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स्वप्न और सत्य

सुमित्रानंदन पंत - स्वप्न और सत्य

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


आज भी सुंदरता के स्वप्न

ह्रदय में भरते मधु गुंजार,

वर्ग कवियों ने जिनको गूँथ

रचा भू स्वर्ग, स्वर्ण संसार !

आज भी आदर्शो के सौध

मुग्ध करते जन मन अनजान,

देश देशों के कालि दास

गा चुके जिनके गौरव गान !

मुहम्मद, ईसा, मूसा, बुद्ध

केन्द्र संस्कृतियों के, श्री राम,

ह्रदय में श्रद्धा, संभ्रम, भक्ति

जगाते, विकसित व्यक्ति ललाम !

धर्म, बहु दर्शन, नीति, चरित्र

सूक्ष्म चिर का गाते इतिहास,

व्यवस्थाएँ, संस्थाएँ, तंत्र

बाँधते मन बन स्वर्णिम पाश !

आज पर, जग जीवन का चक्र

दिशा गति बदल चुका अनिवार,

सिन्धु में जन युग के उद्दाम

उठ रहा नव्य शक्ति का ज्वार !

आज मानव जीवन का सत्य

धर रहा नए रूप आकार,

आज युग का गुण है- जन रूप,

रुप-जन संस्कृति के आधार !

स्थूल, जन आदर्शों की सृष्टि

कर रई नव संस्कृति निर्माण,

स्थूल-युग का शिव, सुंदर, सत्य,

स्थूल ही सूक्ष्म आज, जन-प्राण !

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

दिसंबर' ३९

Last Updated : October 11, 2012

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