फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणे
चाँदी की सी उजली जाली ।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक ।
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ है शोभाशाली ।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध,
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली ।
रँग रँग के फूलों में रिलमिल
हँस रही संखिया मटर खड़ी ।
मखमली पेटियों सी लटकीं
छिमियाँ, छिपाए बीज लड़ी ।
फिरती है रँग रँग की तितली
रँग रँग के फूलों पर सुन्दर,
फूले फिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृतों से वृंतो पर ।
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली ।
झर रहे ढाँक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली ।
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली ।
फूले झाड़, नीबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बँगन, मूली ।
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी ।
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ' सेम फली, फैली,
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली ।
गंजी को मार गया पाला,
अरहर के फूलों को झूलसा,
हाँका करती दिन भर बंदर
अब मालिन की लड़की तुलसा ।
बालाएँ गजरा काट काट,
कुछ कह गुपचुप हँसती किन किन,
चाँदी की सी घंटियाँ तरल
बजती रहति रह रह खिन खिन ।
छायातप के हिलकोरों में
चौड़ी हरीतिमा लहराती,
ईखों के खेतों पर सुफेद
काँसों की झंडी फहराती ।
ऊँची अरहर में लुका-छिपी
खेलती युवतियाँ मदमाती,
चुंबन पा प्रेमी युवकों के
श्रम से श्लथ जीवन बहलाती ।
बगिया के छोटे पेड़ो पर
सुंदर लगते छोटे छाजन,
सुंदर, गेहूँ की बालों पर
मोती के दानों-से हिमकन ।
प्रातः ओझल हो जाता जग,
भू पर आता ज्यों उतर गगन,
सुंदर लगते फिर कुहरे से
उठते से खेत, बाग, गृह, वन ।
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती ।
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते है कोई,
तिरते जल में सुरखाब पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई ।
डुबकियाँ लगाते सामुद्रिक,
धोती पीली चोंचे धोबिन,
उड़ अबाबील, टिटहरी, बया,
चाहा चुगते कर्दम, कृमि, तृन ।
नीले नभ में पीलों के दल
आतप में धीरे मँडराते,
रह रह काले भूरे, सुफेद
चल पंखो के रँग झलकाते ।
लटके तरुओं पर विहग नीड़
वनचर लड़को को हुए ज्ञात,
रेखा छवि विरल टहनियों की
ठूँठे तरुओं के नग्न गात ।
आँगन में दौड़ रहे पत्ते,
घूमती भँवर सी शिशिर वात ।
बदली छँटने पर लगती प्रिय
ऋतुमती धरित्री सद्य स्नात ।
हँसमुख हरियाली हिम आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोए,-
मरकत डिब्बे-सा खूला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन,-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !