संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|नागरखण्ड| अध्याय २८ नागरखण्ड अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० अध्याय १११ अध्याय ११२ अध्याय ११३ अध्याय ११४ अध्याय ११५ अध्याय ११६ अध्याय ११७ अध्याय ११८ अध्याय ११९ अध्याय १२० अध्याय १२१ अध्याय १२२ अध्याय १२३ अध्याय १२४ अध्याय १२५ अध्याय १२६ अध्याय १२७ अध्याय १२८ अध्याय १२९ अध्याय १३० अध्याय १३१ अध्याय १३२ अध्याय १३३ अध्याय १३४ अध्याय १३५ अध्याय १३६ अध्याय १३७ अध्याय १३८ अध्याय १३९ अध्याय १४० अध्याय १४१ अध्याय १४२ अध्याय १४३ अध्याय १४४ अध्याय १४५ अध्याय १४६ अध्याय १४७ अध्याय १४८ अध्याय १४९ अध्याय १५० अध्याय १५१ अध्याय १५२ अध्याय १५३ अध्याय १५४ अध्याय १५५ अध्याय १५६ अध्याय १५७ अध्याय १५८ अध्याय १५९ अध्याय १६० अध्याय १६१ अध्याय १६२ अध्याय १६३ अध्याय १६४ अध्याय १६५ अध्याय १६६ अध्याय १६७ अध्याय १६८ अध्याय १६९ अध्याय १७० अध्याय १७१ अध्याय १७२ अध्याय १७३ अध्याय १७४ अध्याय १७५ अध्याय १७६ अध्याय १७७ अध्याय १७८ अध्याय १७९ अध्याय १८० अध्याय १८१ अध्याय १८२ अध्याय १८३ अध्याय १८४ अध्याय १८५ अध्याय १८६ अध्याय १८७ अध्याय १८८ अध्याय १८९ अध्याय १९० अध्याय १९१ अध्याय १९२ अध्याय १९३ अध्याय १९४ अध्याय १९५ अध्याय १९६ अध्याय १९७ अध्याय १९८ अध्याय १९९ अध्याय २०० अध्याय २०१ अध्याय २०२ अध्याय २०३ अध्याय २०४ अध्याय २०५ अध्याय २०६ अध्याय २०७ अध्याय २०८ अध्याय २०९ अध्याय २१० अध्याय २११ अध्याय २१२ अध्याय २१३ अध्याय २१४ अध्याय २१५ अध्याय २१६ अध्याय २१७ अध्याय २१८ अध्याय २१९ अध्याय २२० अध्याय २२१ अध्याय २२२ अध्याय २२३ अध्याय २२४ अध्याय २२५ अध्याय २२६ अध्याय २२७ अध्याय २२८ अध्याय २२९ अध्याय २३० अध्याय २३१ अध्याय २३२ अध्याय २३३ अध्याय २३४ अध्याय २३५ अध्याय २३६ अध्याय २३७ अध्याय २३८ अध्याय २३९ अध्याय २४० अध्याय २४१ अध्याय २४२ अध्याय २४३ अध्याय २४४ अध्याय २४५ अध्याय २४६ अध्याय २४७ अध्याय २४८ अध्याय २४९ अध्याय २५० अध्याय २५१ अध्याय २५२ अध्याय २५३ अध्याय २५४ अध्याय २५५ अध्याय २५६ अध्याय २५७ अध्याय २५८ अध्याय २५९ अध्याय २६० अध्याय २६१ अध्याय २६२ अध्याय २६३ अध्याय २६४ अध्याय २६५ अध्याय २६६ अध्याय २६७ अध्याय २६८ अध्याय २६९ अध्याय २७० अध्याय २७१ अध्याय २७२ अध्याय २७३ अध्याय २७४ अध्याय २७५ अध्याय २७६ अध्याय २७७ अध्याय २७८ अध्याय २७९ विषयानुक्रमणिका नागरखण्डः - अध्याय २८ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय २८ Translation - भाषांतर ॥सूत उवाच ॥तस्यां देवसभायां च संस्थिता ये द्विजोत्तमाः ॥प्रभासादीनि तीर्थानि मूर्तानि सकलानि च ॥१॥तानि श्रुत्वा वचस्तस्य देवाचार्यस्य तादृशम् ॥भयं कृत्वा महच्चित्ते प्रोचुश्च त्रिदिवेश्वरम् ॥२॥यद्येवं देवदेवेश भविष्य त्यशुभं युगम् ॥वयं नाशं समेष्यामो न स्थास्यामो जगत्त्रये ॥३॥पुरंदराद्य चास्माकं स्थानं किंचित्प्रदर्शय ॥तस्मात्कीर्तय नः स्थानं किंचित्क्वापि पुरंदर ॥४॥यदाश्रित्य नयिष्यामो रौद्रं कलियुगं विभो ॥अस्पृष्टानि नरैर्म्लेच्छैः प्रभावसहितानि च ॥पाताले स्वर्गलोके वा मर्त्ये वा सुरसत्तम ॥५॥तेषां तद्वचनं श्रुत्वा कृपाविष्टः शतक्रतुः ॥प्रोवाच ब्राह्मणश्रेष्ठं भूय एव बृहस्पतिम् ॥६॥अस्पृष्टं कलिना स्थानं किंचि द्वद बृहस्पते ॥समाश्रयाय तीर्थानां यदि वेत्सि जगत्त्रये ॥७॥शक्रस्य तद्वचः श्रुत्वा चिरं ध्यात्वा वृहस्पतिः ॥तत्र प्रोवाच तीर्थानि भया द्भीतानि हर्षयन् ॥८॥हाटकेश्वरमित्युक्तमस्ति क्षेत्रमनुत्तमम् ॥लिंगस्य पतनाज्जातं देवदेवस्य शूलिनः ॥९॥यत्र पूर्वं तपस्तप्तं विश्वामित्रेण धीमता ॥त्रिशंकोर्भूमिपालस्य कृते तीर्थे महात्मना ॥१०॥यत्र स्थित्वा सभूपालस्त्रिशंकुः पापवर्जितः ॥चण्डालत्वं परित्यज्य सदेह स्त्रिदिवं गतः ॥११॥यत्र शक्रसमादेशात्पूरितं पांसुभिः पुरा ॥संवर्तकेन रौद्रेण वायुना तीर्थमुत्तमम् ॥१२॥यत्र रक्षत्यधस्ताच्च स स्वयं हाटकेश्वरः ॥उपरिष्टात्प्रदेशं च कलौ देवोऽचलेश्वरः ॥१३॥हाटकेश्वरमाहात्म्यादस्पृष्टं कलिना हि तत् ॥पंचक्रोशप्रमाणेन अचलेश्वरजेन च ॥१४॥तस्मास्वांशेन गच्छंतु तत्र तीर्थान्यशेषतः ॥तेषां कलिभयं शक्र नैव तत्रास्त्यसंशयम् ॥१५॥तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य सर्वतीर्थानि तत्क्षणात् ॥हाटकेश्वरसंज्ञं तत्क्षेत्रं जग्मुर्द्विजोत्तमाः ॥१६॥यज्ञोपवीतमात्राणि कृत्वा स्थानानि चात्मनः ॥क्षेत्रमासादयामासुस्तत्सर्वहि द्विजोत्तमाः ॥१७॥एतस्मात्कारणाजात क्षेत्रं पुण्यतमं हि तत् ॥हाटकेश्वरदेवस्य महापातकनाशनम् ॥१८॥ ॥ऋषय ऊचुः ॥अत्याश्चर्यमिदं सूत यत्त्वयैतदुदाहृतम् ॥संगमं सर्वतीर्थानां क्षेत्रे तत्र प्रकीर्तितम् ॥१९॥तावन्मात्रप्रभावाणि तत्स्थानि प्रभवंति किम् ॥तानि तीर्थानि नो ब्रूहि विस्तरेण महामते ॥२०॥नामतः स्थानतश्चैव तथा चैव प्रभावतः ॥सर्वाण्यपिमहाभाग परं कौतूहलं हि नः ॥२१॥ ॥सूत उवाच ॥तिस्रः कोट्योऽर्धकोटिश्च तीर्थानां द्विजसत्तमाः ॥हाटकेश्वरजं क्षेत्रं व्याप्य सर्वं व्यवस्थिताः ॥२२॥न तेषां कीर्तनं शक्यं कर्तुं वर्षशतैरपि ॥तथा स्वायंभुवस्यादौ कल्पस्य प्रथमस्य च ॥२३॥कृतः समाश्रयस्तत्र क्षेत्रे तीर्थैः शुभावहे ॥बहुत्वादथ कालस्य बहूनि द्विजसत्तमाः ॥२४॥उच्छेदं संप्रयातानि तीर्थान्यायतनानि च ॥यान्यहं वेद कार्त्स्न्येन प्रभावसहितानि च ॥तानि वः कीर्तयिष्यामि शृणुध्वं सुसमाहिताः ॥२५॥येषां संश्रवणादेव नरः पापात्प्रमुच्यतेध्यानात्स्नानात्तथा दानात्स्पर्शनाद्विजसत्तमाः ॥२६॥इति श्रीस्कांदे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां षष्ठे नागरखण्डे हाटकेश्वरक्षेत्रमाहात्म्ये हाटकेश्वरक्षेत्रे सर्वतीर्थसमाश्रयवर्णनंनामाष्टाविंशोऽध्यायः ॥२८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 21, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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