संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|विष्णुधर्माः| अध्याय १० विष्णुधर्माः अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ विष्णुधर्माः - अध्याय १० विष्णुधर्माः Tags : puransanskritVishnu dharmaपुराणविष्णुधर्माःसंस्कृत विष्णुधर्माः - अध्याय १० Translation - भाषांतर अथ दशमोऽध्यायः ।पुलस्त्य उवाच ।रोहिण्याश्च यदा कृष्णपक्षेऽष्टम्यां द्विजोत्तम ।जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वपापहरा तिथिः १यद्बाल्ये यच्च कौमारे यौवने वार्द्धिके च यत् ।सप्तजन्मकृतं पापं स्वल्पं वा यदि वा बहु २तत्क्षालयति गोविन्दं तस्यामभ्यर्च्य भक्तितः ।होमजप्यादिदानानां फलं च शतसम्मितम् ३सम्प्राप्नोति न सन्देहो यच्चान्यन्मनसेच्छति ।उपवासश्च तत्रोक्तो महापातकनाशनः ४इति विष्णुधर्मेषु जयन्त्यष्टमी । N/A References : N/A Last Updated : February 07, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP