संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|नागरखण्ड| अध्याय ५९ नागरखण्ड अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० अध्याय १११ अध्याय ११२ अध्याय ११३ अध्याय ११४ अध्याय ११५ अध्याय ११६ अध्याय ११७ अध्याय ११८ अध्याय ११९ अध्याय १२० अध्याय १२१ अध्याय १२२ अध्याय १२३ अध्याय १२४ अध्याय १२५ अध्याय १२६ अध्याय १२७ अध्याय १२८ अध्याय १२९ अध्याय १३० अध्याय १३१ अध्याय १३२ अध्याय १३३ अध्याय १३४ अध्याय १३५ अध्याय १३६ अध्याय १३७ अध्याय १३८ अध्याय १३९ अध्याय १४० अध्याय १४१ अध्याय १४२ अध्याय १४३ अध्याय १४४ अध्याय १४५ अध्याय १४६ अध्याय १४७ अध्याय १४८ अध्याय १४९ अध्याय १५० अध्याय १५१ अध्याय १५२ अध्याय १५३ अध्याय १५४ अध्याय १५५ अध्याय १५६ अध्याय १५७ अध्याय १५८ अध्याय १५९ अध्याय १६० अध्याय १६१ अध्याय १६२ अध्याय १६३ अध्याय १६४ अध्याय १६५ अध्याय १६६ अध्याय १६७ अध्याय १६८ अध्याय १६९ अध्याय १७० अध्याय १७१ अध्याय १७२ अध्याय १७३ अध्याय १७४ अध्याय १७५ अध्याय १७६ अध्याय १७७ अध्याय १७८ अध्याय १७९ अध्याय १८० अध्याय १८१ अध्याय १८२ अध्याय १८३ अध्याय १८४ अध्याय १८५ अध्याय १८६ अध्याय १८७ अध्याय १८८ अध्याय १८९ अध्याय १९० अध्याय १९१ अध्याय १९२ अध्याय १९३ अध्याय १९४ अध्याय १९५ अध्याय १९६ अध्याय १९७ अध्याय १९८ अध्याय १९९ अध्याय २०० अध्याय २०१ अध्याय २०२ अध्याय २०३ अध्याय २०४ अध्याय २०५ अध्याय २०६ अध्याय २०७ अध्याय २०८ अध्याय २०९ अध्याय २१० अध्याय २११ अध्याय २१२ अध्याय २१३ अध्याय २१४ अध्याय २१५ अध्याय २१६ अध्याय २१७ अध्याय २१८ अध्याय २१९ अध्याय २२० अध्याय २२१ अध्याय २२२ अध्याय २२३ अध्याय २२४ अध्याय २२५ अध्याय २२६ अध्याय २२७ अध्याय २२८ अध्याय २२९ अध्याय २३० अध्याय २३१ अध्याय २३२ अध्याय २३३ अध्याय २३४ अध्याय २३५ अध्याय २३६ अध्याय २३७ अध्याय २३८ अध्याय २३९ अध्याय २४० अध्याय २४१ अध्याय २४२ अध्याय २४३ अध्याय २४४ अध्याय २४५ अध्याय २४६ अध्याय २४७ अध्याय २४८ अध्याय २४९ अध्याय २५० अध्याय २५१ अध्याय २५२ अध्याय २५३ अध्याय २५४ अध्याय २५५ अध्याय २५६ अध्याय २५७ अध्याय २५८ अध्याय २५९ अध्याय २६० अध्याय २६१ अध्याय २६२ अध्याय २६३ अध्याय २६४ अध्याय २६५ अध्याय २६६ अध्याय २६७ अध्याय २६८ अध्याय २६९ अध्याय २७० अध्याय २७१ अध्याय २७२ अध्याय २७३ अध्याय २७४ अध्याय २७५ अध्याय २७६ अध्याय २७७ अध्याय २७८ अध्याय २७९ विषयानुक्रमणिका नागरखण्डः - अध्याय ५९ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय ५९ Translation - भाषांतर ॥ सूत उवाच ॥तस्मिन्क्षेत्रे रविः पूर्वं विदुरेण प्रतिष्ठितम् ॥शिवश्च परया भक्त्या तथा विष्णुर्द्विजोत्तमाः ॥१॥यस्तान्पूजयते भक्त्या मानुषो भक्तितस्ततः ॥स यास्यति परं स्थानं यज्ञैरपि सुदुर्लभम् ॥२॥हस्तिनापुरसंस्थेन विदुरेण पुरा द्विजाः ॥गालवो मुनिशार्दूलः पृष्टः स्वगृहमागतः ॥३॥अपुत्रस्य गतिर्लोके कीदृक्संजायते परे ॥एतन्मे पृच्छतो ब्रूहि कृत्वा सद्भावमुत्तमम् ॥४॥ ॥ गालव उवाच ॥अपुत्रस्य गतिर्नास्ति मृतः स्वर्गं न गच्छति ॥द्वादशानामपि तथा यद्येकोऽपि न विद्यते ॥५॥औरसः क्षेत्रजश्चैव क्रयक्रीतश्च पालितः ॥पौनर्भवः पुनर्दत्तः कुंडो गोलस्तथा परः ॥कानीनश्च सहोढश्च अश्वत्थो ब्रह्मवृक्षकः ॥६॥एतेषामपि यद्येकः पुरुषाणां न जायते ॥तन्नूनं नरके वासः पुंसंज्ञे वै प्रजायते ॥७॥ ॥ सूत उवाच ॥तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य गालवस्य महात्मनः ॥अपुत्रत्वात्परं दुःखं जगाम विदुरस्तदा ॥८॥तप्तस्तं गालवः प्राह मा त्वं दुःखपदं व्रज ॥मद्वाक्यात्पुत्रकं वृक्षं विष्णुसंज्ञं द्रुतं कुरु ॥९॥तस्मात्प्राप्स्यसि निःशेषं फलं पुत्रसमुद्भवम् ॥गत्वा पुण्यतमे देशे रक्तशृंगस्य मूर्धनि ॥१०॥हाटकेश्वरजे क्षेत्रे सर्ववृद्धिशुभोदये ॥तस्य तद्वचनं श्रुत्वा विदुरस्तत्क्षणाद्ययौ ॥११॥तत्स्थानं गालवोद्दिष्टं हर्षेण महतान्वितः ॥तत्राश्वत्थतरुं स्थाप्य पुत्रत्वे चाभिषेच्य च ॥१२॥वैवाहिकेन विधिना कृतकृत्यो बभूव ह ॥ततो बभ्राम तत्क्षेत्रं तीर्थयात्रापरायणः ॥१३॥कीर्तितानि विचित्राणि राजर्षीणां महात्मनाम् ॥श्रुत्वा स्थानानि गत्वा च ददर्श स्थानदेवताः ॥१४॥स दृष्ट्वा कुरुवृद्धस्य कीर्तनानि महात्मनः ॥ततश्चक्रे मतिं तत्र दिव्यप्रासादकर्मणि ॥१५॥ततो माहेश्वरं लिंगं वटाधस्ताद्विधाय सः ॥विष्णुं च स्थापयामास अश्वत्थस्य तरोरधः ॥१६॥निवेश्य च तथा दिव्यं ब्राह्मणेभ्यो न्यवेदयत् ॥एतद्देवत्रयं क्षेत्रे युष्माकं हि मया कृतम् ॥भवद्भिः सकला चास्य चिन्ताकार्या सदैव हि ॥१७॥ ॥ ब्राह्मणा ऊचुः ॥वयमस्य करिष्यामो यात्राद्याः सकलाः क्रियाः ॥१८॥तथा वंशोद्भवा ये च पुत्राः पौत्रास्तथापरे ॥करिष्यंति क्रियाः सर्वास्त्वं गच्छ स्वगृहं प्रति ॥१९॥ततो जगाम विदुरः स्वपुरं प्रति हर्षितः ॥कृतकृत्यो द्विजास्ते च चक्रुर्वाक्यं तदुद्भवम् ॥२०॥माघमासस्य सप्तम्यां सूर्यवारेण यो नरः ॥पूजयेद्भास्करं तत्र स याति परमां गतिम् ॥२१॥शिवं वा सोमवारेण शुक्लाष्टम्यां विशेषतः ॥शयने बोधने विष्णुं सम्यक्छ्रद्धासमन्वितः ॥२२॥तस्मात्सर्वप्रयत्नेन देवानां तत्त्रयं शुभम् ॥पूजनीयं विशेषेण नरैः स्वर्गतिमीप्सुभिः ॥२३॥तत्र सिद्धिं गताः पूर्वं मुनयः संशितव्रताः ॥विदुरेश्वरमाराध्य शतशोऽथ सहस्रशः ॥२४॥ततस्तत्सिद्धिदं ज्ञात्वा लिंगं वै पाकशासनः ॥पांसुभिः पूरयामास यथा कश्चिन्न बुध्यते ॥२५॥कस्यचित्त्वथ कालस्य विदुरस्तत्र चागतः ॥दृष्ट्वा लोपगतं लिंगं दुःखेन महतान्वितः ॥२६॥एतस्मिन्नेव काले तु वागुवाचाशरीरिणी ॥मा त्वं कुरु विषादं हि लिंगार्थे विदुराधुना ॥२७॥योऽयं स दृश्यते वालो वटस्तस्य तले स्थिता ॥देवद्रोणिः सुरेशेन पांसुभिः परिपूरिता ॥२८॥ततो गजाह्वयात्तूर्णं समानीय धनं बहु ॥शोधयामास तत्स्थानं दिवारात्रमतन्द्रितः ॥२९॥ततो विलोक्य तान्देवान्हर्षेण महतान्वितः ॥प्रासादं निर्ममे तेषां योग्यं साध्वभिसंस्थितम् ॥।३०॥कैलासशिखराकारं भास्करार्थे महामुनिः ॥जटामध्यगतं दृष्ट्वा वटस्य च महेश्वरम् ॥३१॥प्रासादं नाकरोत्तत्र लिंगं यावन्न चालयेत् ॥वासुदेवस्य योग्यां च कृत्वा शालां बृहत्तराम् ॥३२॥दत्त्वा वृत्तिं च संहृष्टो ब्राह्मणेभ्यो निवेद्य च ॥जगाम स्वाश्रमं भूयो विप्रानामंत्र्य तांस्ततः ॥३३॥इति श्रीस्कान्दे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां षष्ठे नागरखण्डे हाटकेश्वरक्षेत्रमाहात्म्ये विदुरकृतदेवप्रासादवृत्तान्त वर्णनंनामैकोनषष्टितमोऽध्यायः ॥५९॥ छ ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 23, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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