रैभ्य n. एक आचार्य, जो पौतिमाष्यायण एवं कौण्डिन्यायन नामक आचायों का शिष्य था
[वृ. उ. २.५.२०, ४.५.२६] । रेम का वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा ।
रैभ्य II. n. एक ऋषि, जो विश्वामित्र ऋषि का पुत्र, एवं भरद्वाज मुनि का मित्र था
[म. शां. ४९.४९] । महाभारत में अन्यत्र इसे अंगिरस ऋषि का पुत्र कहा गया है । इसे अर्वावसु एवं परावसु नामक दो पुत्र थे
[म. व. १३५.१२-१३] । भरद्वाज ऋषि के पुत्र यवकीत के दुराचरण से क्रुद्ध हो कर इसने उसका वध किया, जिस, पर भरद्वाज ऋषि ने इसे अपने ज्येष्ठ पुत्र के द्वारा वध होने का शाप दिया । पश्वात् अपने पुत्र परावसु के द्वारा हिंस्र पशु के धोखे में इसका वध हुआ । किंन्तु इसके द्वितीय पुत्र अर्वावसु ने अध्ययन से प्राप्त वेदमंत्रों से इसे पुनः जीवित किया
[म. व. १३९.५-२३] ;
[स्कंद ३.१.३३] ; यवक्रीत देखिये ।
रैभ्य III. n. (सो. पुरूरवस.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार, सुमति राजा का पुत्र था ।
रैभ्य IV. n. ब्रह्मा के पुत्रों में से एक । एक बार यह वसु एवं अंगिरस ऋषियों के साथ बृहस्पति के पास गया, एवं इसने मोक्षप्राप्ति क बारे में अनेकानेक प्रश्न कियें । मोक्ष कर्म से नहीं, बल्कि ज्ञान से प्राप्त होता है, यह ज्ञान प्राप्त होने पर यह गया में तपश्चर्या करने लगा, जहाँ सनत्कुमारों से इसकी भेंट हुई थी
[वराह. ७] । एक बार इसकी तपस्था में बाधा डालने के लिये उर्वशी उपस्थित हुई, जिसे इसने विरूप होने का शाप दिया । पश्वात् उर्वशी के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, इसने उसे योगिनी-कुंड में स्नान कर पूर्ववत् बनने का उ:शाप दिया, जब से योगिनी-कुंड को ‘उर्वशीकुंड’ नाम प्राप्त हुआ
[स्कंद २.८.७] ।
रैभ्य V. n. एक मुनि, जो वीरण ऋषि का शिष्य था । वीरण से इसे सात्वत धर्म का उपदेश प्राप्त हुआ था, जो इसने अपने दिक्पाक कुक्षि नामक पुत्र को प्रदान किया था
[म. शां. ३३६.१७] । पाठभेद-’ रौच्य’ ।
रैभ्य VI. n. रैवत मन्वंन्तर के भूतरजस् देवगणों में से एक ।