गुणरूपनाम - ॥ समास पांचवां - अनुमाननिरसननाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पिंड समान ब्रह्मांड रचना । अनुमान में हमारे आये ना । प्रचीती देखने पर नाना । मतों से भ्रम होते ॥१॥
जो पिंड में वही ब्रह्मांड में । बोलने का ऐसा रिवाज जनों में । घडी हर घडी वचन ये । तत्त्वज्ञ कहते ॥२॥
पिंड ब्रह्मांड की एक रीति । ऐसी लोगों की लोगपद्धति । परंतु प्रत्यय की परिपाटी । पर टिक सके ना ॥३॥
स्थूल सूक्ष्म कारण महाकारण । ये पिंड के चार देह जान । विराट हिरण्य अव्याकृत मूलप्रकृति ये चिन्ह । ब्रह्मांड के ॥४॥
जानें शास्त्रपद्धति से इसे । परंतु प्रचीति में लाये कैसे । प्रचीति देखने से । लगती सारी उलझन ॥५॥
पिंड में है अंतःकरण । तो ब्रह्मांड में विष्णु जान । पिंड में कहते मन । वही ब्रह्मांड में चंद्रमा ॥६॥
पिंड में बुद्धि जो कहिये । तो ब्रह्मांड में ब्रह्मा ऐसे जानिये । पिंड में चित्त ब्रह्मांड में पहचानिये । नारायण ॥७॥
पिंड में जो कहिये अहंकार । ब्रह्मांड में रुद्र यह निर्धार । ऐसा कहा है विचार । शास्त्रों में ॥८॥
तब कौन विष्णु का अंतःकरण । कैसे चंद्रमा का मन । ब्रह्मा के बुद्धिलक्षण । मुझे निरूपित करें ॥९॥
कैसे नारायण का चित्त । रुद्र अहंकार का हेत । यह विचार देखकर निश्चित । मुझे निरूपित करें ॥१०॥
अनुभूतिनिश्चय के समक्ष अनुमान । जैसे सिंह के सम्मुख श्वान । सत्य के सम्मुख झूठ प्रमाण । होगा कैसे ॥११॥
पर इसके लिये पारखी चाहिये । निश्चय होता पारखी से । परीक्षा न हों तो रह जायें। अनुमान संशय में ॥१२॥
विष्णु चंद्र और ब्रह्मा । नारायण और रुद्रनामा । इन पांचों के अंतःकरण पंचकों का । स्वामी हमें निरूपण करें ॥१३॥
यहां प्रचीति ही प्रमाण । न चाहिये शास्त्र का अनुमान । अथवा करके शास्त्रों का अध्ययन । लायें प्रत्यय में ॥१४॥
प्रचीति बिन जो कहना । वह सारा ही उबाने वाला । मुंह फैलाकर श्वान जैसा । रोता जाता ॥१५॥
वहां क्या है जी सुनें । और क्या ढूंढकर देखें । जहां प्रत्यय के नाम से । शून्याकार ॥१६॥
सारे अंधे ही मिले । वहां आंखोंवालो की क्या चले । अनुभव के नेत्र गये । वहां अंधःकार ॥१७॥
नहीं दूध नहीं पानी । की विष्ठा की सारणी । वहां चुगने वाले धनी । वे तो डोम कौओ ॥१८॥
अपनी इच्छा से कहा । पिंड जैसा ब्रह्मांड कल्पित किया । मगर वह प्रचीति में आया । किस प्रकार ॥१९॥
इस कारण यह सारा ही अनुमान । सारा कल्पना का वन । तेढी राह ना पकडें भले जन । जो काम तस्करों का ॥२०॥
कल्पना से बनाये मंत्र । देव वे कल्पना मात्र । देव नहीं स्वतंत्र । मंत्राधीन ॥२१॥
यहां ना बोलते हुये जानिये । कथन विवेक से पहचानिये । अंधे को चाल से पहचानिये । विचक्षण ॥२२॥
जिसे भास हुआ जैसे । उसने कवित्व किया वैसे । मगर यह चुनना चाहिये । प्रचीति से ॥२३॥
ब्रह्मा ने सकल निर्माण किया । ब्रह्मा को किसने निर्माण किया । विष्णु ने विश्व का पालन किया । विष्णु को पालता कौन ॥२४॥
रुद्र विश्वसंहारकर्ता । मगर कौन रुद्र को संहारता । कौन काल का नियंता । समझना चाहिये ॥२५॥
यह समझे ना विचार । तो सारा अंधःकार । इस कारण सारासार । विचार करें ॥२६॥
ब्रह्मांड सहज ही निर्माण हुआ । मगर इसे पिंडाकार कल्पित किया । कल्पित किया मगर प्रत्यय में आया । नहीं कभी ॥२७॥
अगर ब्रह्मांड की प्रचीति देखते । कितने एक संशय उठते । ये काल्पनिक श्रोते । निश्चित जानिये ॥२८॥
पिंडसमान ब्रह्मांडरचना । कौन लाता अनुमान । ब्रह्मांड में पदार्थ नाना । वे पिंड में कैसे ॥२९॥
भूत साढे तीन कोटि । तीर्थ साढ़े तीन कोटि । मंत्र साढ़े तीन कोटि । पिंड में कहां ॥३०॥
तैतीस कोटि सुरवर । अठ्यासी सहस्र ऋषेश्वर । नौ कोटि कात्यायानि का विचार । पिंड में कहां ॥३१॥
चामुंडा छप्पन कोटि । अनेक जीव कोटि कोटि । भीड चौरासी लाख योनियों की । पिंड में कहां ॥३२॥
ब्रह्मांड में पदार्थ निर्माण हुये । पृथकाकार में अलग हुये। वे सब निरूपित किये जाने । चाहिये पिंड में ॥३३॥
जितनी औषधि उतने फल । नाना प्रकार के रसाल । नाना बीज अनाज सकल । पिंड में निरूपित करें ॥३४॥
ऐसे कथन का नहीं प्रमाण । तो व्यर्थ ही न करें कथन । कथनानुसार न होने पर अनुमान । है लज्जास्पद ॥३५॥
तो भी निरूपित वचनों से न हुआ । तो मुफ्त बोलने में क्या जाता । इस कारण अनुमान का । कार्य नहीं ॥३६॥
ब्रह्मांड में जो पांच भूत । और पिंड में रहते यही पांच भूत । इसकी देखो नगद । प्रचीति अब ॥३७॥
पांच भूतों का ब्रह्मांड । और पंचभूतिक यह पिंड । इससे भिन्न जो उदंड । वह अनुमानज्ञान ॥३८॥
जितना अनुमान का कथन । वह सब त्यागें समझकर वमन । निश्चयात्मक वही कथन । प्रत्यय का ॥३९॥
जो पिंड में ब्रह्मांड में वही । प्रचीति नहीं यह रोकडी । पंचभूतों की गड़बड़ी । दोनों ओर ॥४०॥
इस कारण दोनों का तानमान । यह तो सारा ही अनुमान । अब एक समाधान । मुख्य वह कैसा ॥४१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे अनुमाननिरसननाम समास पांचवां ॥५॥

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Last Updated : December 04, 2023

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