प्रथम आदिस्थान होतें वैकुंठ भूवन ॥ रहिवास मूळपीठ ॥
भूमंडाळसी येऊनी ॥ प्रगटली विश्वमाता ॥
नाम जगदंबा भवानी ॥ आहो जोगवा विश्वरुप ॥
ब्रम्ह परिपूर्ण स्वरुप ॥ आहो नव दिवस पूर्ण झाले ॥
योगि उत्कार दिधलें ॥ चंडमुंडा विभांडोनि ॥
आसन घातले मूळपीठी ॥ आहो जोगवा० ॥२॥
आहो जोगवा घालि माये ॥ तुज हो मागतसे पाहे ॥
देईं हो भक्तिरस ॥ विनवी मोरया गोसावी ॥
आसन ध्यानीं शयनीं हो ॥ स्मरे गणराज हृदयीं ॥३॥आहो जोगवा० ॥