अयि देव ! शैशवावस्थामें एक बार स्वयं आप माताकी गोदमें उत्तान लेटे हुए दूध पी रहे थे । उसी समय जँभाई आनेके कारण आपने अपना मुख खोल दिया । उस मुखमें गोपी यशोदाको सारा विश्र्व दिखायी पड़ा ॥१॥
जगदीश्र्वर ! पुनः कुछ वयस्क होनेपर जब आप बालकोंके साक्ष खेलमें तल्लीन थे , तब फल -संग्रहसे वञ्चित किये जानेके कारण क्रुद्ध हुऐ ग्वालबालोंने माता यशोदासे कहा कि ‘कृष्णने मिट्टी खायी है ’ ॥२॥
अयि विभो ! प्रत्येक प्रलयके अवसरपर जो पृथ्वी , जल आदि समस्त प्रपञ्चको भक्षण कर लेनेवाले हैं , ऐसे आपको थोड़ी -सी मिट्टी खा लेनेसे रोग हो जायगा - इस भयसे भीत हुई माता यशोदा आपपर कुपित हो उठीं और पूछने लगीं ॥३॥
‘ क्यों रे नटखट बच्चे ! तुने मिट्टी क्यों खायी है ?’ यों बड़ी देरतक माता डॉंटती रहीं । विभो ! तब आपने हँसते हुए माताके कथनको असत्य बताया कि ‘ मॉं ! मैंने मिट्टी नहीं खायी है ’ ॥४॥
तब माताने कहा — ‘अरे ! तेरे ये सखा और बलदाऊ —— सभी तो तेरे मिट्टी खानेकी बात निश्र्चित बता रहे हैं । यदि इनकी बातसे तू सहमत नहीं है तो अपना मुख खोल । ’ यों माताके भर्त्सना करनेपर आपने अपने खिले हुए कमल -सदृश मुखको खोल दिया ॥५॥
माता उस मुखमें मृत्कणको ही देखनेके लिये उत्सुक थीं , किंतु आपने उन्हें अतिशय परितृप्त करते हुए -से केवल सम्पूर्ण पृथ्वी ही नहीं , समस्त भुवनोंको भी दिखलाया ॥६॥
उस समय माताने आपके मुखके भीतर कहीं वन , कहीं सागर , कहीं आकाश , कहीं रसातल , कहीं मानव , दानव और देवता —— इस प्रकार क्या -क्या नहीं देखा ? अर्थात् सारा ब्रह्माण्ड देख लिया ॥७॥
उसने उस मुखमें आपको कलशाम्बुधि -क्षीरसागरमें शेष -शय्यापर शयन करते , पुनः परमपद वैकुण्ठमें निवास करते हुए और फिर अपने आगे अपने पुत्ररूपमें ——यों किस -किस रूपमें नहीं देखा ? अर्थात् आपके विभिन्न रूप देखे ॥८॥
जिसमें सारा ब्रह्माण्ड दीख रहा था उस मुखके भीतर यशोदाने स्पष्टरूपसे पुनः उसी प्रकारके मुखवाले अपने पुत्रको देखा -अर्थात् यशोदाने सामने खड़े हुए अपने पुत्रके मुखमें जगत् और अपने पुत्रको देखा। पुनः उस दीखते हुए पुत्रके मुखमें जगत् और अपने पुत्रको देखा । आगे भी वैसा ही दीखता गया । इस प्रकार आपने जगत्की अनवस्था — अनन्तताका विस्तार किया ॥९॥
उस समय क्षणभरके लिये जिसे ‘सच्चिदानन्द ब्रह्म ही योगैश्र्वर्यसे मेरा पुत्र हुआ है ’ । इस प्रकारका तत्त्वज्ञान हो आया था , उस माता यशोदाको आपने पुनः वात्सल्यस्रेहसे मोहित करते हुए कहा — ‘मॉं ! दूध पिला दे । ’ यों कहते हुए गोदमें चढ़नेके लिये आतुर हो उठे । ऐसे अद्भुत बालरूपधारी भगवन् ! मेरी रक्षा कीजिये ॥१०॥