मिट्टी से भी मटमैले तन,
अधफटे, कुचेले जीर्ण वसन,
ज्यों मिट्टी के हो बने हुए
ये गँवई लड़के - भू के धन !
कोई खंडित, कोई कुंठित,
कृश बाहु, पसलियाँ रेखांकित,
टहनी सी टाँगें, बड़ा पेट,
टेढ़े मेढ़े, विकलांग घृणित !
विज्ञान चिकित्सा से वंचित,
ये नही धात्रियों से रक्षित,
ज्यों स्वास्थ्य सेज हो, ये सुख से
लोटते धूल में चिर परिचित !
पशुओं सी भीत मूक चितवन,
प्राकृतिक स्फूर्ति से प्रेरित मन,
तृण तरुओं-से उग-बढ़, झर-गिर,
ये ढोते जीवन क्रम के क्षण !
कुल मान न करना इन्हे वहन,
चेतना ज्ञान से नही गहन,
जग जीवन धारा में बहते
ये मूक, पंगु बालू के कण !
कर्दम में पोषित जन्मजात,
जीवन ऐश्वर्य न इन्हे ज्ञात,
ये सुखी या दुखी ? पशुओं-से
जो सोते जगते साँझ प्रात !
इन कीड़ो का भी मनुज बीज,
यह सोच ह्रदय उठता पसीज,
मानव प्रति मानव की विरक्ति
उपजाती मन में क्षोभ खीज !