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चल चल चल । निरंजन जंगलका ...

भारूड - चल चल चल । निरंजन जंगलका ...

Bharude is a kind of satirical form of presenting the faults of lay human beings. It was started by Eknath who is revered as a saint.


चल चल चल । निरंजन जंगलका आया खिलारी । लिया हातमो खेल पेटारी ।
कालीकल वाहामो डारी । सबका मुसासाब घुसारी ।
हा हा हा हा । चुप बैठ चुप बैठ ।
हा नहीं हूं नहीं । कछुं नाद बिंदु कला जोती ।
आदी मदी अंतीं कछुं नहीं । चुप बैठ चुप बैठ ।
आपने जागा चुप बैठ । कहना तो कहना मनही बैठे आराम ।
आलखमो लख लखमो आलख । तो होना एक लख लख ।
ऐ हुन्नर मेरे गुरुपरनें बताया । आहां ब्रह्म मैदान छोटेमें बडा मारी ।
और बाजेगार खडा । ढो ढो ढो ढो सोहो साहो ।
ढोल पीटते है । नाथ गारुडी बीर पुरा है ।
ओ खेलका वो खेल करत है । ओ प्रेम पोगडा हांडीबाग बडा हार्द है ।
आबे हांडीबाग तूं क्या बाता शीका है । बाबा मैने तो खेलका खेल गट करा है ।
आरे तेरे नानीका शीर काला । आरे हांडीबाग ।
तो आहाजी । तूं क्या क्या खेल सीका है ।
और कछु खेल खेले गा । तो आहाजी ।
गुरु पीर पैगंबरकी याद कर । तो आहाजी ।
नजर कर नजर कर । ज्याके व्हां सबके आखेर होत है ।
उसमें सबकी पैदास है । चल चल चल ये देख तेरेसे नाचत है ।
क्या क्या खेल तेरेसे करत है । ले इसेवे डरु ।
और ऐसा खेल खेलूंके । हमारे बडे बडे खेलते हैं ।
ये देखो हीरेकी खानी निकालत है । आवल्ल फतरा ।
फेर हिरा । फेर देखो तो फतरा का फतरा ।
तीन लोककुं बुजे नहीं । समज पडके गत्या होत नाहीं ।
सौंसारकें बाजारमें बडे बडे डुबते हैं । ये देखो रुपया बनते है ।
आधल एक । एकके दोन ।
दोनके तीन । तीनके चार ।
चारके पांच । पांचके पचीस बनाया ।
पांच पांच मिल गये । हाम आकेलका आकेला रह्या ।
चल चल चल । निरंजन जंगलसे बडा आया ।
ब्रह्म भवजोवडा निखारत है । फडाके मजथसे धुस धुस फुस फुस करत है ।
ले इसेबे डारु और ऐसा खेल खेलू । ओ खेलकू बडे बडे दाता देखते हैं ।
चल चल चल चीपडीके पोगंडे । बड्या बड्या बाता करत है ।
बडे बडे तो भागये । तेराही ब्रीद छीन लेउंगा ।
तेरे मूंपर मारुंगा । तेरी म्हतारी रोवेगी ।
येहु भेदर तो देख भला । आलललल । सब जगोमे उज्याला ।
मैं आप आपनेंसे भुला । ये कछु नहीं देख ।
ये हुन्नेर तो सबसे अच्छा है । चल चल चल ।
अव्वल एक । एकके दो । दोके तीन ।
तीनके चार । चारके पांच । पांचके पच्चीस ।
पचीससे छत्तीस । छत्तीसके चालीस ।
चालीसके ऐशी । ऐ कछु नहीं देख ।
एका जनार्दनके पांव पकडकर बैठा है । सदोदित नाम गावत है ॥१॥

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Last Updated : November 10, 2013

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