मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|भारुडे|
गारुडी - आदि पुरुष निर्गुण निराधार...

भारुड - गारुडी - आदि पुरुष निर्गुण निराधार...

भारुड Bharude is a kind of satirical form of presenting the faults of lay human beings. It was started by Eknath who is revered as a saint.

आदि पुरुष निर्गुण निराधारकी याद कर । मेरे परवरदिगारकी याद कर । जिने माया अज बनायी । उस वस्तादकी याद कर । गैबी खजिना हामना दिया । उस साहेब की याद कर । संत महंतकी याद कर । गुणी गुणवंतकी याद कर । श्रीभगवंतकी याद कर । जोग जुगत का बांधा तोडा । शमदमका सीरपर समला छोडा । समता सोही सुहावे तुरा । गुरु गारुडी बीर पुरा । नैन चीरके पैर्‍ही मुद्रा । कान फारके खाये निद्रा । अनुहत ध्वनी धुमक बाजे । नाग सुर धुनुक गर्जे । चले चल चल चल । निरंजन जंगलके जिवडे । खनना होय तो उलट दृष्टीसे खेल । आवी करूंगा तेरा तमाशा । पैल तेरी मुंडी काटुंगा । साप सब भुले बिचु किडे । प्रपंचके कोठरीमें आके दडे । बडे बडे जनावर पाल । हारे लाल सफेत । उजले काले पिले भले बे भला । हांडीबाग अभिमान जिवडे झुड मुठ चिपिच लढे । नहि कहूं तो ब्रह्मांड काटने दौर । देखो मिया हाय हाय हाय । डंख मारा बे डंख मारा । सो बडे बडेउ नहीं उतारा । जब गुरूग्यानका लगगया मोहरा । जहर उतारा । देखो मिया बाजेगिरी विद्या खेल । हांडीबाग बडा आलबेला । हात हालावे पांव हालावे । भाले भोले लोक भुलावे । आबे हांडीबाग । बाप बडा क्या बेटा बडा । बेटे आगे बाप खडा । गुरु बडा क्या चेला बडा । चेले आगे गुरु खडा । चेला तो प्रेम महेलपर चढा । धनी बडा क्या चाकर बडा । चाकर आगे धनी खडा । सास बडी क्या बहु बडी । बहु आगे सास खडी । बिबी बडी क्या बांदी बडी । बांदी आगे बिबी खडी । निराधारकी लेकर छडी । बीबी खसमके छातीपर चढी । तैं बडा क्या मैं बडा । मेरे आगे तैं खडा । तैं नहीं मैं नहीं । आलम छाया मेरे गुरु । ग्यानीकु ग्यान लगाऊं । लोभे आंधेकु उडावु । फुक मारु तो जा जा जा जा । बोधके पहाडपर जा । बच्या जाहां आना नहीं ताहां ज्या । मेरे सद्‌गुरु दाताकु शरन ज्या । मेरे सद्‍गुरु दाताकी इतनीसि लकरी । मूल मंतर हातमो पकरी । जिदर दौरा उदर दौरी । फेर देखे तो मेरी मेरे सात । देख अबी करूं गा खबूतरका तमाशा । बिन परसे उडता है कैसा । खेल खेलते अविद्येके खलितेमें घुसा । बाहेर कैसा आवेगा । आवबे आव बाहेर आव । जिसे नहीं रूप रेखा नांव । भाव ना आभाव कछू नहीं । धीरे धीरे तेराबी नंतर बोलूं । लिंगदेहकी गांठ खोलूं । एकबार ऐसा खेल खेलूं । की मेरे बडे बडे खेलथे । हा तो एक । एकके दो । दो के तीन । तीनके चार । चारके पांच । पांचके पचीस । पचीसके छत्तीस । छत्तीसया एक । एकबी नहीं । तो जनार्दन देख

॥ १ ॥

चल चल चल । निरंजन जंगलका आया खिलारी । लिया हातमो मुसासाब घुसारी । हा हा हा हा । चुप बैठ चुप बैठ । हा नहीं हूं नहीं । कछुं नाद बिंदु कला जोती । आदी मदी अंतीं कछुं नहीं । चुप बैठ चुप बैठ । आपने जागा चुप बैठ । कहना तो कहना मनही बैठे आराम । आलखमो लख लखमो आलख । तो होना एक लख लख । ऐ हुनर मेरे गुरुपरनें बताया । आहां ब्रह्म मैदान छोटेमें बडा मारी । और बाजेगार खडा । ढो ढो ढो ढो सोहो साहो । ढोल पीटते है । नाथ गारुडी बीर पुरा है । ओ खेलका वो खेल करत है । ओ प्रेम पोगडा हांडीबाग बडा हार्द है । आबे हांडीबाग तुं क्या बाता शीका है । बाबा मैने तो खेलका खेल गट करा है । आरे तेरे नानीका शीर काला । आरे हांडीबाग । तो आहाजी । तुं क्या क्या खेल सीका है । और कछु खेल खेले ग । तो आहाजी । गुरु पीर पैगंबरकी याद कर । तो आहाजी । नजर कर नजर कर । ज्याके व्हां सबके आखेर होत है । उसमें सबकी पैदास है । चल चल चल ये दे तेरेसे नाचत है । क्या क्या खेल तेरेसे करत है । ले इसेवे डरु । और ऐसा खेल खेलूंके । हमारे बडे बडे खेलते हैं । ये देखो हीरेकी खानी निकालत है । आवल्ल फतरा । फेर हिरा । फेर देखो तो फतरा का फतरा । तीन लोककुं बुजे नहीं । समज पडके गत्या होत नाहीं । सौंसारकें बाजारमें बडे बडे डुबते हैं । ये देखो रुपया बनते है । आधल एक । एकके दोन । दोनके तीन । तीनके चार । चारके पांच । पांचके पचीस बनाया । पांच पांच मिल गये । हाम आकेलका आकेला रह्या । चल चल चल । निरंजन जंगलसे बडा आया । ब्रह्म भवजोवडा निखारत है । फडाके मजथसे धुस धुस फुस फुस करत है । ले इसेबे डारू और ऐसा खेल खेलू । ओ खेलकू बडे बडे दाता देखते हैं । चल चल चल चीपडीके पोगंडे । बड्या बड्या बाता करत है । बडे बडे तो भागये । तेराही ब्रीद छीन लेउंगा । तेरे मूंपर मारुंगा । तेरी म्हतारी रोवेगी । येहु भेदर तो देख भला । आलललल । सब जगोमे उज्याला । मैं आप आपनेंसे भुला । ये कछु नहीं देख । ये हुन्नेर तो सबसे अच्छा है । चल चल चल । अव्वल एक । एकके दो । दोके तीन । तीनके चार । चार्के पांच । पांचके पच्चीस । पचीससे छत्तीस । छत्तीसके चालीस । चालीसके ऐशी । ऐ कछु नहीं देख । एका जनार्दनके पांव पकडकर बैठा है । सदोदित नाम गावत है ॥ २ ॥

N/A

N/A
Last Updated : November 10, 2013

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP