मंत्रों का नाम - ॥ समास सातवा - बद्धलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सृष्टि में जो चराचर । जीव भरे अपार । मगर वे सब चत्वार । कहे जाते ॥१॥
सुनो उनके लक्षण । चत्वार वे कौन कौन । बद्ध मुमुक्ष साधक जान । चौथा सिद्ध ॥२॥
इन चारों से विरहित कोई । सचराचर में पांचवां नही । अस्तु ये अब सर्व ही । विषद करू ॥३॥
बद्ध याने वह कौन । कैसे मुमुक्ष के लक्षण । साधक सिद्ध की पहचान । कैसे करें ॥४॥
श्रोता हो सावध । प्रस्तुत सुनो बद्ध । मुमुक्षु साधक और सिद्ध । आगे निरुपित हैं ॥५॥
अब बद्ध वह जानिये ऐसे । अंधेरे में अंधा जैसे । चक्षु बिन दस ही दिशायें । शून्याकार ॥६॥
भक्त ज्ञाता तापसी । योगी वितरागी संन्यासी । सामने आने पर भी । आगे दृष्टि से दिखाई । देते नहीं ॥७॥
न दिखे ना जाने कर्माकर्म । न दिखे ना जाने धर्माधर्म । न दिखे ना जाने सुगम । परमार्थपंथ ॥८॥
उसे न दिखे सच्छास्त्र । सत्संगति सत्पात्र । सन्मार्ग जो कि पवित्र । वह भी ना दिखे ॥९॥
न समझे सारासार विचार । न समझे स्वधर्मआचार । न जाने कैसा परोपकार । दान पुण्य ॥१०॥
नहीं अभ्यंतर में भूतदया । नहीं शुचिष्मंत काया । नहीं जनों को शांत करने का । वचन मृदु ॥११॥
न समझे भक्ति न समझे ज्ञान । न समझे वैराग्य न समझे ध्यान । न समझे मोक्ष न समझे साधन । इसका नाम बद्ध ॥१२॥
न समझे देव निश्चयात्मक । न समझे संतों का विवेक । न समझे माया का कौतुक । इसका नाम बद्ध ॥१३॥
न समझे परमार्थ का चिन्ह । न समझे अध्यात्मनिरुपण । न समझे अपने को स्वयं । इसका नाम बद्ध ॥१४॥
न समझे जीव का जन्म मूल । न समझे साधनों के फल । न समझे तत्त्वतः केवल । इसका नाम बद्ध ॥१५॥
न समझे कैसे वे बंधन । न समझे मुक्ति के लक्षण । न समझे वस्तु विलक्षण । इसका नाम बद्ध ॥१६॥
न समझे कथित शास्त्रार्थ । न समझे अपना निजस्वार्थ । न समझे संकल्प के बंध । इसका नाम बद्ध ॥१७॥
जिसे नहीं आत्मज्ञान । यह मुख्य बद्ध का लक्षण । तीर्थ व्रत दान पुण्य । कुछ भी नहीं ॥१८॥
दया नहीं करुणा नहीं । आर्जव नहीं मित्रता नहीं । शांति नहीं क्षमा नहीं । इसका नाम बद्ध ॥१९॥
जो ज्ञानविषय में न्यून । कैसे वहां ज्ञान के लक्षण । बहुविध कुलक्षण । इसका नाम बद्ध ॥२०॥
नाना प्रकार के दोष । करने में लगे परम संतोष । व्यर्थ बातों का अभिलाष । इसका नाम बद्ध ॥२१॥
बहु काम बहु क्रोध । बहु गर्व बहु मद । बहु द्वंद्व बहु खेद । इसका नाम बद्ध ॥२२॥
बहु दर्प बहु दंभ । बहु विषय बहु लोभ । बहु कर्कश बहु अशुभ । इसका नाम बद्ध ॥२३॥
बहु गंवार बहु मत्सर । बहु असूया तिरस्कार । बहु पापी बहु विकार । इसका नाम बद्ध ॥२४॥
बहु अभिमान बहु ऐंठ । बहु अहंकार बहु विकल्प । कुकर्मों का संचय बहुत । इसका नाम बद्ध ॥२५॥
बहु कापट्य वादविवाद । बहु कुतर्क भेदाभेद । बहु क्रूर कृपामंद । इसका नाम बद्ध ॥२६॥
बहु निंदा बहु द्वेष । बहु अधर्म बहु अभिलाष । बहु प्रकार के दोष । इसका नाम बद्ध ॥२७॥
बहु भ्रष्ट अनाचार । बहु नष्ट एकाकार । बहु अनित्य अविचार । इसका नाम बद्ध ॥२८॥
बहु निष्ठुर बहु घातकी । बहु हत्यारा बहु पातकी । क्रोधी कुविद्या अनेक तरह की । इसका नाम बद्ध ॥२९॥
बहु दुराशा बहु स्वार्थी । बहु कलह बहु अनर्थी । बहु दांवपेच दुर्मति । इसका नाम बद्ध ॥३०॥
बहु कल्पना बहु कामना । बहु तृष्णा बहु वासना । बहु ममता बहु भावना । इसका नाम बद्ध ॥३१॥
बहु विकल्पी बहु विषादी । बहु मूर्ख बहु संबंधी । बहु प्रपंची बहु उपाधि । इसका नाम बद्ध ॥३२॥
बहु वाचाल बहु पाखंडी । बहु दुर्जन बहु ढोंगी। बहु धूर्त बहु खुरापाती । इसका नाम बद्ध ॥३३॥
बहु अभाव बहु भ्रम । बहु भ्रांति बहु तम । बहु विक्षेप बहु विराम । इसका नाम बद्ध ॥३४॥
बहु कृपण बहु शैतानी । बहु वंचक बहु मस्ती । बहु असत्क्रिया में व्यस्त ही । इसका नाम बद्ध ॥३५॥
परमार्थ विषयक अज्ञान । प्रपंच का प्रचंड ज्ञान । न जाने स्वय समाधान । इसका नाम बद्ध ॥३६॥
परमार्थ का अनादर । प्रपंच का अत्यादर । संसार भार अपार । इसका नाम बद्ध ॥३७॥
नहीं चाह सत्संग की । प्रीति संतनिंदा की । पहनी बेडी देहबुद्धि की । इसका नाम बद्ध ॥३८॥
हांथ में द्रव्य की जपमाल । कांताध्यान सर्वकाल । सत्संग का अकाल । इसका नाम बद्ध ॥३९॥
नेत्रों से देखे द्रव्यदारा । श्रवणों से सुने द्रव्यदारा । चिंतन में चिंते द्रव्यदारा । इसका नाम बद्ध ॥४०॥
काया वाचा और मन । चित्तवित्त जीव प्राण । द्रव्यदारा का करे भजन । इसका नाम बद्ध ॥४१॥
इंद्रियां करें निश्चल । चंचल होने ना दे एक पल । द्रव्यदारा में लगाये सकल । इसका नाम बद्ध ॥४२॥
द्रव्यदारा ही तीर्थ । द्रव्यदारा ही परमार्थ । द्रव्यदारा सकल स्वार्थ । कहे सो बद्ध ॥४३॥
व्यर्थ ना जाने देना काल । संसार चिंता सर्वकाल । कथा वार्ता भी वही सकल । इसका नाम बद्ध ॥४४॥
नाना चिंता नाना उद्वेग । नाना दुःखों का संसर्ग । करे परमार्थ का त्याग । इसका नाम बद्ध ॥४५॥
घडी पल निमिष भर । दुश्चित नहीं होता भीतर । ध्यान सर्व समय पर । द्रव्यदाराप्रपंच का ॥४६॥
तीर्थ यात्रा दान पुण्य । भक्तिकथानिरूपण । मंत्र पूजा जप ध्यान । सब कुछ द्रव्य दारा ॥४७॥
जागृति स्वप्न रात दिन । ऐसे लगा विषय ध्यान । नहीं अवकाश एक क्षण । इसका नाम बद्ध ॥४८॥
ऐसे बद्ध के लक्षण । मुमुक्षुत्व से पलटते जान । सुनो उसकी भी पहचान । अगले समास में ॥४९॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे बद्धलक्षणनाम समास सातवां ॥७॥
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Last Updated : December 01, 2023
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