हरीपदीं रत होई ॥मना तूं ॥ हरीपदीं रत होई ॥धृ,॥
सोडुनी हरीपद । भटकत फिरशील । तरी तुज सुख नाही ॥
मना तूं ॥ हरीपदीं रत होई ॥१॥
सेवन करितां हरीपदकमलां । भवभय मग नाही ॥
मना तूं ॥हरीपदीं रत होई ॥२॥
वारी म्हणे दृढ हृदयीं धरितां । विकसीत ज्ञान होई ॥
मना तूं ॥हरीपदीं रत होई ॥३॥