हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|गीत और कविता|सुमित्रानंदन पंत|ग्राम्या|
१९४०

सुमित्रानंदन पंत - १९४०

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


समर भूमि पर मानव शोणित से रंजित निर्भीक चरण धर,

अभिनंदित हो दिग्‌ घोषित तोपों के गर्जन से प्रलयंकर,

शुभागमन नव वर्ष कर रहा, हालाडोला पर चढ़ दुर्धर,

वृहद्‌ विमानों के पंखो से बरसा कर विष वह्नि निरंतर !

इधर अड़ा साम्राज्यवाद, शत शत विनाश के ले आयोजन,

उधर प्रतिक्रिया रुद्ध शक्तियां क्रुद्ध दे रही युद्ध निमंत्रण !

सत्य न्याय के बाने पहने, सत्व लुब्ध लड़ रहे राष्ट्रगण,

सिन्धु तरंगो पर क्रय विक्रय स्पर्धा उठ गिर करती नर्तन !

धू-धू करती बाष्प शक्ति, विद्‌युत्‍ ध्वनि करती दीर्ण दिगंतर,

ध्वंस भ्रंश करते विस्फोटक धनिक सभ्यता के गढ जर्जर !

तुमुल वर्ग संघर्ष में निहित जनगण का भविष्य लोकोत्तर,

इंद्रचाप पुल सा नव वत्सर शोभित प्रलय प्रभ मेघों पर !

आओ हे दुर्धर्ष वर्ष ! लाओ विनाश के साथ नव सृजन,

विंश शताब्दी का महान विज्ञान ज्ञान ले, उत्तर यौवन ।

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

जनवरी' ४०


References : N/A
Last Updated : October 11, 2012

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP