(अपनी कॉटेज के प्रति)
मेरे निकुंज, नक्षत्र वास !
इस छाया मर्मर के वन में
तू स्वप्न नीड़ सा निर्जन में
है बना प्राण पिक का विलास !
लहरी पर दीपित ग्रह समान
इस भू उभार पर भासमान,
तू बना मूक चेतनावान
पा मेरे सुख दुख, भावच्छवास !
आती जग की छबि स्वर्ण प्रात,
स्वप्नों की नभ सी रजत रात,
भरती दश दिशि की चारवात
तुझमें वन वन की सुरभि साँस !
कितनी आशाएँ मनोल्हास,
संकल्प महत् उच्चाभिलाष,
तुझमें प्रतिक्षण करते निवास,
है मौन श्रेय साघन प्रयास !
तु मुझे छिपाए रह अजान
निज स्वर्ण मर्म मे खग समान,
होगा अग जग का कंठ गान
तेरे इन प्राणों का प्रकाश !
मेरे निकुंज, नक्षत्र वास !