गुणरूपनाम - ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
ज्ञाता छूटा ज्ञानमत से । परंतु बद्ध का जन्म कैसे । बद्ध का क्या जन्मता ऐसे । अंतसमय में ॥१॥
बद्ध प्राणी मर गया । वहां कुछ भी ना रहा । ज्ञातृत्व का विस्मरण मरण हुआ । मरने से पूर्व ॥२॥
ऐसी आशंका की प्रस्तुत । सुनो इसका उत्तर । अब ना होओ दुश्चित । कहे वक्ता ॥३॥
पंचप्राण स्थल त्यागते । प्राणरूप वासनावृत्ति । वासनामिश्रित प्राण जाते । देह त्यागकर ॥४॥
वायु के साथ वासना गई । वह वायुरूप में ही रही । पुनः जन्म लेकर आई । हेतुअनुसार ॥५॥
कई एक प्राणी निःशेष मरते । पुनः जीव लौटकर आते । ढकेल देने से जख्मी होते । हस्तपादादिक ॥६॥
पड़ने पर सर्पदृष्टि । तीन दिनों में उठाता धन्वंतरी । तब फिर लौटकर आती कि । बासना उस में ॥७॥
कई शव होकर गिरते । कई उन्हें उठाते । यमलोक से लाते । वापस प्राणी ॥८॥
कई एक थे पहले शापित । उस शाए से देह प्राप्त । उःशापकाल में पुनः पूर्ववत । देह पाये ॥९॥
कितनों ने बहुत जन्म लिये । कितनों ने परकाया प्रवेश किये । ऐसे आये और गये । बहुत लोग ॥१०॥
फूंकने पर जैसे वायु गया । वहां वायुसूत निर्माण हुआ । इसलिये वायुरूप वासना का । जन्म है ॥११॥
मन की वृत्ति नाना । उसमें जन्म लेती बासना । वासना देखे तो दिखे ना । परंतु वह है ॥१२॥
वासना है ज्ञातृत्व हेत । ज्ञातृत्व मूल का मूलतंत । मूलमाया में रहता मिश्रित । कारण रूप से ॥१३॥
कारण रूप है ब्रह्मांड में । कार्यरूप बरते पिंड में । अनुमान करें तो शीघ्रता से । अनुमान न आये ॥१४॥
परंतु है सूक्ष्मरूप । जैसे वायु का स्वरूप । सकल देव वायुरूप । और भूतसृष्टि ॥१५॥
वायु में विचार नाना । वायु भी देखें तो दिखेना । वैसे ज्ञातृत्ववासना । अति सूक्ष्म ॥१६॥
त्रिगुण और पंचभूत । ये वायु में मिश्रित । वे ना होते अनुमानित । इस कारण उन्हें मिथ्या ना कहें ॥१७॥
सहज वायु चले । फिर सुगंध दुर्गंध समझ में आये । उष्ण शीतल तप्त शांत हुये । प्रत्यक्ष प्राणी ॥१८॥
वायु से मेघ बरसते । वायु से ही नक्षत्र चलते । व्यवहार गति सकल सृष्टि की समझे । वायु से ही ॥१९॥
वायुरूप में देवता भूत । शरीर में आते अकस्मात । विधि करने पर प्रेत । भी होते सचेत ॥२०॥
मंत्र से ब्राह्मण संमंध जाते । मंत्र से गुप्तधन मिलते । अनेक उलझनों से मुक्त करते । प्रत्यक्ष मंत्र ॥२१॥
वायु अलग से ना बोले । देह में भरकर डोले । वासना लेकर जन्म ले । अनेक प्राणी ॥२२॥
ऐसा वायु का विकार । ऐसे वचनों से समझेना विस्तार । सकल ही चराचर । वायु के कारण ॥२३॥
वायु स्तब्धरूप में सृष्टिधर्ता । वायु चंचल रूप में सृष्टिकर्ता । ना समझे तो भी विचारकर्ता । होने से समझेगा ॥२४॥
मूलमाया से अंत तक । वायु ही करता सब कुछ । वायु बिना ऐसा कर्तृत्व । चतुर निरूपित करें मुझे ॥२५॥
ज्ञातृत्व रूप मूलमाया । ज्ञातृत्व अपने स्थान जाता । गुप्त प्रकट होकर करता । विश्व में व्यवहार ॥२६॥
कहीं गुप्त कहीं प्रकट होये । जैसे जीवन उबले सूखे । पुनः पीछे प्रवाह बनकर बहे । भूमंडल पर ॥२७॥
वैसा वायु में ज्ञातृत्व प्रकार । प्रकट गुप्त निरंतर । कहीं विकृत कहीं समीर । व्यर्थ ही बजे ॥२८॥
वायु जाता शरीर पर से । तो हांथ पांव सूखते । वायु चलने से शुष्क होते । उगे हुये खेत ॥२९॥
नाना रोग के नाना बयार । पीड़ा करते पृथ्वीपर । बिजली से कड़कड़ता अंबर । वायु के कारण ॥३०॥
वायु के कारण रागोद्धार । समझे पहचान का निर्धार । दीप लगे मेघ बरसे यह चमत्कार । रागोद्धार से ॥३१॥
वायु फूंकने से भूल पडती । वायु फूंकने से फोड़े सूखते । वायु के कारण चलते । नाना मंत्र ॥३२॥
मंत्रों से देव प्रकटते । मंत्रों से भूत सामने आते । बाजीगरी जादू करते । मंत्रसामर्थ्य से ॥३३॥
राक्षसों की माया रचना । देवादिकों को भी समझे ना । विचित्र सामर्थ्य नाना । स्तंबनमोहनादिक ॥३४॥
भलों को भी पागल करे । पागलों को समझाये । नाना विकार कहें । कितने प्रकार के ॥३५॥
मंत्रों से संग्राम देवों का । मंत्रों से साभिमान ऋषियों का । महिमा मंत्र सामर्थ्य का । कौन जाने ॥३६॥
मंत्रों से पक्षी अधिकार में होते । मूषक श्वापद बंधते । मंत्रों से महासर्प स्थिर होते । और धन लाभ ॥३७॥
अस्तु अब यह प्रश्न मिट गया । बद्ध के जन्म का प्रत्यय आया । पिछला प्रश्न मिटा । श्रोताओं का ॥३८॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देहांतनिरूपणनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : December 04, 2023

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