मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास दसवां - पढतमूर्खलक्षणनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे कहे थे लक्षण । चातुर्य दृढ हो मूर्ख के तन । अब सुनो उनके लक्षण । जो सयाने होकर भी मूर्ख ॥१॥
उसका नाम पढतमूर्ख । श्रोता न माने दुःख । अवगुण त्यागते ही सुख । प्राप्त होता ॥२॥
बहुश्रुत और व्युत्पन्न । प्रांजल बोले ब्रह्मज्ञान । दुराशा और अभिमान । घरे वह एक पढतमूर्ख ॥३॥
मुक्त क्रिया का करे प्रतिपादन । करे सगुणभक्ति का उच्छेदन । निंदा करे स्वधर्म और साधन । वह एक पढतमूर्ख ॥४॥
अपने ज्ञातापन से । सभी को नाम रखे । प्राणी मात्र के दोष देखे । वह एक पढतमूर्ख ॥५॥
शिष्य से अवज्ञा होयें । या वह संकट में पड़े । जिसके शब्दों से मन दुखाये । वह एक पढतमूर्ख ॥६॥
रजोगुणी और तमोगुणी । कपटी कुटिल अंतःकरणी । वैभव देख करे बखानी । वह एक पढतमूर्ख ॥७॥
समूल ग्रंथ देखे बिन । व्यर्थ ही लगाये जो दूषण । गुण कहने पर देखे अवगुण । वह एक पढतमूर्ख ॥८॥
लक्षण सुनकर होता त्रस्त । मत्सर से करे खटपट । नीति न्याय ना सुने उध्दट । वह एक पढतमूर्ख ॥९॥
ज्ञातापन की उड़ान भरे । आये क्रोध को न संवारे । क्रिया शब्द में अंतर रखे । वह एक पढतमूर्ख ॥१०॥
वक्ता अधिकार के बिन । करे वक्तृत्व का श्रम । कठोर जिसके वचन । वह एक पढतमूर्ख ॥११॥
श्रोता बहुश्रुतपन से । वक्ता पर न्यूनता लाये। वाचालता के गुण से । वह एक पढतमूर्ख ॥१२॥
दूसरों को लगाये दोष । वे ही स्वयं अपने पास । ऐसा जो पाये ना समझ । वह एक पढतमूर्ख ॥१३॥
अभ्यास गुण के कारण । सकल विद्या का ज्ञान । संतुष्ट करना न जाने जन । वह एक पढतमूर्ख ॥१४॥
हाथी को ऊर्णतंतु से बांधे । भ्रमर की मृत्यु लाभ से । प्रपच में जो उलझा ऐसे । वह एक पढतमूर्ख ॥१५॥
स्त्रियों का संग धरे । स्त्रियों को निरुपण करे । निंद्यवस्तु अंगिकार करे । वह एक पढतमूर्ख ॥१६॥
जिससे कमी शरीर में । वही दृढ धरे मन में । देहबुद्धि पास जिसके । वह एक पढतमूर्ख ॥१७॥
छोड़कर श्रीपति । जो करे नरस्तुति । अथवा जो मिले उसकी बखाने कीर्ति । वह एक पढतमूर्ख ॥१८॥
वर्णन करे स्त्रियों के अवयव । नाना नाटक हावभाव । देव को भूले जो मानव । वह एक पढतमूर्ख ॥१९॥
वैभव के कारण घमंड से । जीवमात्र को तुच्छ समझे । पाखंड मत प्रतिपादन करे । वह एक पढतमूर्ख ॥२०॥
व्युत्पन्न और वीतरागी । ब्रह्मज्ञानी महायोगी । जग में करने लगा भविष्यवाणी । वह एक पढतमूर्ख ॥२१॥
श्रवण होते ही अंतरंग में । गुणदोषों की छानबीन करे । परभूषण का मत्सर करे। वह एक पढतमूर्ख ॥२२॥
नहीं भक्ति का साधन । नहीं वैराग्य ना भजन । क्रिया बिन बोले ब्रह्मज्ञान । वह एक पढतमूर्ख ॥२३॥
न माने तीर्थ न माने क्षेत्र । न माने वेद न माने शास्त्र । पवित्र कुल में जो अपवित्र । वह एक पढतमूर्ख ॥२४॥
आदर देख प्रेम धरे । कीर्ति बिना स्तुति करे । तुरंत ही अनादर से निंदा करे । वह एक पढतमूर्ख ॥२५॥
आगे एक पीछे एक । ऐसा जिसका दंडक । बोले एक करे एक । वह एक पढतमूर्ख ॥२६॥
प्रपंच विषय में सादर । परमार्थ में जिसका अनादर । जानबूझ कर ले आधार । वह एक पढतमूर्ख ॥२७॥
त्यागकर यथार्थ वचन । जो बोले छिपाकर मन । जिसका जीना पराधीन । वह एक पढतमूर्ख ॥२८॥
ढोंग करे ऊपर ऊपर। अयोग्य करे कार्य । चले अनुचित मार्ग पर । वह एक पढतमूर्ख ॥२९॥
रातदिन करे श्रवण । न त्यागे अपने अवगुण । स्वहित अपना ना जाने स्वयं । वह एक पढतमूर्ख ॥३०॥
निरुपण में भले भले । श्रोताजन आ बैठे । क्षुद्र लक्ष्य कर न्यून बोले । वह एक पढतमूर्ख ॥३१॥
शिष्य हुआ अनाधिकारी । अवज्ञा करे अपनी । पुनः आशा धरे उसकी । वह एक पढतमूर्ख ॥३२॥
जब रहा निरूपण । देह में उपजे दोष न्यून । क्रोधवश करे तनतन । वह एक पढतमूर्ख ॥३३॥
वैभव का गर्व करे। सद्गुरु की उपेक्षा करे । गुरु परंपरा चोरी करे । वह एक पढतमूर्ख ॥३४॥
ज्ञान बोलकर करे स्वार्थ । कृपण की तरह बचाये अर्थ । अर्थ में लगाये परमार्थ । वह एक पढतमूर्ख ॥३५॥
देता सीख आचरण बिन । ब्रह्मज्ञान करे गायन । गोसावी जो पराधीन । वह एक पढतमूर्ख ॥३६॥
तोड़े भक्तिमार्ग समस्त । स्वयं हुया अस्त व्यस्त । ऐसे कर्मों में व्यस्त । वह एक पढतमूर्ख ॥३७॥
प्रपंच गंवाया हाथ का । लेश नहीं परमार्थ का । द्वेषी देव ब्राह्मणों का । वह एक पढतमूर्ख ॥३८॥
त्यागार्थ अवगुण । कहे पढतमूर्ख के लक्षण । विचक्षण ने न्यूनपूर्ण । क्षमा करनी चाहिये ॥३९॥
परम मूर्खों में मूर्ख । जो संसार में माने सुख । इस संसारदुःख जैसा दुःख । अन्य नहीं ॥४०॥
वही आगे निरुपण । जन्म दुःख का लक्षण । गर्भवास यह अति दारुण । है आगे निरुपित ॥४१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पढतमूर्खलक्षणनिरूपणनाम समास दसवां ॥१०॥
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Last Updated : November 30, 2023
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