अखंडध्याननाम - ॥ समास पहला - निस्पृहलक्षणनाम ॥
‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सुनो निस्पृह की सिखावन । युक्ति बुद्धि सयानापन । जिससे रहे समाधान । निरंतर ॥१॥
सुलभ मंत्र परंतु नेमस्त । साधी औषधि गुणवंत । सादा बोलना सप्रचीत । वैसे मेरा ॥२॥
तत्काल ही अवगुणों की गच्छति । उत्तम गुणों की हो प्राप्ति । शब्दऔषधि तीव्र श्रोती । साक्षेप से सेवन करें ॥३॥
निस्पृहता धरें नहीं । धरें फिर छोड़ें नहीं । छोड़े तो भी घूमें नहीं । परिचितों में ॥४॥
कांतादृष्टि रखें नहीं । मन को मिठास चखायें नहीं । धीरज ढलते दिखायें नहीं । अपना मुख ॥५॥
एक स्थान पर रहें नहीं । संकोचास्पद स्थिति सहें नहीं । द्रव्य दारा को देखें नहीं । लालच से ॥६॥
आचारभ्रष्ट होयें नहीं । दिया द्रव्य स्वीकारें नहीं । न्यून शब्द आने दें नहीं । स्वयं पर ॥७॥
भिक्षा के लिये लजायें नहीं । बहुत भिक्षा लेना नहीं । पूछने पर भी देना नहीं । परिचय अपना ॥८॥
मलिन वस्त्र पहनें नहीं । मीठा अन्न खायें नहीं । दुराग्रह करें नहीं । प्रसंगानुरूप करें आचरण ॥९॥
भोग में मन रहें नहीं । देह दुःख से त्रस्त होयें नहीं । आगे आशा धरें नहीं । जीवित्व की ॥१०॥
विरक्ति ना छूटनें दें । धारिष्ट विचलित ना होने दें । ज्ञान को मलिन ना होने दें । विवेक बल से ॥११॥
करुणाकीर्तन छोडें नहीं । अंतर्ध्यान भंग करें नहीं । प्रेमतंतु तोडें नहीं । सगुणमूर्ति का ॥१२॥
अंतरंग में चिंता धरें नहीं । कष्ट में खेद मानें नहीं । समय पर धीरज छोडें नहीं । हो कुछ भी ॥१३॥
अपमान से संतप्त होयें नहीं । कटु वचनों से कष्टी होयें नहीं । धिक्कारने पर झुरें नहीं । हो कुछ भी ॥१४॥
लोक लज्जा रखें नहीं । लज्जित करे तो लजायें नहीं । खिझाने पर खीझें नहीं । विरक्त पुरुष ॥१५॥
शुद्ध मार्ग त्यागें नहीं । दुर्जनों से लड़ें नहीं । संबंध आने दें नहीं । चांडालों से ॥१६॥
उग्रता धारण करें नहीं । लड़वाने पर लड़ें नहीं । बिगाड़े तो चिगड़ने देना नहीं । निजस्थिति अपनी ॥१७॥
हंसाने पर हंसें नहीं । बुलवाया तो बोलें नहीं । चलाया तो चलें नहीं । क्षण क्षण ॥१८॥
एक वेश धरें नहीं । एक ही शृंगार करें नहीं । एकदेशी होना नहीं । भ्रमण करें ॥१९॥
सन्निधता बढायें नहीं । प्रतिग्रह लेना नहीं । सभा में बैठें नहीं । सर्वकाल ॥२०॥
नेम शरीर से लगायें नहीं । भरोसा किसी को देना नहीं । अंगिकार करें नहीं । नियमिता का ॥२१॥
नित्य नेम छोडें नहीं । अभ्यास डुबायें नहीं । परतंत्र होयें नहीं । हो कुछ भी ॥२२॥
स्वतंत्रता भंग करें नहीं । निरापेक्षता तोड़ें नहीं । परापेक्षा होयें नहीं । क्षण क्षण ॥२३॥
वैभव दृष्टि देखें नहीं । उपाधि सुख में रहें नहीं । एकांत भंग करें नहीं । स्वरूपस्थिति का ॥२४॥
अर्नगलता करें नहीं । लोकलज्जा धरें नहीं । कहीं भी होयें नहीं । आसक्त कदापि ॥२५॥
परंपरा तोड़ें नहीं । उपाधि टूटने दें नहीं । ज्ञानमार्ग छोडें नहीं । कभी भी ॥२६॥
कर्ममार्ग छोड़ें नहीं । वैराग्य मिटने दें नहीं । साधन भजन खंडित होने दें नहीं । कभी भी ॥२७॥
अतिवाद करें नहीं । अनीति अंतरंग में रखें नहीं । क्रोधावेश में जाना नहीं । असंबद्ध जगह ॥२८॥
न माने उससे कहें नहीं । उबानेवाली बाते करें नहीं । बहुत समय रहें नहीं । एक ही स्थान ॥२९॥
कुछ भी उपाधि करें नहीं । किये तो भी धरें नहीं । धरें तो भी उलझें नहीं । उपाधि में ॥३०॥
बड़प्पन रहें नहीं । महत्त्व पकड़ कर बैठें नहीं । कुछ भी सम्मान चाहें नहीं । कहीं भी ॥३१॥
सादगी छोड़ें नहीं । आकिंचन्य तोड़ें नहीं । बलात जोड़ें नहीं । अभिमान शरीर से ॥३२॥
अधिकार बिना कहें नहीं । जबरदस्ती उपदेश दें नहीं । संकोचित करें नहीं । परमार्थ कभी ॥३३॥
कठिन वैराग्य त्यागें नहीं । कठिन अभ्यास छोड़ें नहीं । कठिनता धरें नहीं । किसी एक विषय के प्रति ॥३४॥
कठिन शब्द बोलें नहीं । कठिन आज्ञा करें नहीं । कठिनता धरें नहीं । हो कुछ भी ॥३५॥
स्वयं आसक्त होयें नहीं । किये बिना कहें नहीं । बहुत कुछ मांगें नहीं । शिष्य वर्ग से ॥३६॥
उद्धट शब्द कहें नहीं । इंद्रिय स्मरण करें नहीं । शाक्त मार्ग से धरें नहीं । स्वैराचार को ॥३७॥
निम्न कृत्य में लजायें नहीं । वैभव आने पर अकडे नहीं । क्रोध का शिकार बनें नहीं । जानबूझकर ॥३८॥
महानता में चूकें नहीं । न्याय नीति त्यागें नहीं । अप्रमाण व्यवहार करें नहीं । हो कुछ भी ॥३९॥
समझे बिना कहें नहीं । अनुमान से निश्चय करें नहीं । कहने का दुःख धरें नहीं । मूर्खतावश ॥४०॥
सावधानी छोड़ें नहीं । व्यापकता त्यागें नहीं । कभी सुख मानें नहीं । आलस में ॥४१॥
विकल्प पेट में धरें नहीं । स्वार्थ आज्ञा करें नहीं । करे तो फिर डालें नहीं । स्वयं को आगे ॥४२॥
प्रसंग बिन कहें नहीं । अन्वय बिन गायें नहीं । विचार बिन जायें नहीं । अविचार पथ पर ॥४३॥
परोपकार त्यागें नहीं । परपीडा करें नहीं । विकल्प होने दें नहीं । किसी से भी ॥४४॥
अज्ञानता छोड़ें नहीं । महंतगिरी धरें नहीं । द्रव्य के कारण घूमें नहीं । कीर्तन करते ॥४५॥
संशयात्मक बोलें नहीं । बहुत निश्चय करें नहीं । निर्वाह बिना धरें नहीं । ग्रंथ हांथ में ॥४६॥
ज्ञातापन से पूछें नहीं । अहंभाव दिखायें नहीं । कहूंगा ऐसा कहें नहीं । किसी से भी ॥४७॥
ज्ञान गर्व धरें नहीं । सहसा छल करें नहीं । कहीं वाद करें नहीं । किसी से भी ॥४८॥
स्वार्थ बुद्धि में जकडें नहीं । कारबार में पड़ें नहीं । कार्यकर्ता बनें नहीं । राजद्वार पर ॥४९॥
किसी को भरोसा दें नहीं । भारी भिक्षा मांगें नहीं । भिक्षा के कारण कहें नहीं । परमार्थ अपना ॥५०॥
विवाह योग जुड़ायें नहीं । मध्यस्थि करें नहीं । प्रपंच की जड़ने दें नहीं । उपाधि शरीर से ॥५१॥
प्रपंच में लिप्त होयें नहीं । अपवित्र अन्न खायें नहीं । अतिथि समान लें नहीं । आमंत्रण कभी ॥५२॥
श्राद्ध पक्ष छठी छहमासा । शांति गर्भादान नामकरण । भोग भूतबाधा बहुविध । मन्नत व्रत उद्यापन ॥५३॥
वहां निस्पृह जायें नहीं । उनका अन्न खायें नहीं । दीन लाचार करें नहीं । स्वयं को ॥५४॥
विवाह मुहूर्त में जायें नहीं । पेट के लिये गायें नहीं । मोल से कीर्तन करें नहीं । कहीं भी ॥५५॥
अपनी भिक्षा छोडें नहीं । वार लगाकर भोजन करें नहीं । निस्पृह करें नहीं । मोल यात्रा ॥५६॥
मोल से सुकृत करें नहीं । मोलपुजारी बनें नहीं । दिया तो भी लेना नहीं । इनाम निस्पृह ने ॥५७॥
कहीं मठ बनायें नहीं । किया तो भी वह धरें नहीं । मठपति बनकर बैठें नहीं । निस्पृह पुरुष ॥५८॥
निस्पृह सब्रबहुत संग धरें नहीं । संतसंग त्यागें नहीं । कर्मठता काम आती नहीं । अनाचार खोटा ॥६७॥
बहु लौकिक काम आये नहीं । लोकाधीन होयें नहीं । बहु प्रीति काम आती नहीं । निष्ठुरता खोटी ॥६८॥
बहु संशय धरें नहीं । मुक्तमार्ग काम आता नहीं । बहु साधनों में पड़ें नहीं । साधनबिन रहना खोटा ॥६९॥
बहु विषय भोगें नहीं । विषयत्याग होता नहीं । देह लोभ धरें नहीं । बहु त्रास खोटा ॥७०॥
अलग अनुभव लें नहीं । अनुभवबिना काम आते नहीं । आत्मस्थिति कहें नहीं । स्तब्धता खोटी ॥७१॥
मन को रहने देना नहीं । मन के बिन काम होता नहीं । अलक्ष्य वस्तु पर लक्ष्य लगाये नहीं । लक्ष्य के बिन खोटा ॥७२॥
मनबुद्धिअगोचर । बुद्धि बिन अंधकार । ज्ञातृत्व का हो बिसर । अज्ञता खोटी ॥७३॥
ज्ञातापन धरें नहीं । ज्ञान बिन काम होता नहीं । अतर्क्स वस्तु का तर्क करें नहीं । तर्क बिना खोटा ॥७४॥
दृश्य स्मरण काम आता नहीं । विस्मरण होने दें नहीं । कुछ भी चर्चा करें नहीं । किये बिना न चले ॥७५॥
जग में भेद काम आते नहीं । वर्णसंकर करें नहीं । अपना धर्म डुबायें नहीं । अभिमान खोटा ॥७६॥
आशाबद्ध कहें नहीं । विवेक बिना चलें नहीं । समाधान हिलने दें नहीं । हो कुछ भी ॥७७॥
अबद्ध पोथी लिखें नहीं । पोथी बिन काम होता नहीं । अबद्ध पढें नहीं । पढे बिना खोटा ॥७८॥
निस्पृह वक्तृत्व त्यागें नहीं । आशंका लेने पर झगड़ें नहीं । श्रोताओं का मानें नहीं । अब कभी ॥७९॥
ये सीख रखते ही चित्त में । सभी सुख दौड़ते आते । महंती दृढ़ होती शरीर में । अकस्मात् ॥८०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे निस्पृहलक्षणनाम समास पहला ॥१॥
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Last Updated : December 09, 2023
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