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धोबियों का नृत्य

सुमित्रानंदन पंत - धोबियों का नृत्य

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


लो, छन छन, छन छन,

छन छन, छन छन,

नाच गुजरिया हरती मन !

उसके पैरों में घुंघरू कल

नट की कटि में घंटियाँ तरल,

वह फिरकी सी फिरती चंचल,

नट की कटि खाती सौ सौ बल,

लो, छन छन, छन छन,

छन छन, छन छन,

ठुमुक गुजरिया हरती मन !

उड़ रहा ढोल धाधिन, धातिन,

औ हुड़क धुड़कता ढिम ढिम ढिम,

मंजीर खनकते खिन खिन खिन,

मद मस्त रजक, होली का दिन,

लो, छन छन, छन छन,

छन छन, छन छन,

थिरक गुजरिया हरती मन !

वह काम शिखा सी रही सिहर,

नट की कटि में लालसा भँवर,

कँप कँप नितंब उसके थर्‌ थर्‌

भर रहे घंटियों में रति स्वर,

लो, छन छन, छन छन,

छन छन, छन छन,

मत्त गुजरिया हरती मन !

फहराता लँहगा लहर लहर,

उड़ रही ओढ़नी फर फर फर,

चोली के कंदुक रहे उघर,

(स्त्री नही गुजरिया, वह है नर!)

लो, छन छन, छन छन,

छन छन, छन छन,

हुलस गुजरिया हरती मन !

उर की अतृप्त वासना उभर

इस ढोल मँजीरे के स्वर पर

नाचती, गान के फैला पर,

प्रिय जन गण को उत्सव अवसर,

लो, छन छन, छन छन,

छन छन, छन छन,

चतुर गुजरिया हरती मन !

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

जनवरी' ४०

Last Updated : October 11, 2012

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