चरमोन्नत जग में जब कि आज विज्ञान ज्ञान,
बहु भौतिक साधन, यंत्र यान, वैभव महान,
सेवक है विद्युत वाष्प शक्ति धन बल नितांत
फिर क्यो जग में उत्पीड़न ? जीवन यों अशांत?
मानव ने पाई देश काल पर जय निश्चय,
मानव के पास नही मानव का आज ह्रदय !
चर्वित उसका विज्ञान ज्ञान वह नही पचित
भौतिक मद से मानव आत्मा हो गई विजित !
हे श्लाघ्य मनुज का भौतिक संचय का प्रयास,
मानवी भावना का क्या पर उसमें विकास?
चाहिए विश्व को आज भाव का नवोन्मेष,
मानव उर में फिर मानवता का हो प्रवेश !
बापू ! तुम पर है आज लगे जग के लोचन,
तुम खोल नही जाओगे मानव के बंधन ?