वसु n. प्राचेतस दक्ष की कन्या, जो धर्म ऋषि की पत्नी थी । विभिन्न कल्पों में इसने अनेकानेक अवतार लिये, जिस कारण इसे विभिन्न नाम प्राप्त हुए। महाभारत में प्राप्त इसके विभिन्न नाम निम्नप्रकार हैः- १. शांडिल्या; २. श्र्वासा; ३. रता; ४. धूम्रा; ५. प्रभाता; ६. मनस्विनी। इन वसुओं को अनेकानेक पुत्र उत्पन्न हुए, जो वसु नामक देवतासमूह कहलाते है
[भा. ६.६.४] ;
[ब्रह्मांड. २.९.५०] ; वसु. २. देखिये ।
वसु (काश्यप) n. रोहित मन्वन्तर का एक ऋषि
[ब्रह्मांड ४.१.६३] ।
वसु (भारद्वाज) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. ९.८०-८२] ।
वसु II. n. एक देवतासमूह, जिसकी संख्या आठ होने के कारण ये ‘अष्टवसु’ नाम से प्रसिद्ध है
[ऐ. ब्रा. २.१८] ;
[श. ब्रा. ४.५.७] । तैत्तिरीय संहिता में इनकी संख्या ३३३ दी गयी हैं
[तै. सं. ५.५.२] । ऋग्वेद में देवताओं का त्रिपदीय विभाजन निर्देशित है, जहॉं वसु, रूद्र एवं आदित्यों को क्रमशः पृथ्वी, अंतरिक्ष, एवं स्वर्ग में निवास करनेवाले देव कहा गया हैं
[ऋ. ७.३६.१४] । ब्राह्मणग्रंथों में वसु, रुद्र एवं आदित्यों की संख्या क्रमशः आठ, ग्यारह एवं बारह बतायी गयी है । इन्हीं देवों में द्यौः एवं पृथ्वी मिला कर देवों की कुल संख्या तैतीस बतायी गयी है ।
वसु II. n. इन ग्रंथों में वसुओं को धर्म एवं वसु के पुत्र माने गये है । किन्तु वहॉं वसु एक स्त्री न हो कर, कल्पभेदानुसार अनेकानेक स्त्रियॉं मानी गयी हैं
[भा. ६.६.१०] ;
[ब्रह्मांड. २.३८.२] ; वसु १. देखिये । ऐश्र्वर्यप्राति के लिए वसुओं की उपासना की जाती है
[भा. २.३.३] । ये वासुदेव के अंश माने जाते हैं, एवं वैवस्वत मन्वन्तर के सात देवतासमूह में इनका निर्देश प्राप्त है
[मत्स्य. ५.२०-२१, ९.२९] । वैदिक ग्रंथों में तथा पुराणों में, अग्नि को वसुओं का नायक बताया गया है
[ब्रह्मांड. २.२७.२४] ;
[मत्स्य. ८.४] । देवासुर संग्राम में इन्होंने कालेय नामक दैत्यों से युद्ध किया था
[भा. ८.१०.३४] । इन्हें साध्य देवों के बन्धु कहा गया हैं, एवं वसिष्ठ ऋषि से इन्हें लैंगिक समागम से पुनः जन्म प्राप्त होने का शाप प्राप्त हुआ था ।
वसु II. n. पुराणों में अष्टवसु नाम निम्नप्रकार दिये गये हैः---१. अनल; २. अनिल; ३. अप्; ४. धर; ५. ध्रुव; ६; प्रत्यूष; प्रभास; ८. सों।
वसु II. n. अष्टवसुओं की माता, पत्नियॉं एवं पुत्र आदि के बारे में विस्तृत जानकारी महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है (पृ. ८१२ पर दी गयी ‘अष्टवसुओं का परिवार’ की तालिका देखिये) ।
वसु - (१) द्रोण
पत्नी - अभिमति
पुत्र - हर्ष, शोक, भय ।
वसु - (२) प्राण
पत्नी - ऊर्जस्वती
पुत्र - सह, आयु, पुरोजव ।
वसु - (३) ध्रुव
पत्नी - धरणि
पुत्र - पुरस्थ देवता ।
वसु - (४) अर्क
पत्नी - वासना
पुत्र - तर्ष ।
वसु - (५) अग्नि
पत्नी - वसोर्धारा कृत्तिका
पुत्र - द्रविणक, स्कंद, विशाख ।
वसु - (६) दोष
पत्नी - शर्वरी
पुत्र - शिशुमार
वसु - (७) वसु
पत्नी - आंगिरसी
पुत्र - विश्वकर्मन्
वसु - (८) विभावसु
पत्नी - उषा
पुत्र - व्युष्ट, रोचिष, आतप, पंचयाम ।
वसु II. n. इस ग्रंथ में अष्टवसुओं के नाम एवं परिवार के संबंध में अन्य सारे पुराण एवं महाभारत से विभिन्न जानकारी प्राप्त है, जो निम्नप्रकार हैः-
अष्टवसुओं का परिवार
वसु का नाम - (१) अनल
माता - शांडिल्या
पत्नी - -
पुत्र - स्कंद, शाख, विशाख, नैगमेय ।
वसु का नाम - (२) अनिल
माता - श्वासा
पत्नी - शिवा ( कृत्तिका ) कल्याणिनी
पुत्र - मनोजव, जीव, अविज्ञातगति । रमण, शिशिर ।
वसु का नाम - (३) अप् ( अह )
माता - रता
पत्नी - -
पुत्र - वैतण्ड्य ( दंड ); श्रम ( शांब, शम ), श्रांत ( शांत ); मुनि ( ध्वनि, मणिवक्र ), ज्योति ।
वसु का नाम - (४) धर
माता - धूम्रा
पत्नी - मनोहरा
पुत्र - शिशिर, रमण ( द्रविण ), प्राण, हव्यवाह ।
वसु का नाम - (५) ध्रुव
माता - धूम्रा
पत्नी - -
पुत्र - काल ।
वसु का नाम - (६) प्रत्यूष
माता - प्रभाता
पत्नी - -
पुत्र - देवल ।
वसु का नाम - (७) प्रभास
माता - प्रभाता
पत्नी - वरस्त्री आंगिरसी ( बृहस्पतिभगिनी )
पुत्र - विश्वकर्मन् ।
वसु का नाम - (८) सोम ( चंद्र )
माता - मनस्विनी
पत्नी - -
पुत्र - वर्चस् बुध, धर ( धार ), ऊर्मि, कालिल ।
वसु III. n. वैवस्वत मन्वन्तर का देवगण।
वसु IV. n. प्रतर्दन देवों में से एक ।
वसु IX. n. दक्षसावर्णि मन्वन्तर का एक ऋषि।
वसु V. n. आद्य देवों में से एक ।
वसु VI. n. दस विश्र्वेदेवों में से तीसरा देव। यह भृगु ऋषि का पुत्र था
[मत्स्य. १९५.१३] ।
वसु VII. n. ब्रह्मज्योति अग्नि का नामान्तर। पाठभेद - ‘वसुधाम’
[ब्रह्मांड. २.१२.४३] ।
वसु VIII. n. सों की अनुचरी देवताओं में से एक ।
वसु X. n. ०. सावर्णि मनु का एक पुत्र
[मत्स्य. ९.३३] ; मनु आदिपुरुष देखिये ।
वसु XI. n. १. स्वायंभुव मनु का एक पुत्र
[मत्स्य. ९.५] ; मनु आदिपुरुष देखिये ।
वसु XII. n. २. एका राजा, जो मत्स्य के अनुसार पुरूरवस् एवं उर्वशी का पुत्र था
[मत्स्य. २४.३३] । पाठभेद - ‘अमावसु’।
वसु XIII. n. ३. (स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार वत्सर राजा का पुत्र था । इसकी माता का नाम स्वर्वीर्थि था ।
वसु XIV. n. ४. (सो. अमा.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार कुश राजा के चार पुत्रों में से एक था । विष्णु एवं वायु में इसे क्रमशः ‘अमावसु’ एवं ‘यशोवसु’ कहा गया है । इसने गिरिव्रज नामक नगरी की स्थापना की, जो रामायणकाल में ‘वसुमती’ नामक में सुविख्यात थी
[वा. रा. बा. ३२.७] ।
वसु XIX. n. ९. (सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव एवं देवराक्षिता के पुत्रों में से एक था । कंस ने इसका वध किया।
वसु XV. n. ५. (सो. ऋक्ष.) चेदि देश के उपरिचर वसु राजा का नामांतर (उपरिचर देखिये) । भागवत एवं विष्णुमें इसे क्रमशः ‘कृति’ एवं ‘कृतक’ राजा का पुत्र कहा गया है ।
वसु XVI. n. ६. (स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो उत्तानपाद राजा का पुत्र था । इसकी माता का नाम सुनृता था । एक बार पशुयज्ञ के संबंध में वादविवाद का निर्णय देने के लिए कई ऋषि इसके साथ आये। उस समय इसने पशुयज्ञ हिंसक, अतएव त्याज्य होने का अपना मत प्रकट किया, जिस कारण ऋषियों ने इसे रसातल में जाने का शाप दिया। आगे चल कर तपस्या के कारण, इसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हो गयी
[मत्स्य. १४३.१८-२५] ।
वसु XVII. n. ७. (सू. इ.) एक राजा, जो नृग राजा का पुत्र था ।
वसु XVIII. n. ८. (सू. नृग.) एक राजा, जो सुमति राजा का पुत्र था ।
वसु XX. n. ०. (सो. वसु.) एक राजा, जो कृष्ण एवं सत्या के पुत्रों में से एक था । भागवत में इसकी माता का नाम नाग्नजिति दिया गया है
[भा. १०.६१.१३] ।
वसु XXI. n. १. (सो.) एक राजा, जो ईलिन एवं रथंतरी के पॉंच पुत्रों में से एक था । इसके अन्य चार भाईयों के नाम दुय्यंत, शूर, भीम एवं प्रवसु थे
[म. आ. ८९.१५] ।
वसु XXII. n. २. कृमिकुल का एक कुलांगार राजा, जिसने दुर्व्यवहार के कारण अपने ज्ञातिबांधव एवं स्वजनों का नाश किया
[म. उ. ७२.१३] । पुराणों में इसे चेदि देश का राजा एवं पृथु राजा का प्रपौत्र कहा गया है । इसके पुत्र का नाम उपमन्यु था, जिससे औपमन्यव कुल का निर्माण हुआ
[मत्स्य. ५०.२५-२६] ।
वसु XXIII. n. ३. एक राजा, जो भूतज्योति नामक राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम प्रतीक था
[भा. ९.२.१७-१८] ।
वसु XXIV. n. ४. एक ऋषि, जो इंद्रप्रमति वसिष्ठ नामक ऋषि का पौत्र, एवं भद्र नामक ऋषि का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम उपमन्यु था ।
वसु XXIX. n. ९. एक दैत्य, जो मुर दैत्य के पुत्रों में से एक था । कृष्ण ने इसका वध किया
[भा. १०.५९.१२] ।
वसु XXV. n. ५. एक ऋषि, जो जमदग्नि एवं रेणुका के पॉंच पुत्रों में से एक था । इसके अन्य भाईयों के नाम रुमण्वत्, सुपेण, विश्र्वावसु एवं परशुराम थे । पिता की मातृबध संबंधी आज्ञा न मानने के कारण, इसे पिता के द्वारा शाप प्राप्त हुआ था । परशुराम के द्वारा उस शाप से इसका उद्धार हुआ।
वसु XXVI. n. ६. एक आंगिरसवंशीय ऋषि, जो पैल ऋषि का पिता था
[म. स. ३०.३५] । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यह ‘होता’ था ।
वसु XXVII. n. ७. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो कुशद्वीप के हिरण्यरेतस् राजा के सात पुत्रों में से एक था
[भा. ५.२०.१४] ; हिरण्यरेतस् देखिये । कुशद्वीप का इसका राज्यविभाग इसीके ही नाम से सुविख्यात हुआ।
वसु XXVIII. n. ८. एक यक्ष, मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों में से एक था
[ब्रह्मांड. ३.७.१२३] ।
वसु XXX. n. ०. एक वसु, जिसकी पत्नी का नाम आंगिरसी, एवं पुत्र नाम विश्वकर्मन् था
[भा. ६.६.११] ; वसु २. देखिये ।
वसु XXXI. n. १. कर्दम ऋषि के दस पुत्रों में से एक
[ब्रह्मांड. २.१४.९] ।
वसु XXXII. n. २. मारीच कश्यप नामक ऋषि की पत्नी, जिसने सों के लिए अपने पति का त्याग किया
[मत्स्य. २३.२५] ।
वसु XXXIII. n. ३. एक ऋषि, जो भृगु वारुणि एवं पौलोमी के सात ऋषिपुत्रों में से एक था ।
वसु XXXIV. n. ४. काश्मीर देश का एक राजा, जिसने पुष्करतीर्थ पर तपस्या की थी । इसने पुंडरिकाक्ष के स्तोत्र का पठन किया, जिस कारण इसे मोक्ष की प्राप्ति हुई
[वराह. ५-६] । अपने पूर्वजन्म में, चाक्षुष मनु के राज्यकाल में यहं ब्रह्मा का पुत्रा था । एक बार इसने रैभ्य ऋषि के द्वारा बृहस्पति को प्रश्र्न किया, ‘कर्म से मोक्ष प्राप्त होता है, या ज्ञान से?’ उस समय बृहस्पति ने इसे जबाब दिया, ‘ज्ञानपूर्वक किये कर्म से मनुष्य को मोक्षप्राप्ति होती है’। उस जन्म में इसके पुत्र का नाम विवस्वत् था । अपने इस पूर्वजन्म का स्मरण एक व्याध के द्वारा इसे हुआ, जिस कारण इसने उस व्याध को अगले जन्म में ‘धर्मव्याध’ होने का वर प्रदान किया।
वसु XXXV. n. ६. केरल देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण
[पद्म. उ. ११९] । पापकर्म के कारण इसे पिशाचयोनि प्राप्त हो गयी। पश्र्चात् गंगोदक से यह मुक्त हुआ।
वसु XXXVI. n. ७. वेंकटाचल पर रहनेवाला एक निषाद। इसकी पत्नी का नाम चित्रवती था, जिससे इसे वीर नाम पुत्र उत्पन्न हुआ था । विष्णु की उपासना करने से यह मुक्त हुआ।