शय्या ग्रस्त रहा में दो दिन, फूलदान में हँसमुख
चंद्र मल्लिका के फूलों को रहा देखता सन्मुख ।
गुलादावदी कहूँ - कोमलता की सीमा ये कोमल !
शैशव स्मिति इनमें जीवन की भरी स्वच्छ, सद्योज्वल !
पुंज पुंज उल्लास, लीन लावण्य राशि में अपने,
मृदु पंखड़ियो के पलकों पर देख रहा हो अपने !
उज्वल सूरज का प्रकाश, ज्योत्सना भी उज्वल शीतल,
उज्वल सौरभ-अनिल, और उज्वल निर्मल सरसी जल;
इन फूलों की उज्वलता छू लेती अंतर के स्तर,
मधुर अवयवों में बँध वह ज्यों ही आगई निकटतर !
मृदुल दलों के अंगजाल से फूट त्वचा-कोमल सुख
सह्रदय मानवीय स्पर्शों से हर लेता मन का दुख !
तृण तृण में औ' निखिल प्रकृति में जीवन की है क्षमता,
पर मानव का ह्रदय लुभाती मानव करुना ममता !