संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|नागरखण्ड| अध्याय १३ नागरखण्ड अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० अध्याय १११ अध्याय ११२ अध्याय ११३ अध्याय ११४ अध्याय ११५ अध्याय ११६ अध्याय ११७ अध्याय ११८ अध्याय ११९ अध्याय १२० अध्याय १२१ अध्याय १२२ अध्याय १२३ अध्याय १२४ अध्याय १२५ अध्याय १२६ अध्याय १२७ अध्याय १२८ अध्याय १२९ अध्याय १३० अध्याय १३१ अध्याय १३२ अध्याय १३३ अध्याय १३४ अध्याय १३५ अध्याय १३६ अध्याय १३७ अध्याय १३८ अध्याय १३९ अध्याय १४० अध्याय १४१ अध्याय १४२ अध्याय १४३ अध्याय १४४ अध्याय १४५ अध्याय १४६ अध्याय १४७ अध्याय १४८ अध्याय १४९ अध्याय १५० अध्याय १५१ अध्याय १५२ अध्याय १५३ अध्याय १५४ अध्याय १५५ अध्याय १५६ अध्याय १५७ अध्याय १५८ अध्याय १५९ अध्याय १६० अध्याय १६१ अध्याय १६२ अध्याय १६३ अध्याय १६४ अध्याय १६५ अध्याय १६६ अध्याय १६७ अध्याय १६८ अध्याय १६९ अध्याय १७० अध्याय १७१ अध्याय १७२ अध्याय १७३ अध्याय १७४ अध्याय १७५ अध्याय १७६ अध्याय १७७ अध्याय १७८ अध्याय १७९ अध्याय १८० अध्याय १८१ अध्याय १८२ अध्याय १८३ अध्याय १८४ अध्याय १८५ अध्याय १८६ अध्याय १८७ अध्याय १८८ अध्याय १८९ अध्याय १९० अध्याय १९१ अध्याय १९२ अध्याय १९३ अध्याय १९४ अध्याय १९५ अध्याय १९६ अध्याय १९७ अध्याय १९८ अध्याय १९९ अध्याय २०० अध्याय २०१ अध्याय २०२ अध्याय २०३ अध्याय २०४ अध्याय २०५ अध्याय २०६ अध्याय २०७ अध्याय २०८ अध्याय २०९ अध्याय २१० अध्याय २११ अध्याय २१२ अध्याय २१३ अध्याय २१४ अध्याय २१५ अध्याय २१६ अध्याय २१७ अध्याय २१८ अध्याय २१९ अध्याय २२० अध्याय २२१ अध्याय २२२ अध्याय २२३ अध्याय २२४ अध्याय २२५ अध्याय २२६ अध्याय २२७ अध्याय २२८ अध्याय २२९ अध्याय २३० अध्याय २३१ अध्याय २३२ अध्याय २३३ अध्याय २३४ अध्याय २३५ अध्याय २३६ अध्याय २३७ अध्याय २३८ अध्याय २३९ अध्याय २४० अध्याय २४१ अध्याय २४२ अध्याय २४३ अध्याय २४४ अध्याय २४५ अध्याय २४६ अध्याय २४७ अध्याय २४८ अध्याय २४९ अध्याय २५० अध्याय २५१ अध्याय २५२ अध्याय २५३ अध्याय २५४ अध्याय २५५ अध्याय २५६ अध्याय २५७ अध्याय २५८ अध्याय २५९ अध्याय २६० अध्याय २६१ अध्याय २६२ अध्याय २६३ अध्याय २६४ अध्याय २६५ अध्याय २६६ अध्याय २६७ अध्याय २६८ अध्याय २६९ अध्याय २७० अध्याय २७१ अध्याय २७२ अध्याय २७३ अध्याय २७४ अध्याय २७५ अध्याय २७६ अध्याय २७७ अध्याय २७८ अध्याय २७९ विषयानुक्रमणिका नागरखण्डः - अध्याय १३ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय १३ Translation - भाषांतर ॥सूत उवाच ॥एवं निवेद्य पुत्राणां स राज्यं पृथिवीपतिः ॥पुरं च तद्द्विजातिभ्यः प्रदाय स्वयमेव हि ॥१॥तत आराधयामास देवदेवं महेश्वरम् ॥कृत्वा तदाऽऽश्रमं तत्र श्रद्धया परया युतः ॥२॥स बभूव फलाहारो यावद्वर्षशतं नृपः ॥शीर्णपर्णाशनः पश्चात्तावत्कालं समाहितः ॥३॥ततः परं जलाहारो जातो वर्षशतं हि सः ॥वायुभक्षस्ततोऽभूत्स यावद्वर्षशतं परम् ॥४॥ततस्तुष्टो महादेवस्तस्य वर्षशते गते ॥चतुर्थे वायुभक्षस्य दर्शने समुपस्थितः ॥५॥प्रोवाच परितुष्टोऽस्मि मत्तः प्रार्थय वांछितम् ॥अहं ते संप्रदास्यामि दुर्लभं त्रिदशैरपि ॥६॥ ॥राजोवाच ॥एतत्पुण्यतमं क्षेत्रं नानातीर्थसमाश्रयम् ॥हाटकेश्वरमाहात्म्यात्सर्वपापक्षयापहम् ॥७॥तस्मात्तव निवासेन भूयान्मेध्यतमं पुनः ॥एतन्मे वांछितं देव देहि तुष्टिं गतो यदि ॥८॥मयैतदग्र्यं निर्माय ब्राह्मणेभ्यो निवेदितम् ॥पुरं शर्वाऽमराधीश श्रद्धापूतेन चेतसा ॥९॥तस्मिंस्त्वया सदा वासः कर्तव्यो मम वाक्यतः ॥निश्चलत्वेन येन स्याद्गणैः सर्वैः समन्वितम् ॥१०॥ ॥भगवानुवाच ॥अचलोऽहं भविष्यामि स्थानेऽत्र तव भूमिप ॥अचलेश्वर इत्येव नाम्ना ख्यातो जगत्त्रये ॥११॥यो मामत्र स्थितं मर्त्यो वीक्षयिष्यति भक्तितः ॥भविष्यंत्यचलास्तस्य सर्वदैव विभूतयः ॥१२॥माघशुक्लचतुर्दश्यां मम लिंगस्य यो नरः ॥श्रद्धया परया युक्तः कर्ता यो घृतकंबलम् ॥१३॥बाल्ये वयसि यत्पापं वार्धके यौवनेऽपि वा ॥तद्यास्यति क्षयं तस्य तमः सूर्योदये यथा ॥१४॥तस्मात्स्थापय मे लिंगं त्वमत्रैव महीपते ॥अहं येन करोम्येव तत्र वासं सदाचलः ॥१५॥ ॥सूत उवाच ॥एवमुक्त्वा स देवेशस्ततश्चादर्शनं गतः ॥सोऽपि राजा चकाराशु प्रासादं सुमनोहरम् ॥१६॥तत्र संस्थापयामास लिंगं देवस्य शूलिनः ॥श्रद्धया परया युक्तः सर्वलक्षणलक्षितम् ॥१७॥यस्मिन्दृष्टेऽथवा स्पृष्टे ध्याते वा पूजितेऽपि वा ॥नरो विमुच्यते पापादाजन्ममरणांतिकात् ॥१८॥ततः संचिंतयामास भूपालः किं महेश्वरः ॥सांनिध्यं निश्चलो भूत्वा लिंगेऽत्रैव करिष्यति ॥१९॥एतस्मिन्नंतरे जाता वाणी गगनगोचरा ॥हर्षयन्ती महीपालं चमत्कारं सुनिस्वना ॥२०॥मा त्वं भूमिपशार्दूल कार्यचिन्तां करिष्यसि ॥अस्मिन्वासं सदात्रैव लिंगे कर्तास्मि नित्यशः ॥२१॥तथान्यदपि ते वच्मि प्रत्ययार्थं वचो नृप ॥तच्छ्रुत्वा निर्वृतिं गच्छ वीक्षस्वैव च यत्नतः ॥२२॥सदा मे निश्चला छाया लिंगस्यास्य भविष्यति ॥एकैव पृष्ठदेशस्था न दिक्संस्था भविष्यति ॥२३॥ ॥सूत उवाच ॥ततः स वीक्षयामास तां छायां लिंगसंभवाम् ॥तद्रूपां निश्चलां नित्यं तद्दिक्संस्थे दिवाकरे ॥२४॥ततो हर्षं परं गत्वा प्रणिपत्य च तं भुवि ॥कृतकृत्यमिवात्मानं स मेने पार्थिवोत्तमः ॥२५॥अद्यापि दृश्यते छाया तादृग्रूपा सदा हि सा ॥तस्य लिंगस्य विप्रेन्द्रा जाता विस्मयकारिणी ॥२६॥षण्मासाभ्यंतरे मृत्युर्यस्य स्याद्भुवि भो द्विजाः ॥न स पश्यति तां छायामेषोऽन्यः प्रत्ययः परः ॥२७॥ ॥सूत उवाच ॥एवं स भगवांस्तत्र सर्वदैव व्यवस्थितः ॥अचलेश्वररूपेण चमत्कारपुरांतिके ॥२८॥निश्चलत्वेन देवेशोह्यष्टषष्टिषु मध्यमः ॥क्षेत्राणां वसते तत्र तस्य वाक्यान्महेश्वरः ॥२९॥तेन तत्पावनं क्षेत्रं सर्वेषामिह कीर्तितम् ॥कामदं मुक्तिदं चैव जायते सर्वदेहिनाम् ॥३०॥तथान्यदपि यद्वृत्तं वृत्तांतं तत्प्रभावजम् ॥तदहं संप्रवक्ष्यामि श्रूयतां द्विजसत्तमाः ॥३१॥अचलेश्वरमाहात्म्यात्तस्मिन्क्षेत्रे नरा द्रुतम् ॥वांछितं मनसः सर्वे लभंते सकलं फलम् ॥३२॥स्वर्गमेके परे मोक्षं धनधान्यसुतांस्तथा ॥यो यं काममभिध्याय पूजयेदचलेश्वरम् ॥तंतं स लभते मर्त्यः स्वल्पायासेन च द्रुतम् ॥३३॥अथ दृष्ट्वा सहस्राक्षः सर्वे पापनरा भुवि ॥स्वर्गं यांति तथा मोक्षं प्राप्नुवन्ति च सम्मुखम् ॥३४॥ततः क्रोधं च कामं च लोभं द्वेषं भयं रतिम् ॥मोहं च व्यसनं दुर्गं मत्सरं रागमेव च ॥३५॥सर्वान्मूर्तान्समाहूय ततः प्रोवाच सादरम् ॥स्वयमेव सहस्राक्षो रहस्ये द्विजसत्तमाः ॥३६॥नरो वा यदि वा नारी चमत्कारपुरं प्रति ॥यो गच्छति धरापृष्ठे युष्माभिर्वार्य एव सः ॥३७॥तत्रैव वसमानोऽपि यो गच्छेदचलेश्वरम् ॥मद्वाक्यात्स विशेषेण सर्वैर्वार्यः प्रयत्नतः ॥३८॥ते तथेति प्रतिज्ञाय गत्वा शक्रस्य शासनात् ॥चक्रुस्ततः समुच्छिन्नं तन्माहात्म्यं गतं भुवि ॥३९॥एतद्वः सर्वमाख्यातमाख्यानं पापनाशनम् ॥अचलेश्वरदेवस्य तस्मिन्क्षेत्रे निवासिनः ॥४०॥इति श्रीस्कान्दे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां षष्ठे नागरखण्डे हाटकेश्वरक्षेत्रमाहात्म्येऽचलेश्वरमाहात्म्यवर्णनंनाम त्रयोदशोध्यायः ॥१३॥ N/A References : N/A Last Updated : December 21, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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