स्कंद n. देवों का सेनापति, जो तारकासुर का वध करने के लिए इस पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था । सात दिनों की आयु में ही इसने तारकासुर का वध किया । पुराणों में सर्वत्र इसे शिव एवं पार्वती का, अथवा अग्नि का पुत्र माना गया है, एवं इसे ‘छः मुखोंवाला’ (षण्मुख) कहा गया है ।
स्कंद n. इसके जन्म के संबंध में विभिन्न कथाएँ महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है । ब्रह्मांड के अनुसार, एकबार शिव एवं पार्वती जब एकान्त में बैठे थे, उस समय इंद्र ने अष्टवसुओं में से अनल नामक अग्नि के द्वारा उनके एकान्त का भंग किया । इस कारण शिव के वीर्य का आधा भाग भूमि पर गिर पड़ा । अग्नि के इस औद्धत्य के कारण पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हुई, एवं उसने अग्नि को शाप दे कर शिव का वीर्य धारण करने पर उसे विवश किया । शिव के वीर्य को अग्नि ज्यादा समय तक धारण न कर सका, इसलिए उसने उसे गंगा को दे दिया । गंगा ने भी उसे कुछ काल तक धारण कर भूमि पर छोड़ दिया । आगे चल कर उसी वीर्य से स्कंद का जन्म हुआ
[ब्रह्मांड. ३.१०.२२-६०] ;
[वायु. ११.२०-४९] ।
स्कंद n. इस ग्रंथ में इसकी जन्मकथा कुछ भिन्न प्रकार से दी गयी है । एक बार सप्तर्षियों के यज्ञ में, अग्नि सप्तर्षियों के पत्नियों पर कामासक्त हुआ, एवं अपनी अप्रिय पत्नी स्वाहा को छोड़ कर उनसे रमण करने के लिए प्रवृत्त हुआ । अग्निपत्नी स्वाहा को यह ज्ञात होते ही वह अरुंधती के अतिरिक्त अन्य छः सप्तर्षि पत्नियों में समाविष्ट हुई । पश्चात् उसे ही सप्तर्षिपत्नियाँ समझ कर अग्नि ने उससे संभोग किया । स्वाहा ने अग्नि से प्राप्त उसका सारा वीर्य एक कुण्ड में रख दिया, जिससे आगे चल कर स्कंद का जन्म हुआ
[म. व. २१३-२१४] । छः ऋषि पत्नियो के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण, इसे छः मुख प्राप्त हुए थे । अमावस्या के दिन इसका जन्म हुआ था । यही कथा महाभारत एवं विभिन्न पुराणों में कुछ फर्क से दी गयी है
[म. व. २२०.९ ९-१२] ;
[पद्म. सृ. ४४] ;
[स्कंद. १.१.२७] ;
[मत्स्य. १५८-२७] ;
[वा. रा. बा. ३६] ।
स्कंद n. महाभारत में इसके विभिन्न नामान्तर निम्न प्रकार दिये गये हैः-- १. स्कंद, जो नाम इसे ‘स्कन्न’ वीर्य से उत्पन्न होने के कारण, अथवा दानवों का स्कंदन करने के कारण प्राप्त हुआ था; २. षाण्मातुर, जो नाम इसे छः ऋषि पत्नियों के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण प्राप्त हुआ था; 3. कार्तिकेय, जो नाम इसे छः कृत्तिकाओं के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण प्राप्त हुआ था; ४. विशाख, जो नाम इसे अनेक शाखा (हाथ) होने के कारण प्राप्त हुआ था; ५. षष्मुख, जो नाम इसे इसके छः मुख होने के कारण प्राप्त हुआ था; ६. सेनानी अथवा देव सेनापति, जो नाम इसे देवों का सेनापति होने के कारण प्राप्त हुआ था; ७. स्वाहेय, जो नाम इसे अग्निपत्नी स्वाहा का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था
[म. व. परि. १.२२] ; ८. सनत्कुमार,
[ह. वं. १.३] ;
[म. व. २१९] ।
स्कंद n. इसका जन्म होते ही विभिन्न देवताओं ने इसे निम्नलिखित अस्त्र प्रदान कियेः--- १. विष्णु - गरुड, मयुर एवं कुक्कुट आदि वाहन; २. वायु - पताका; ३. सरस्वती - वीणा; ४. ब्रह्मा - अज; ५. शंभु - मेंढक; ६. जृंभदैत्य - अपराजिता नामक शक्ति, जो इस दैत्य के मुख से उत्पन्न हुई थी
[ब्रह्मांड. ३.१०.४५-४८] । इसका उपनयन संस्कार विश्वामित्र ऋषि ने किया
[म. व. २१५.९] ।
स्कंद n. तारकासुर का वध करने के लिए स्कंद ने अवतार लिया था । ब्रह्मा ने तारकासुर को अवध्यत्व का वर देते हुए कहा था कि, इस सृष्टि में केवल सात दिन का अर्भक ही केवल उसका वध कर सकता है । इसी कारण जन्म के पश्चात् सात दिनों की अवधि में ही इसने तारकासुर से युद्ध कर, उसका वध किया
[पद्म. सृ. ४४] ;
[मत्स्य. १६०] । महाभारत में इसके द्वारा तारकासुर के साथ, महिषासुर का भी वध करने का निर्देश प्राप्त है
[म. श. ४५.६४] ;
[अनु. १३३.१९] ;
[व. २२१.६६] । इसका जन्म अमावास्या के दिन हुआ, एवं शुक्ल षष्ठी के दिन इसने तारकासुर का वध किया । तारकासुर का वध करने के पूर्व शुक्ल पंचमी के दिन देवों ने इसे क्रौंच पर्वत पर
[ब्रह्मांड. उ. ३.१०] ; स्थाणुतीर्थ में
[म. श. ४१.७] ; अथवा वारुणितीर्थ में
[पद्म. स्व. २७] सेनापत्य का अभिषेक किया । उसी दिन से यह देवों का सेनापति माना गया । शुक्ल पंचमी का इसका अभिषेक दिन, एवं शुक्ल षष्ठी का तारकासुर के वध का दिन कार्तिकेय की उपासना करनेवाले लोग विशेष पवित्र मानते है ।
स्कंद n. तारक एवं महिषासुर के अतिरिक्त इसने त्रिपाद, ह्रदोदर, बाणासुर आदि राक्षसों का वध किया था
[म. श. ४५.६५-८१] । इसने क्रौंचपर्वत का अपने बाण से विदरण किया था, एवं अपने ‘शक्ति’ से हिमालय पर्वत उखाड देने की प्रतिज्ञा की थी
[म. शां. ३१४. ८-१०] ।
स्कंद n. तारकासुर के वध के पश्चात् पार्वती के अत्यधिक लाड प्यार से यह समस्त देवस्त्रियों पर अपनी पापवासना का जाल बिछाने लगा, एवं बलात्कार करने लगा। इसके स्वैराचार की शिकायत देवस्त्रियों ने पार्वती के पास की । इस पर पार्वती ने इसे सन्मार्ग पर लाने के हेतु, सृष्टि की हर एक स्त्री में अपना ही रूप दिखाना प्रारंभ किया । उन्हें देखते ही इसे कृतकर्मों का अत्यधिक पश्चात्ताप हुआ, एवं इसने पार्वती के पास जा कर प्रतिज्ञा की, ‘आज से संसार की सारी स्त्रियाँ मुझे माता के समान ही हैं’ ।
[ब्रह्म. ८१] । स्त्रियों के प्रति इसकी अत्यधिक विरक्त वृत्ति के कारण आगे चल कर इसका दर्शन भी उनके लिए अयोग्य माना जाने लगा । आज भी स्कंद का दर्शन स्त्रियाँ नहीं लेती है, एवं इसकी प्रतिमा के दर्शन से स्त्री को सात जन्म तक वैधव्य प्राप्त होता है, ऐसी जनश्रुति है । इस जनश्रुति के लिए पौराणिक साहित्य में कहीं भी आधार प्राप्त नहीं है; केवल मराठी ‘शिवलीलामृत’ ग्रंथ में यह कथा प्राप्त है
[शिवलीला. १३] ।
स्कंद n. इसकी पत्नी का नाम देवसेना था, जिससे इसे शाख, विशाख, एवं नैगमेय नामक पुत्र प्राप्त हुए थे । पौराणिक साहित्य में शाख, विशाख, एवं नैगमेय को स्कंद के पुत्र नहीं, बल्कि भाई बताये गये है, एवं वे अनल नामक वसु एवं शांडिल्या के पुत्र बताये गये है (वसु. १. देखिये) । महाभारत के अनुसार, एक बार इन्द्र के द्वारा इसके पीठ पर वज्र प्रहार करने से, उसी प्रहार से इसका विशाख नामक पुत्र, एवं कन्यापुत्र आदि पार्षद उत्पन्न हुए
[म. व. २१७.१, २१९] । कई अभ्यासकों के अनुसार इसकी पत्नी देवसेना एक स्त्री न हो कर, देवों के उस सेना का प्रतिरूप है, जिसका आधिपत्य इस पर सौंपा गया था ।
स्कंद n. इसके सैनापत्य के अभिषेक के समय विभिन्न देवताओं के द्वारा इसे अनेकानेक पार्षद, एवं महापार्षद दिये गये, जिनकी नामावलि महाभारत में दी गयी है
[म. व. २१३-२२१] ;
[श. ४४-४५] ।
स्कंद n. स्कंद के सप्तमाताओं को मातृका कहा जाता है, जिनकी नामावलि निम्नप्रकार प्राप्त है - १. काकी; २; हलिमा; ३. माता; ४. हली; ५. आर्या; ६. बाला; ७. धात्री। इन सप्तमाताओं के ब्राह्मी, माहेश्र्वरी आदि विभिन्नगण भी प्राप्त है । इन मातृकाओं की, एवं इसकी, शिशुओं के आरोग्यप्राप्ति के लिए पूजा की जाती है । स्कंद की अनुचरी मातृकाओं की नामावलि भी महाभारत में सविस्तृत रूप में प्राप्त है
[म. व. २१३-२२१] । इन मातृका, एवं उनके साथ उपस्थित ‘पुरुषग्रह’ स्कंद के ग्रह माने जाते है
[म. व. २१९] । कई अभ्यासकों के अनुसार, ‘स्कंदापस्मार’ आदि ‘स्कंदग्रह’ अपस्मार आदि व्याधियों का प्रतिनिधित्व करते है ।
स्कंद II. n. एक शाखाप्रवर्तक आचार्य (पाणिनि देखिये) ।
स्कंद III. n. धर्मपुत्र आयु नामक वसु का एक पुत्र (आयु. ८. देखिये) ।