उपमन्यु (वासिष्ठ) n. मंत्रदृष्टा
[ऋ.९.९७.१३-१५] । वसिष्ठकुलोत्पन्न व्याघ्रपाद का पुत्र । इसका कनिष्ठ बंधु धौम्य । इसका आश्रम हिमालय पर्वत पर था । इसकी माता का नाम अंबा था । उपमन्यु आपोद (आयोद) धौम्य ऋषि का शिष्य । धौम्य ने उपमन्यु के उदर्निर्वाह के साधन भिक्षा, दूध, फेन आदि बंद किया । अंत में प्राण के अत्यंत व्याकुल होने पर इसने अरकवृक्ष के पत्तों का भक्षण किया । जिसके कारण वह अंधा हुआ तथा कुएँ में गिर पडा । गुरुजी शिष्य को ढूंढने के लिये निकले, तथा वन में आकर उपमन्यु को कई बार पुकारा । गुरुजी के शब्द पहचान कर उपमन्यु ने अपना सारा वृत्तांत कहा । तब गुरुजी ने इसे अश्विनीकुमारों की स्तुति करने को कहा । स्तुति करते ही अश्विनीकुमारों ने प्रसन्न हो कर इसे एक अपूप भक्षण करने दिया । परंतु इसने गुरु को प्रथम अर्पण किये बिना उसे भक्षण करना अस्वीकार कर दिया । उपमन्यु को किसी भी प्रकार के मोह के वश न होते देख, वे उस पर बहुत संतुष्ट हुए । अश्विनीकुमारों ने उसे उत्तम दृष्टि दी । गुरु भीं उस पर प्रसन्न हुए
[म.आ.३.३२-८४] । बचपन में एक बार उपमन्यु दूसरे मुनि के आश्रम में खेलने गया । वहा इसने गाय का दूध निकालते हुए देखा । बचपन में एक बार इसके पिता एक यज्ञ में उसे ले गये, जहॉं इसे दुग्धप्राशन करने मिला था । इस कारण इसे दूध का गुण तथा उसकी मिठास मालूम थी
[म. अनु. .१४. ११७-१२०] । लिंग एवं शिव पुराण में ऐसा दिया है कि, जब वह मामा के घर गय था, तब इसे दुग्धप्राशन करने मिला था
[लिंग. १.१०७] ;
[शिव. वाय. १.३४.३५] । घर आ कर उपमन्यु माता से दूध मांगने लगा । मां ने आटा पानी में घोल कर दिया जिस कारण उसे बहुत खराब लगा । मां ने स्नेहपूर्वक उपमन्यु पर हात फेरते हुए कहा कि, पूर्वजन्म में शंकर की आराधना न करने के कारण, दूध मिलने इतना दैव अपने अनुकूल नहीं है । शंकर कैसा है, उसका ध्यान किस तरह करना चाहिये, इत्यादि जानकारी उसने माता से पूछी । माता को प्रणाम कर वह तपस्या करने चला गया । वहां दुस्तर तपस्या कर शंकर को उसने प्रसन्न किया । प्रथम शंकर ने इंद्र के स्वरुप में आ कर कहा कि, मेरी आराधना करो; परंतु उसे शंकर के अभाव में देहत्याग की तैयारी करते देख शंकर ने प्रगट हो उसे अनेक वर दिये । क्षीरसागर, दिया तथा गणों का अधिपति नियुक्त किया । उसने शंकर पर अनेक स्तोत्र रचे । उसने आठ ईटों का मंदिर बना कर मिट्टी के शिवलिंग की आराधना की, तथा पिशाचों द्वारा लाये गये विघ्नों पर भी उसने तप को भंग नहीं होने दिया
[शिव. वाय. १.३४] । यह शैव था । इसने कृष्ण को शिवसहस्त्रनाम बताया
[म. अनु. १७] । तथा पुत्रप्राप्ति के लिये तप करने जब कृष्ण आया, तब उसे शैवी दीक्षा दी । हिमवान् पर्वत के आश्रम में अंत में यह अत्यंत जीर्णवस्त्र ओढ कर रहता था । इसने जटा भी धारण की थी । यह कुतयुग में हुआ था
[म. अनु. १४-१७] ;
[शिव. उमा.१] । शंकर के बताये अत्यंत विस्तृत शैवसिद्धांत को इसने ऊरु, दधीच तथा अगस्त्य इनके साथ संक्षेप में कर समाज में प्रसिद्ध किया
[शिव. वाय. ३२] ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) II. n. नंदिकेश्वरकृत काशिका ग्रंथ पर व्याघ्रपद के पुत्र उपमन्यु की टीका है । इस टीकाकार ने अपनी अपनी टीका में इस काशिका के बारे में यह विवरण दिया है कि, शिव ने अपने डमरु के मिष (बहाने) सनक, सनंदन, पतंजलि, व्याघ्रपाद आदि भक्तों के लिये चौदह सूत्रों के द्वारा ज्ञान प्रगट किया । परंतु उन में से केवल एक नंदिकेश्वर को इन सूत्रों का तत्त्वार्थ समझा, तथा उसने इन छ्ब्बीस श्लोकों की काशिका रची (शिवदत्त-महाभाष्य पृष्ठ ९२ देखिये) । व्याकरण संबंधी माहेश्वर के चौदह वर्णसूत्र प्रसिद्ध है, जो महेश्वर ने डमरु बजा कर पाणिनि को दिये ऐसी प्रसिद्धि है । इन सूत्रों का कुछ गूढार्थ है, ऐसा नंदिकेश्वरकाशिका से पता चलता है ।शेखर के रचयिता नागंशभट्ट ने नंदिकेश्वर काशिका को प्रमाण माना है । इस बात से पता चल जायेगा कि उपमन्यु, पाणिनि तथा पतंजलि के पश्चात् का रहा होगा । व्याघ्रपाद (उपमन्यु का पिता), नंदिकेश्वर तथा पतंजलि समकालीन थे, ऐसा प्रतीत होता है । परंतु काल की दृष्टि से सारे उपमन्यु एक है यह कहना असंभव लगता है । इसके द्वारा लिखे ग्रन्थ, १. अर्धनारीश्वराष्टक, २. तत्त्वविभर्षिणी, ३. शिवाष्टक, ४. शिवस्तोत्र (बृहत्स्तोत्र रत्नाकर में छपा है), ५. उपमन्युनिरुक्त (C.C.) इसनें एक स्मृति की भी रचना की थी, ऐसा स्थान पर आये वचनों से पता चलता है ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) III. n. वेद ऋषि का शिष्य ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) IV. n. कृष्णद्वपायन व्यास का पुत्र, शुक्राचार्य का बंधु ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) V. n. इंद्रप्रमतिपुत्र वसु का पुत्र
[ब्रह्मांड. ३.९.१०] । यह ऋग्वेदी श्रुतर्षि मध्यमाध्वर्यु भी था ।