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आँगन से

सुमित्रानंदन पंत - आँगन से

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


रोमांचित हो उठे आज नव वर्षा के स्पर्शो से ?

छोटे से आँगन मेरे, तुम रीते थे वर्षो से !

नव द्र्वा के हरे प्ररोहों से अब भरे मनोहर

मरकत के टुकडे से लगते तुम विजड़ित भू उर भर !

जन निवास से दूर, नीड़ म वन तरुओं के छिपकर,

भू उरोज-से उभरे इस एकांत मौन भीटे पर

कोमल शाद्वल अंचल पर लेटा मै स्मित चिन्तापर,

जीवन की हँसमुख हरीतिमा को देखूँ आँखे भर !

एक ओर गहरी खाई में सोया तरुग्रो का तम

केका रव से चकित, बखेरे सुख स्वप्नो का संभ्रम !

और दूसरी ओर मंजरित आम्र विपिन कर मुखरित

मधु में पिंक, पावस में पी-खग करे ह्रदय को हर्षित !

हरित भरित वन नीम उच्छवसित शाखाओं का विह्वल

वक्षभार, हाँ, रहे झुकाए मेरे ऊपर कोमल !

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

अगस्त' ३९

Last Updated : October 11, 2012

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