्वकृत कर्म हों व्यर्थ । श्रवण बिन ॥४५॥
तस्मात् श्रवण करें। साधन मन में धरें। नित्य नियम से तरें । संसार सागर से ॥४६॥
सेवित अन्न ही करें सेवन । लिया हुआ ही लें जीवन । वैसे ही श्रवण मनन। किया हुआ ही करें ॥४७॥
श्रवण का अनादर । आलस वश करे जो नर । उसका हो अपहार । स्वहित विषय में ॥४८॥
आलस्य का संरक्षण । परमार्थ का निष्कासन । इस कारण से नित्य श्रवण । करना ही चाहिये ॥४९॥
अब श्रवण कैसे करें । कौन से ग्रंथ को देखें। अगले समास में समस्त ऐसे । कथन करेंगे ॥५०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे श्रवणनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : December 04, 2023

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