हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|गुणरूपनाम| ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥ गुणरूपनाम ॥ समास पहला - आशकानाम ॥ ॥ समास दूसरा - ब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - जाणपणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - अनुमाननिरसननाम ॥ ॥ समास छठवां - गुणरूपनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - विकल्पनिरसननाम ॥ ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - संदेहवारणनाम ॥ ॥ समास दसवां - स्थितिनिरूपणनाम ॥ गुणरूपनाम - ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥ श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ ज्ञाता छूटा ज्ञानमत से । परंतु बद्ध का जन्म कैसे । बद्ध का क्या जन्मता ऐसे । अंतसमय में ॥१॥ बद्ध प्राणी मर गया । वहां कुछ भी ना रहा । ज्ञातृत्व का विस्मरण मरण हुआ । मरने से पूर्व ॥२॥ ऐसी आशंका की प्रस्तुत । सुनो इसका उत्तर । अब ना होओ दुश्चित । कहे वक्ता ॥३॥ पंचप्राण स्थल त्यागते । प्राणरूप वासनावृत्ति । वासनामिश्रित प्राण जाते । देह त्यागकर ॥४॥ वायु के साथ वासना गई । वह वायुरूप में ही रही । पुनः जन्म लेकर आई । हेतुअनुसार ॥५॥ कई एक प्राणी निःशेष मरते । पुनः जीव लौटकर आते । ढकेल देने से जख्मी होते । हस्तपादादिक ॥६॥पड़ने पर सर्पदृष्टि । तीन दिनों में उठाता धन्वंतरी । तब फिर लौटकर आती कि । बासना उस में ॥७॥कई शव होकर गिरते । कई उन्हें उठाते । यमलोक से लाते । वापस प्राणी ॥८॥ कई एक थे पहले शापित । उस शाए से देह प्राप्त । उःशापकाल में पुनः पूर्ववत । देह पाये ॥९॥ कितनों ने बहुत जन्म लिये । कितनों ने परकाया प्रवेश किये । ऐसे आये और गये । बहुत लोग ॥१०॥फूंकने पर जैसे वायु गया । वहां वायुसूत निर्माण हुआ । इसलिये वायुरूप वासना का । जन्म है ॥११॥ मन की वृत्ति नाना । उसमें जन्म लेती बासना । वासना देखे तो दिखे ना । परंतु वह है ॥१२॥ वासना है ज्ञातृत्व हेत । ज्ञातृत्व मूल का मूलतंत । मूलमाया में रहता मिश्रित । कारण रूप से ॥१३॥कारण रूप है ब्रह्मांड में । कार्यरूप बरते पिंड में । अनुमान करें तो शीघ्रता से । अनुमान न आये ॥१४॥परंतु है सूक्ष्मरूप । जैसे वायु का स्वरूप । सकल देव वायुरूप । और भूतसृष्टि ॥१५॥ वायु में विचार नाना । वायु भी देखें तो दिखेना । वैसे ज्ञातृत्ववासना । अति सूक्ष्म ॥१६॥ त्रिगुण और पंचभूत । ये वायु में मिश्रित । वे ना होते अनुमानित । इस कारण उन्हें मिथ्या ना कहें ॥१७॥ सहज वायु चले । फिर सुगंध दुर्गंध समझ में आये । उष्ण शीतल तप्त शांत हुये । प्रत्यक्ष प्राणी ॥१८॥ वायु से मेघ बरसते । वायु से ही नक्षत्र चलते । व्यवहार गति सकल सृष्टि की समझे । वायु से ही ॥१९॥वायुरूप में देवता भूत । शरीर में आते अकस्मात । विधि करने पर प्रेत । भी होते सचेत ॥२०॥ मंत्र से ब्राह्मण संमंध जाते । मंत्र से गुप्तधन मिलते । अनेक उलझनों से मुक्त करते । प्रत्यक्ष मंत्र ॥२१॥वायु अलग से ना बोले । देह में भरकर डोले । वासना लेकर जन्म ले । अनेक प्राणी ॥२२॥ ऐसा वायु का विकार । ऐसे वचनों से समझेना विस्तार । सकल ही चराचर । वायु के कारण ॥२३॥ वायु स्तब्धरूप में सृष्टिधर्ता । वायु चंचल रूप में सृष्टिकर्ता । ना समझे तो भी विचारकर्ता । होने से समझेगा ॥२४॥ मूलमाया से अंत तक । वायु ही करता सब कुछ । वायु बिना ऐसा कर्तृत्व । चतुर निरूपित करें मुझे ॥२५॥ ज्ञातृत्व रूप मूलमाया । ज्ञातृत्व अपने स्थान जाता । गुप्त प्रकट होकर करता । विश्व में व्यवहार ॥२६॥कहीं गुप्त कहीं प्रकट होये । जैसे जीवन उबले सूखे । पुनः पीछे प्रवाह बनकर बहे । भूमंडल पर ॥२७॥वैसा वायु में ज्ञातृत्व प्रकार । प्रकट गुप्त निरंतर । कहीं विकृत कहीं समीर । व्यर्थ ही बजे ॥२८॥ वायु जाता शरीर पर से । तो हांथ पांव सूखते । वायु चलने से शुष्क होते । उगे हुये खेत ॥२९॥ नाना रोग के नाना बयार । पीड़ा करते पृथ्वीपर । बिजली से कड़कड़ता अंबर । वायु के कारण ॥३०॥ वायु के कारण रागोद्धार । समझे पहचान का निर्धार । दीप लगे मेघ बरसे यह चमत्कार । रागोद्धार से ॥३१॥ वायु फूंकने से भूल पडती । वायु फूंकने से फोड़े सूखते । वायु के कारण चलते । नाना मंत्र ॥३२॥ मंत्रों से देव प्रकटते । मंत्रों से भूत सामने आते । बाजीगरी जादू करते । मंत्रसामर्थ्य से ॥३३॥ राक्षसों की माया रचना । देवादिकों को भी समझे ना । विचित्र सामर्थ्य नाना । स्तंबनमोहनादिक ॥३४॥भलों को भी पागल करे । पागलों को समझाये । नाना विकार कहें । कितने प्रकार के ॥३५॥ मंत्रों से संग्राम देवों का । मंत्रों से साभिमान ऋषियों का । महिमा मंत्र सामर्थ्य का । कौन जाने ॥३६॥मंत्रों से पक्षी अधिकार में होते । मूषक श्वापद बंधते । मंत्रों से महासर्प स्थिर होते । और धन लाभ ॥३७॥ अस्तु अब यह प्रश्न मिट गया । बद्ध के जन्म का प्रत्यय आया । पिछला प्रश्न मिटा । श्रोताओं का ॥३८॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देहांतनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 04, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP