बल n. एक असुर, जो कश्यप एवं दनायु के पुत्रों में से एक था
[म.आ.६५] ;
[स्कंद १.४.१४] । इसे निम्नलिखित तीन भाई थेः
बल II. n. वरुण एवं उसकी ज्येष्ठ पत्नी देवी का एक पुत्र
[म.आ.६०.५१] ।
बल III. n. (सृ.इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो परिक्षित् एव्ण मंडुकराज की कन्या सुशोभना का पुत्र था । इसके शल एवं दल नामक दो भाई थे
[म.व.१९] । भागवत में दल एवं बल ये दोनो एक ही व्यक्ति माने गये है (दल १. देखिये) ।
बल IV. n. रामसेना का एक वानर, जो कुंभकर्ण के साथ युद्ध में उसका ग्रास बन गया था
[म.व.२७१.४] ।
बल IX. n. विष्णु का एक पार्षद । वामनावतार के समय, वामरुपधारी श्रीविष्णु ने बलि की पाताल में ढकेल दिया । तत्पश्चात् बलि के यज्ञमंडप में उसके अनुगामियों ने काफी हलचल मचा दी । उससमय उन राक्षसों का जिन विष्णुपार्षदों ने निवारण किया, उनमें यह एक था
[भा.८.१२.१६] ।
बल V. n. वायुद्वारा स्कंद को दिये गये दो पार्षदों में से एक । दुसरे पार्षद का नाम अतिबल था
[म.श.४४.४०] ।
बल VI. n. एक प्राचीन ऋषि, जो अंगिरा का पुत्र था एवं पूर्व दिशा में निवास करता था
[म.शां.२०१.२५] । इसके नाम के लिये ‘नल’ पाठभेद प्राप्त है ।
बल VII. n. एक सनातन विश्वदेव
[म.अनु.९१.३०] ।
बल VIII. n. एक दैत्य, जो कश्यप एवं दिति के पुत्रों में से एक था । दिति द्वारा सौ वर्षोतक तप करने पर यह उत्पन्न हुआ था । बडा होने पर कश्यप ने इसका व्रतबंध किया, एवं इसे ब्रह्मचर्य का उपदेश दिया । पश्चात् इसने सौ वर्षो तक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन कर घोर तपस्या की । इसका तप समाप्त होने पर, दिति ने इसे स्वर्ग पर आक्रमण करने के लिये कहा । किन्तु कश्यप की दूसरी पत्नी अदिति को यह वृत्तांत ज्ञात होते ही उसने इंद्र को चेतावनी दी । अनंतर समुद्रकिनारे जाप करते हुए इसे देख कर, इंद्र ने वज्रप्रहार कर इसका वध किया
[पद्म. भू.२३] ।
बल X. n. ०. कुशिकल का एक मंत्रकार, जिसे उद्नल नामांतर भी प्राप्त था ।
बल XI. n. १. वायु के अनुसार भृगुकन्या श्री का पुत्र ।
बल XII. n. २. गरुड एवं कश्यपकन्या शुकी के छः पुत्रों में से एक
[ब्रह्मांड.३.७.४५०] ।
बल XIII. n. ३. अनायुषा नामक राक्षसी के पॉंच पुत्रों में से एक
[ब्रह्मांड ३.६.३१-३७] ।
बल XIV. n. ४. श्रीकृष्ण एवं लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ।
बल XV. n. ५. बलराम का नामांतर ।
बल XVI. n. ६. एक मायावी दैत्य, जो मयासुर का पुत्र था । यह अतल नामक पाताल में रहता था । इसने छियान्नवे प्रकार की ‘माया’ का निर्माण कर, उसे मायावी दैत्यों को दिया था, जिसका प्रयोग कर लोगों को त्रस्त किया करते थे । एक बार इसने जमुहाई ली, जिससे स्वैरिणी, कामिनी तथा पुंश्चली नामक तीन प्रकर की दुश्वरित्र स्त्रियों के गण उत्पन्न हुए । उन स्त्रियों पास हाटक नामक एक ऐसा पेयपदार्थ था, जिसे पुरुषों को पिला कर एवं उन्हें कामवासना की भावना में उन्मत्त बना कर, वे संभोग करवाती थी
[भा.५.२४.१६] । इंद्र एवं जालंधर दैत्य के बीच हुए युद्ध में, इसने जालंधर की ओर से लडकर, युद्ध में इन्द्र के छक्के छुडा दिये, तथा अन्त में इन्द्र परास्त होकर इसकी शरण में आया । इन्द्र ने बल की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर इसने उससे वर मॉंगने को कहा । इन्द्र ने कहा ‘तुम मुझे अपने शरीर का दान दो, उसे ही मैं चाहता हूँ । बल ने कहा, ‘तुम मेरे शरीर को ही चाहते हो, तो उसके टुकडे कर उसे प्राप्त करो’। फिर इन्द्र ने इसके शरीर के अनेक टुकडें कर उन्हें इधरउधर फेंक दिये । ये टुकडें जहॉं जहॉं गिरे, वही रत्नों की खाने खडी हो गयी । इसकी मृत्यु के बद, इसकी पत्नी प्रभावती शोक में विलाप करती हुयी असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास गयी, तथा उनसे सारी कथा बता कर, अपने पति के जिलाने की प्रार्थना की । शुक्राचार्य ने काह, ‘बल को जिलाना असम्भव है । मैं माया के प्रभाव से उसकी वाणी को तुम्हे अवश्य सुनवा सकता हूँ । गुरुकृपा से प्रभावती ने बल की वाणी सुनी---‘तु मेरे शरीर में अपने शरीर को त्याग कर मुझे प्राप्त करों’। ऐसा सुन कर बल की देह में अपने शरीर को त्याग कर, प्रभावती उसीमें मिल कर नदी बन गयी
[पद्म.उ.६] ।