संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|श्री स्कंद पुराण|अवन्तीखण्ड|रेवा खण्डम्| अध्याय ७ रेवा खण्डम् अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ अध्याय १०६ अध्याय १०७ अध्याय १०८ अध्याय १०९ अध्याय ११० अध्याय १११ अध्याय ११२ अध्याय ११३ अध्याय ११४ अध्याय ११५ अध्याय ११६ अध्याय ११७ अध्याय ११८ अध्याय ११९ अध्याय १२० अध्याय १२१ अध्याय १२२ अध्याय १२३ अध्याय १२४ अध्याय १२५ अध्याय १२६ अध्याय १२७ अध्याय १२८ अध्याय १२९ अध्याय १३० अध्याय १३१ अध्याय १३२ अध्याय १३३ अध्याय १३४ अध्याय १३५ अध्याय १३६ अध्याय १३७ अध्याय १३८ अध्याय १३९ अध्याय १४० अध्याय १४१ अध्याय १४२ अध्याय १४३ अध्याय १४४ अध्याय १४५ अध्याय १४६ अध्याय १४७ अध्याय १४८ अध्याय १४९ अध्याय १५० अध्याय १५१ अध्याय १५२ अध्याय १५३ अध्याय १५४ अध्याय १५५ अध्याय १५६ अध्याय १५७ अध्याय १५८ अध्याय १५९ अध्याय १६० अध्याय १६१ अध्याय १६२ अध्याय १६३ अध्याय १६४ अध्याय १६५ अध्याय १६६ अध्याय १६७ अध्याय १६८ अध्याय १६९ अध्याय १७० अध्याय १७१ अध्याय १७२ अध्याय १७३ अध्याय १७४ अध्याय १७५ अध्याय १७६ अध्याय १७७ अध्याय १७८ अध्याय १७९ अध्याय १८० अध्याय १८१ अध्याय १८२ अध्याय १८३ अध्याय १८४ अध्याय १८५ अध्याय १८६ अध्याय १८७ अध्याय १८८ अध्याय १८९ अध्याय १९० अध्याय १९१ अध्याय १९२ अध्याय १९३ अध्याय १९४ अध्याय १९५ अध्याय १९६ अध्याय १९७ अध्याय १९८ अध्याय १९९ अध्याय २०० अध्याय २०१ अध्याय २०२ अध्याय २०३ अध्याय २०४ अध्याय २०५ अध्याय २०६ अध्याय २०७ अध्याय २०८ अध्याय २०९ अध्याय २१० अध्याय २११ अध्याय २१२ अध्याय २१३ अध्याय २१४ अध्याय २१५ अध्याय २१६ अध्याय २१७ अध्याय २१८ अध्याय २१९ अध्याय २२० अध्याय २२१ अध्याय २२२ अध्याय २२३ अध्याय २२४ अध्याय २२५ अध्याय २२६ अध्याय २२७ अध्याय २२८ अध्याय २२९ अध्याय २३० अध्याय २३१ अध्याय २३२ विषयानुक्रमणिका विषयानुक्रमणिका रेवा खण्डम् - अध्याय ७ भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे. Tags : puransanskrutskand puranपुराणसंस्कृतस्कन्द पुराण अध्याय ७ Translation - भाषांतर श्रीमार्कण्डेय उवाच -पुनरेकार्णवे घोरे नष्टे स्थावरजंगमे ।सलिलेनाप्लुते लोके निरालोके तमोद्भवे ॥१॥ब्रह्मैको विचरंस्तत्र तमीभूते महार्णवे ।दिव्यवर्षसहस्रं तु खद्योत इव रूपवान् ॥२॥शेते योजनसाहस्रमप्रमेयमनुत्तमम् ।द्वादशादित्यसंकाशं सहस्रचरणेक्षणम् ॥३॥प्रसुप्तं चार्णवे घोरे ह्यपश्यत्कूर्मरूपिणम् ।तं दृष्ट्वा विस्मयापन्नो ब्रह्मा बोधयते शनैः ॥४॥स्तुतिभिर्मंगलैश्चैव वेदवेदांगसंभवैः ।वाचस्पते विबुध्यस्व महाभूत नमोऽस्तु ते ॥५॥तवोदरे जगत्सर्वं तिष्ठते परमेश्वर ।तद्विमुञ्च महासत्त्व यत्पूर्वं संहृतं त्वया ॥६॥व्यतीता रजनी ब्राह्मी दिनं समनुवर्तते ।निरीक्ष्य सर्वलोकेश येन संभवते जगत् ॥७॥स निशम्य वचस्तस्य उत्थितः परमेश्वरः ।समुद्गिरन् स लोकांस्त्रीन् ग्रस्तान् कल्पक्षये तदा ॥८॥देवदानवगन्धर्वाः सयक्षोरगराक्षसाः ।सचन्द्रार्कग्रहाः सर्वे शरीरात्तस्य निर्गताः ॥९॥ततो ह्येकार्णवं सर्वं विभज्य परमेश्वरः ।विस्तीर्णोपलतोयौघां सरित्सरविवर्धिताम् ॥१०॥पश्यते मेदिनीं देवः सवृक्षौषधिपल्वलाम् ।हिमवन्तं गिरिश्रेष्ठं श्वेतं पर्वतमुत्तमम् ॥११॥शृङ्गवन्तं महाशैलं ये चान्ये कुलपर्वताः ।जंबुद्वीपं कुशं क्रौञ्चं सगोमेदं सशाल्मलम् ॥१२॥पुष्करान्ताश्च ये द्वीपा ये च सप्तमहार्णवाः ।लोकालोकं महाशैलं सर्वं च पुरतः स्थितम् ॥१३॥चतुःप्रकृतिसंयुक्तं जगत्स्थावरजंगमम् ।युगान्ते तु विनिष्क्रान्तमपश्यत्स महेश्वरः ॥१४॥विप्रकीर्णशिलाजालामपश्यत्स वसुंधराम् ।कूर्मपृष्ठोपगां देवीं महार्णवगतां प्रभुः ॥१५॥तस्मिन् विशीर्णशैलाग्रे सरित्सरोविवर्जिते ।नानातरंगभिन्नोद आवर्तोद्वर्तसंकुले ॥१६॥नानौषधिप्रज्वलिते नानोत्पलशिलातले ।नानाविहंगसंघुष्टां मत्स्यकूर्मसमाकुलाम् ॥१७॥दिव्यमायामयीं देवीमुत्कृष्टाम्बुदसन्निभाम् ।नदीमपश्यद्देवेशो ह्यनौपम्यजलाशयाम् ॥१८॥मध्ये तस्याम्बुदश्यामां पीनोरुजघनस्तनीम् ।वस्त्रैरनुपमैर्दिव्यैर्नानाभरणभूषिताम् ॥१९॥सनूपुररवोद्दामां हारकेयूरमण्डिताम् ।तादृशीं नर्मदां देवीं स्वयं स्त्रीरूपधारिणीम् ॥२०॥योगमायामयैश्चित्रैर्भूषणैः स्वैर्विभूषिताम् ।अव्यक्ताङ्गीं महाभागामपश्यत्स तु नर्मदाम् ॥२१॥अर्धोद्यतभुजां बालां पद्मपत्रायतेक्षणाम् ।स्तुवन्तीं देवदेवेशमुत्थितां तु जलात्तदा ॥२२॥विस्मयाविष्टहृदयो ह्यहमुद्वीक्ष्य तां शुभाम् ।स्नात्वा जले शुभे तस्याः स्तोतुमभ्युद्यतस्ततः ॥२३॥अर्चयामास संहृष्टो मन्त्रैर्वेदांगसंभवैः ।सृष्टं च तत्पुरा राजन्पश्येयं सचराचरम् ॥२४॥सदेवासुरगन्धर्वं सपन्नगमहोरगम् ।पश्याम्येषा महाभागा नैव याता क्षयं पुरा ॥२५॥महादेवप्रसादाच्च तच्छरीरसमुद्भवा ।भूयो भूयो मया दृष्टा कथिता ते नृपोत्तम ॥२६॥प्रादुर्भावमिमं कौर्म्यं येऽधीयन्ते द्विजोत्तमाः ।येऽपि शृण्वन्ति विद्वांसो मुच्यन्ते तेऽपि किल्बिषैः ॥२७॥॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां पञ्चम आवन्त्यखण्डे रेवाखण्डे नर्मदामाहात्म्ये कूर्मकल्पसमुद्भवो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 06, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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