दीर्घतमस् (मामतेय), दीर्घतमस् (औचथ्य) n. अंगिरसकुल का एक सूक्तद्रष्टा ऋषि
[ऋ. १. १४०-१६४] । यह ममता एवं उचथ्य ऋषि का पुत्र था । इसलिये इसे ‘मामतेय’ एवं‘औचथ्य’ ये उपनाम प्राप्त हुएँ
[ऋ.१.१५२.६,४.४.१३] । ‘दीर्घतपस्’ इसीका ही पाठभेद है
[वायु.५९,९८,१०२] । बृहस्पति के शाप के कारण, यह जन्म के समय अंधा था
[बृहद्दे.४.११.१५.२१-२५] ;
[ऋ.१.१४०-१६४] । इसलिये इसे ‘दीर्घतमस्’ (=दीर्घ अंधकार) नाम प्राप्त हुआ । यह सौ वर्षो तक जीवित रहा
[ऋ.१.१५८.६] ;
[सां.आ.२.१७] । सौ साल कीं बूढी उमर में इसने ‘केशव‘ परमेश्वर की उपासना की । उससे इसे दृष्टी प्राप्त हुई, एवं लोग इसे ‘गोतम’ (=उत्तम नेत्रवाला) कहने लगे
[म.शां.३२८] । ‘सुरभि, ने सूंघने पर इसे दृष्टी प्राप्त हुई, ऐसी भी कथा उपलब्ध है
[वायु.९१] । ‘भरत’ राजाओं का यह पुरोहित था । भरत दौष्यंति को इसने ‘ऐन्द्र अभिषेक’ किया था
[ऐ. ब्रा.८.२३] । यह अभिषेक यमुना के किनारे प्रपन्न हुआ
[भा.९.२०.२५] ; भरत देखिये । एक मंत्र गायक के रुप में, इसका उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त है
[ऋ.१.१५८.१] । एक बूढे व्यक्ति के रुप में, इसकी कई कथाएँ ऋग्वेद में उपलब्ध है । इस वृद्ध को सम्हालते सम्हालते इसके नौकर त्रस्त हो गये । यह मर जाये, इस हेतु से उन्होंने इसे अग्नि में डाल दिया, पानी में गला दिया । अन्त में, त्रैतन नामक दास ने इसका सिर काट लिया, एवं इसकी छाती फोड दी । फिर भी, प्रत्येक समय अश्वियों ने इसकी रक्षा की
[ऋ.१.१५८.४-६] ;
[बृहद्दे.४.११.१४] । बाद में इसे नदी में फेका दिया गया । नदी में बहता हुआ, यह अंग देश के किनारे जा लगा । वहॉं इसने उशिज् नामक दासकन्या से विवाह किया । उशिज् से इसे कक्षीवत् आदि पुत्र हुएँ
[बृहद्दे. ४. २३] । पुराणों में यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है । दीर्घतमस को गर्भावस्था में ही सरे वेद वेदांग तथा शास्त्र पूर्णतया अवगत थे
[वायु.९९. ३६-७८,३७] ;
[मस्त्य.४०] ;
[म.शां ३२८-४७-४८] । विद्या के बल पर इसने प्रद्वेषी नामक रुपसंपन्न स्त्री से विवाह किया । उससे इसे गौतमादि अनेक पुत्र हुएँ । अपने कुल की अधिक वृद्धि हो, इस हेतु से इसने कामधेनु के पुत्रों से ‘गो-रति’ विद्या सीखी । उस विद्या के कारण दिन के उजालेमें, सब लोगों के समक्ष, यह स्त्रीसमागम करने लगा । आश्रम के अन्य ऋषियों को यह पसंद नही आया । वे इसे आश्रम से भगा देने को उद्युक्त हो गये । इसकी पत्नी प्रद्वेषी को पुत्रप्राप्ति हो गयी थी, एवं अंधापति उसे अच्छा भी न लगता था । वह इसे भगाने के लिये अन्य आश्रमवासियों को सहाय करने लगी । वह कहने लगी, ‘दीर्घतमस् से तलाक ले कर मैं दूसरा पति कर लुंगी’। घर छोडने के लिये उद्युक्त हुए अपने पत्नी को काबू में रखने के लिये, इसने धर्मशास्त्रकार आते से पत्नीधर्म के नये नियम प्रस्थापित किये । वे नियम इस प्रकर थेः
दीर्घतमस् (मामतेय), दीर्घतमस् (औचथ्य) II. n. (सो. काश्य.) यह भागवत, विष्णु तथा वायु के मत में काशिराज राष्ट्र का पुत्र । इसे धन्वन्तरि नामक पुत्र था । वायु में दीर्घतपस् पाठभेद है ।