संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|नागरखण्ड| अध्याय २३३ नागरखण्ड अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० अध्याय १११ अध्याय ११२ अध्याय ११३ अध्याय ११४ अध्याय ११५ अध्याय ११६ अध्याय ११७ अध्याय ११८ अध्याय ११९ अध्याय १२० अध्याय १२१ अध्याय १२२ अध्याय १२३ अध्याय १२४ अध्याय १२५ अध्याय १२६ अध्याय १२७ अध्याय १२८ अध्याय १२९ अध्याय १३० अध्याय १३१ अध्याय १३२ अध्याय १३३ अध्याय १३४ अध्याय १३५ अध्याय १३६ अध्याय १३७ अध्याय १३८ अध्याय १३९ अध्याय १४० अध्याय १४१ अध्याय १४२ अध्याय १४३ अध्याय १४४ अध्याय १४५ अध्याय १४६ अध्याय १४७ अध्याय १४८ अध्याय १४९ अध्याय १५० अध्याय १५१ अध्याय १५२ अध्याय १५३ अध्याय १५४ अध्याय १५५ अध्याय १५६ अध्याय १५७ अध्याय १५८ अध्याय १५९ अध्याय १६० अध्याय १६१ अध्याय १६२ अध्याय १६३ अध्याय १६४ अध्याय १६५ अध्याय १६६ अध्याय १६७ अध्याय १६८ अध्याय १६९ अध्याय १७० अध्याय १७१ अध्याय १७२ अध्याय १७३ अध्याय १७४ अध्याय १७५ अध्याय १७६ अध्याय १७७ अध्याय १७८ अध्याय १७९ अध्याय १८० अध्याय १८१ अध्याय १८२ अध्याय १८३ अध्याय १८४ अध्याय १८५ अध्याय १८६ अध्याय १८७ अध्याय १८८ अध्याय १८९ अध्याय १९० अध्याय १९१ अध्याय १९२ अध्याय १९३ अध्याय १९४ अध्याय १९५ अध्याय १९६ अध्याय १९७ अध्याय १९८ अध्याय १९९ अध्याय २०० अध्याय २०१ अध्याय २०२ अध्याय २०३ अध्याय २०४ अध्याय २०५ अध्याय २०६ अध्याय २०७ अध्याय २०८ अध्याय २०९ अध्याय २१० अध्याय २११ अध्याय २१२ अध्याय २१३ अध्याय २१४ अध्याय २१५ अध्याय २१६ अध्याय २१७ अध्याय २१८ अध्याय २१९ अध्याय २२० अध्याय २२१ अध्याय २२२ अध्याय २२३ अध्याय २२४ अध्याय २२५ अध्याय २२६ अध्याय २२७ अध्याय २२८ अध्याय २२९ अध्याय २३० अध्याय २३१ अध्याय २३२ अध्याय २३३ अध्याय २३४ अध्याय २३५ अध्याय २३६ अध्याय २३७ अध्याय २३८ अध्याय २३९ अध्याय २४० अध्याय २४१ अध्याय २४२ अध्याय २४३ अध्याय २४४ अध्याय २४५ अध्याय २४६ अध्याय २४७ अध्याय २४८ अध्याय २४९ अध्याय २५० अध्याय २५१ अध्याय २५२ अध्याय २५३ अध्याय २५४ अध्याय २५५ अध्याय २५६ अध्याय २५७ अध्याय २५८ अध्याय २५९ अध्याय २६० अध्याय २६१ अध्याय २६२ अध्याय २६३ अध्याय २६४ अध्याय २६५ अध्याय २६६ अध्याय २६७ अध्याय २६८ अध्याय २६९ अध्याय २७० अध्याय २७१ अध्याय २७२ अध्याय २७३ अध्याय २७४ अध्याय २७५ अध्याय २७६ अध्याय २७७ अध्याय २७८ अध्याय २७९ विषयानुक्रमणिका नागरखण्डः - अध्याय २३३ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय २३३ Translation - भाषांतर ॥ ऋषय ऊचुः ॥सूत सूत महाभाग श्रोतुमिच्छामहे वयम् ॥चातुर्मास्यव्रतानां हि त्वत्तो माहात्म्यविस्तरम् ॥१॥तदस्माकं महाभाग कृपां कृत्वाऽधुना वद ॥त्वद्वचोऽमृतपानेन भूयः श्रद्धाभिवर्धते ॥२॥ ॥ सूत उवाच ॥शृणुध्वं मुनयः सर्वे चातुर्मास्यव्रतोद्भवम् ॥माहात्म्यं विस्तरेणैव कथयिष्यामि वोऽग्रतः ॥३॥पुरा ब्रह्ममुखाच्छ्रुत्वा नानाव्रतविधानकम् ॥नारदः परिपप्रच्छ भूयो ब्रह्माणमादरात् ॥४॥ ॥नारद उवाच ॥देवदेव महाभाग व्रतानि सुबहून्यपि ॥श्रुतानि त्वन्मुखाद्ब्रह्मन्न तृप्तिमधिगच्छति ॥५॥अधुना श्रोतुमिच्छामि चातुर्मास्यव्रतं शुभम् ॥६॥ ॥ ब्रह्मोवाच ॥शृणु देवमुने मत्तश्चातुर्मास्यव्रतं शुभम् ॥यच्छ्रुत्वा भारते खंडे नृणां मुक्तिर्न दुर्लभा ॥७॥मुक्तिप्रदोऽयं भगवान्संसारोत्तारकारणम् ॥यस्य स्मरणमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥८॥मानुष्ये दुर्लभं लोके तत्राऽपि च कुलीनता ॥तत्रापि सदयत्वं च तत्र सत्संगमः शुभः ॥९॥सत्संगमो न यत्रास्ति विष्णुभक्तिर्व्रतानि च ॥चातुर्मास्ये विशेषेण विष्णुव्रतकरः शुभः ॥१०॥चातुर्मास्येऽव्रती यस्तु तस्य पुण्यं निरर्थकम् ॥सर्वतीर्थानि दानानि पुण्यान्यायतनानि च ॥११॥विष्णुमाश्रित्य तिष्ठंति चातुर्मास्ये समागते ॥सुपुष्टेनापि देहेन जीवितं तस्य शोभनम् ॥१२॥चातुर्मास्ये समायाते हरिं यः प्रणमेद्बुधः ॥कृतार्थास्तस्य विबुधा यावज्जीवं वरप्रदाः ॥१३॥संप्राप्य मानुषं जन्म चातुर्मास्यपराङ्मुखः ॥तस्य पापशतान्याहुर्देहस्थानि न संशयः ॥१४॥मानुष्यं दुर्लभं लोके हरिभक्तिश्च दुर्लभा ॥चातुर्मास्ये विशेषेण सुप्ते देवे जनार्दने ॥१५॥चातुर्मास्ये नरः स्नानं प्रातरेव समाचरेत् ॥सर्वक्रतुफलं प्राप्य देववद्दिवि मोदते ॥१६॥चातुर्मास्ये तु यः स्नानं कुर्यात्सिद्धिमवाप्नुयात् ॥तथा निर्झरणे स्नाति तडागे कूपिकासु च ॥१७॥तस्य पापसहस्राणि विलयं यांति तत्क्षणात् ॥पुष्करे च प्रयागे वा यत्र क्वापि महाजले ॥चातुर्मास्येषु यः स्नाति पुण्यसंख्या न विद्यते ॥१८॥रेवायां भास्करक्षेत्रे प्राच्यां सागरसंगमे ॥एकाहमपि यः स्नातश्चातुर्मास्ये न दोषभाक् ॥१९॥दिनत्रयं च यः स्नाति नर्मदायां समाहितः ॥सुप्ते देवे जगन्नाथे पापं याति सहस्रधा ॥२०॥पक्षमेकं तु यः स्नाति गोदावर्यां दिनोदये ॥स भित्त्वा कर्मजं देहं याति विष्णोः सलोकताम् ॥२१॥तिलोदकेन यः स्नाति तथा चैवामलोदकैः ॥बिल्वपत्रोदकैश्चैव चातुर्मास्ये न दोषभाक् ॥२२॥गंगां स्मरति यो नित्यमुदपात्रसमीपतः ॥तद्गांगेयं जलं जातं तेन स्नानं समाचरेत् ॥२३॥गंगाऽपि देवदेवस्य चरणांगुष्ठवाहिनी ॥पापघ्नी सा सदा प्रोक्ता चातुर्मास्ये विशेषतः ॥२४॥यतः पापसहस्राणि विष्णुर्दहति संस्मृतः ॥तस्मात्पादोदकं शीर्षे चातुर्मास्ये धृतं शिवम् ॥२५॥चातुर्मास्ये जलगतो देवो नारायणो भवेत् ॥सर्वतीर्थाधिकं स्नानं विष्णुतेजोंशसंगतम् ॥२६॥स्नानं दशविधं कार्यं विष्णुनाम महाफलम् ॥सुप्ते देवे विशेषेण नरो देवत्वमाप्नुयात् ॥२७॥विना स्नानं तु यत्कर्म पुण्यकार्यमयं शुभम् ॥क्रियते निष्फलं ब्रह्मंस्तत्प्रगृह्णंति राक्षसाः ॥२८॥स्नानेन सत्यमाप्नोति स्नानं धर्मः सनातनः ॥धर्मान्मोक्षफलं प्राप्य पुनर्नैवावसीदति ॥२९॥ये चाध्यात्मविदः पुण्या ये च वेदांगपारगाः ॥सर्वदानप्रदा ये च तेषां स्नानेन शुद्धता ॥३०॥कृतस्नानस्य च हरिर्देहमाश्रित्य तिष्ठति ॥सर्वक्रियाकलापेषु संपूर्ण फलदो भवेत् ॥३१॥सर्वपापविनाशाय देवता तोषणाय च ॥चातुर्मास्ये जलस्नानं सर्वपापक्षयावहम् ॥३२॥निशायां चैव न स्नायात्संध्यायां ग्रहणं विना ॥उष्णोदकेन न स्नानं रात्रौ शुद्धिर्न जायते ॥३३॥भानुसंदर्शनाच्छुद्धिर्विहिता सर्वकर्मसु ॥चातुर्मास्ये विशेषेण जलशुद्धिस्तु भाविनी ॥३४॥अशक्त्या तु शरीरस्य भस्मस्नानेन शुध्यति ॥मंत्रस्नानेन विप्रेंद्र विष्णुपादोदकेन वा ॥३५॥नारायणाग्रतः स्नानं क्षेत्र तीर्थनदीषु च ॥यः करोति विशुद्धात्मा चातुर्मास्ये विशेषतः ॥३६॥इति श्रीस्कांदे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां षष्ठे नागरखण्डे हाटकेश्वरक्षेत्रमाहात्म्ये शेषशाय्युपाख्याने चातुर्मास्यमाहात्म्ये ब्रह्मनारदसंवादे गंगोदकस्नानफलमाहात्म्यवर्णनंनाम त्रयस्त्रिंशदुत्तरद्विशततमोऽध्यायः ॥२३३॥ N/A References : N/A Last Updated : January 06, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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